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Mar 1, 2025

कविताः कहाँ हो तुम

  - दीपाली ठाकुर

पत्र, पत्रिकाओं में देखती हूँ 

खबर तुम्हारे आने की

और फिर आतुर, जा पहुँचती हूँ 

अपनी गैलरी में

देखती हूँ, हथेली की ओट बना

मगर पाम की कतारों के बीच

या कहीं अकेला ही खड़ा, 

नही दिखता कोई भी बौराया हुआ पेड़

दिखाई देते हैं केवल फूलों से लदे

कुछ पेड़, मैं इन्ही बेगाने फूलों में 

तलाशने लगती हूँ,

टेसू , पलाश ,अमलतास

मेरी तलाश अब बाहर से 

मेरी गैलरी में सजे 

पॉट्स पर आ टिकी 

एक नजर फिर 

पैलारगोनियम ,जिरियम,

पिटूनिया ,बिगुनिया

पर डालते हुए 

धर देती हूँ हथेली कान पर

इस आस में कि,

सुन लूँ कोयल की कूक ही

और फिर गाड़ी पर सवार

निकल आती हूँ, शहर के बाहर

तुम्हारी तलाश में

कहाँ हो तुम ?

बसन्त

सम्पर्कः B2/38 ‘ठाकुर विला’ रोहिणीपुरम, लोकमान्य सोसायटी, रायपुर ( छ. ग.)

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