यूनिसेफ ने 21 मार्च के दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में घोषित किया है। विश्व कविता दिवस मनाने का उद्देश्य काव्यात्मक अभिव्यक्ति (कविताओं) के माध्यम से भाषायी विविधता को बढ़ावा देना है। हर साल इस दिन के लिए कोई एक थीम चुनी जाती है। वर्ष 2022 में इस दिन की थीम ‘पर्यावरण' रखी गई थी। 2023 की थीम थी, ‘सदैव कवि, गद्य में भी (Always a poet, even in prose)' और 2024 की थीम ‘दिग्गजों के अनुभव पर बढ़ना (Standing on the shoulders of giants)'।
कविता का उपयोग भावनाएँ जगाने के लिए, बिंब रचने के लिए, और विचारों को सुगठित और कल्पनाशील तरीके से व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इसमें लय होती है, छंद या मीटर होता है, भावनात्मक अनुनाद होता है। पाठक या गायक कवि की भावना को महसूस करते हैं और यह उनके दिल-ओ-दिमाग में प्रभावी ढंग से उतर जाती हैं। इसमें किफायत, अलंकरण और लय की समझ होती है। ये अक्सर गाई जा सकती हैं। जैसे, हमारा राष्ट्रगान ‘जन गण मन’; यह रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी गई एक कविता है, जिसे हम सभी जोश-ओ-खरोश से गाते हैं। वहीं, हममें से कई अपनी भाषा में दुख-दर्द भरे नगमे भी गुनगुनाते हैं, गाते हैं, सुनते हैं।
वर्ष 2022 का विश्व कविता दिवस लुप्तप्राय भाषाओं, इन भाषाओं में कविताओं, गद्य और गीतों पर केंद्रित था। दुनिया भर में, 7000 से अधिक भाषाएँ लुप्तप्राय हैं। यूनेस्को के अनुसार भारत में, 42 भाषाएँ लुप्तप्राय (10-10 हज़ार से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली) हैं। 2013 से, भारत ने अपनी लुप्तप्राय भाषाओं के बचाव और संरक्षण के लिए एक योजना शुरू की है। वेबसाइट ‘endangered languages in India (भारत में लुप्तप्राय भाषाएँ)’ पर इन लुप्तप्राय भाषाओं की सूची दी गई है। इस सूची में ‘ग्रेट अंडमानी’, लद्दाख में बोली जाने वाली ‘तिब्बती बलती’ और झारखंड की ‘असुर’ भाषाएँ शामिल हैं। मैसूर स्थित स्कीम फॉर प्रोटेक्शन एंड प्रिवेंशन ऑफ एन्डेंजर्ड लैंग्वैज (SPPEL) इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत है।
2023 में विश्व कविता दिवस की थीम थी: आलवेज़ अ पोएट, ईवन इन प्रोज़। शेक्सपियर इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं। उनके गद्य में भी काव्यात्मक लय थी। यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं: ‘Brevity is the soul of wit'; और ‘my words fly up, but my thoughts remain below'। हिन्दी, उर्दू और तमिल में कई विद्वानों ने इसी तरह की कविताएँ/बातें लिखी हैं।
जब हम गद्य में अपने मन की बात कह सकते हैं तो कविता क्यों लिखना? जहाँ गद्य में प्रयुक्त भाषा स्वाभाविक और व्याकरण-सम्मत होती है, वहीं काव्यात्मक भाषा आलंकारिक और प्रतीकात्मक होती है। ऑक्सफोर्ड स्कोलेस्टिका एकेडमी बताती है कि कविता साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक ऐसा रूप है जिसमें भाषा का उपयोग होता है। और एनसायक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहता है, कविता में आप भाषा (के शब्दों) को अर्थ, ध्वनि और लय के मुताबिक काफी सोच-समझकर चुनते और जमाते हैं। कविता पढ़ते या सुनते समय, आपके मस्तिष्क का ‘आनंद केंद्र' सक्रियता से बिंबों का अर्थ खोजने और रूपकों की व्याख्या करने में तल्लीन हो जाता है।
वैज्ञानिक और कविता
‘Scientists take on poetry (साइंटिस्ट टेक ऑन पोएट्री)' नामक साइट बताती है कि गणितज्ञ एडा लवलेस, रसायनज्ञ हम्फ्री डेवी और भौतिक विज्ञानी जेम्स मैक्सवेल ने अपने काम के बारे में कविताएँ लिखी हैं। भारत में, वैज्ञानिक एस. एस. भटनागर ने हिंदी में कविताएँ लिखीं। वैसे सी. वी. रमन कवि तो नहीं थे; लेकिन वायलिन की संगीतमय ध्वनियों का वैज्ञानिक आधार जानने में उनकी रुचि थी और उन्होंने ‘एक्सपेरिमेंट विथ मेकेनिकली प्लेड वायलिन’ (यांत्रिक तरीके से बजाए जाने वाले वायलिन के साथ प्रयोग) शीर्षक से एक शोधपत्र लिखा था, जो 1920 में प्रोसिडिंग्स ऑफ दी इंडियन एसोसिएशन फॉर दी कल्टीवेशन ऑफ साइंस में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने भारतीय आघात वाद्य यंत्रों (ड्रम या ताल वाद्यों) की विशिष्टता का भी अध्ययन किया। तबला और मृदंग की ध्वनियों की हारमोनिक प्रकृति का उनका विश्लेषण भारतीय ताल वाद्यों पर पहला वैज्ञानिक अध्ययन था।
इसी तरह, भौतिक विज्ञानी एस. एन. बोस तंतु वाद्य एसराज बजाया करते थे। बर्डमैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर प्रकृतिविद सालिम अली ने भारत के पक्षियों पर कई किताबें लिखीं। और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर श्रीराम रंगराजन (जिनका तखल्लुस ‘सुजाता’ है) ने तमिल में बेहतरीन किताबें और लेख लिखे, जिन्हें उनके भाषा कौशल के कारण हर जगह सराहा जाता है। क्या ऐसे और वैज्ञानिक नहीं होने चाहिए जो संगीत पर कविताएँ और निबंध लिखें? (स्रोत फीचर्स)
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