शुभ दीपावली
आओ अँधकार मिटाने का हुनर सीखें हम
कि वजूद अपना बनाने का हुनर सीखें हम
रोशनी और बढ़े, और उजाला फैले
दीप से दीप जलाने का हुनर सीखें हम
- शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
इस अंक में
अनकहीः गाँव की बात... -डॉ. रत्ना वर्मा
आदरांजलिः रतन टाटा - संवेदनशीलता का सफ़रनामा - विजय जोशी
पर्व- संस्कृतिः कैसे करें माँ लक्ष्मी की आराधना - रविन्द्र गिन्नौरे
कविताः अँधियार ढल कर ही रहेगा - गोपालदास ‘नीरज’
जीव जगतः हिमालय के रंग- बिरंगे मैगपाई - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी
धरोहरः रहस्यमयी लेपाक्षी मन्दिर - अपर्णा विश्वनाथ
प्रेरकः सपने सच होंगे - निशांत
कहानीः आशंका - डॉ. परदेशीराम वर्मा
कविताः रातों रात बदल गई नीयत... - सुधा राजा
व्यंग्यः देखने का नया उपकरण - गिरीश पंकज
लघुकथाएँः 1. लौह-द्वार, 2. अपराधी, 3. असभ्य नगर - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
संस्मरणः आह से वाह होने लगी ज़िंदगी - कृष्णा वर्मा
कविताः बनाये घर - डॉ. शैलजा सक्सेना
किताबेंः ...सम्यक मूल्यांकन ‘अपने अपने देवधर’ - डॉ. राघवेंद्र कुमार दुबे
वन्य जीवनः ...प्रकृति को अक्षुण्ण बनाए रखने की कला - सीताराम गुप्ता
2 comments:
बेहद संतुलित और उम्दा अंक, मनभावन परिशिष्ट, भरपूर ज्ञानवर्धक सामग्री के साथ इस अंक की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सभी पाठकों सहित इसकी पूरी टीम को शुभ दीपावली।
Sanjo rakhne jaisa ank hai UDANTI
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