- हरकीरत हीर
1. वादा
वादा किया था
ख़ुद से
कि अब कभी
रुख़ न करेंगे तेरे दर की ओर ....
बेहया नज़्म
ख़्वाबों में रातभर
तेरे लफ़्ज़ों के सिरहाने
बैठी रही ....
2. चुभन
कुछ टुकड़े
रातभर चुभते रहते हैं देह में
जिन्हें चाहकर भी
नहीं समेट पाई मेरी नज़्म
ज़रूरी होता है
कुछ टुकड़ों का चुभते रहना भी
लिखे जाने के लिए ......
3.ख़ामोशी
ख़ामोश
हो गई हैं तमन्नाएँ
जब से
उन्हें
दिल से
निकाला गया है ...
4. किनारा
वो भी
समंदर सा
मतलबी निकला
जान लेकर
कह दिया
जाओ लहरों अब
किनारे लगा दो ....
5. मुहब्बत
पलटकर देखे
यादों ने
कुछ नज़्मों के पन्ने
तो
मुहब्बत के कई सारे लफ़्ज़
मुस्कुरा रहे थे
उन दिनों
दीवारें भी हँसा करती थीं ...
6.दफ़्न
इल्म न था
यूँ
अंदर ही
दफ़्न करने पड़ेंगे लफ़्ज़
जिन
लफ़्ज़ों के सहारे
ताउम्र
ज़िंदा रहना चाहती थी
नज़्म ...
7. ख़्वाब
रात भर
मुझसे लिपटकर
रोते रहे
ख़्वाब
जबसे उन्हें
ख़बर लगी थी
टूट जाने की ...
8. पैग़ाम
मुद्दतों बाद
ज़ोर से
हँस पड़ी है नज़्म
आज फिर
कोई
उसके दर पर
रख गया है
मुहब्बत का पैग़ाम....
9. रिश्ता
बड़ा ही
तकलीफ़ देय था
रिश्ता
होते हुए भी
बिना किसी अहसास के
उम्र का कट जाना ...
10. बस इतना
मुहब्बत को
अब तुम्हारे
किसी लफ़्ज़ की
ज़रूरत नहीं
बस
इतना दिख जाया करो
कि
आँखों का गुज़ारा हो जाए ....
1 comment:
बेहतरीन क्षणिकाएँ-बधाई, हरकीरत जी।
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