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Nov 1, 2024

संस्मरणः आह से वाह होने लगी ज़िंदगी

  - कृष्णा वर्मा

सुना था अलसुबह का सपना सच्चा होता है। इस बात का पूर्ण विश्वास तब हुआ जब एक भोर किसी अदृश्य की आवाज़ आई कि तुम्हारी बहू उम्मीद से है। सुनकर विश्वास नहीं हो रहा था । बस उस आवाज़ को सुनने के बाद मेरी नींद फुर्र हो गई। सुबह होने का इंतज़ार लम्बा लग रहा था। जैसे ही सुबह हुई, नित्य की तरह बहू चाय का प्याला लेकर आई। बहू पर अनजाने ही प्यार उमड़ रहा था और पूछ लिया, क्या कोई ख़ुशख़बरी है। वह हैरान- सी मेरा मुँह ताकती रही। उसके चेहरे पर भीनी- सी मुस्कान तैर आई । फिर ‘हाँ’ में सिर हिला दिया। मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही न था; क्योंकि पौत्र के आने के आठ साल बाद दोबारा ख़ुशी मिल रही थी। कुछ समय पश्चात् एक नन्ही- सी परी ने परिवार को पूर्ण कर घर में उजाले भर दिए। दिनोंदिन बढ़ती बिटिया के साथ-साथ मैं भी बड़ी हो रही थी। 

मैटरनिटी लीव समाप्त होते ही बहू अपने काम पर जाने लगी और गुड़िया पूरे समय मेरे ही साथ रहती। गोद से बड़ी हो गई, तो कंधे से सटकर बैठी खेलती रहती। ज़ुबान लगते ही अपनी तोतली भाषा में प्यारी-प्यारी बातों से मन मोहने लगी। दिन कब पर लगाकर उड़ जाता था, पता ही न चलता था। कभी वह मेरे साथ बॉल खेलती, कभी रंग-बिरंगे चित्रों वाली पुस्तकें पलटती, तो कभी ढेर सारे गुब्बारे फुलवाती, उनपर धागे बँधवाती और जहाँ तक उसके छोटे-छोटे हाथ पहुँचते, पंजों के बल उचकर  टेप लगवाकर दीवारों पर चिपका देती और खूब ख़ुश होती। वसंत की नई कोंपल- सी नाज़ुक मेरी गुड़िया जब से जीवन में आई, जीवन खिल उठा था। आँखों में नई चमक, त्वचा कांतिमान होने लगी और मरते स्वप्न पुन: जीवित हो चले। किसी संजीवनी पवन- सी जीवनदायिनी ने आकर मेरी उम्र को ही पछाड़ दिया। 

यही सब करते कराते उसके स्कूल जाने की उम्र हो गई। कब वह मेरा दायाँ हाथ बनती गई,  पता ही न चला। मुझे कोई भी काम करते देखकर अंग्रेज़ी में कहती है- "दादी मुझे भी करने दो।” मेरे समझाने पर कि तुम अभी पढ़ो- लिखो, बड़े होकर सीखना,  तो उदास सा होकर आँखें नम करती हुई कहती है- आप तो बूढ़ी हो रही हो। अगर आप कभी फ़ाइनल गुड बॉय कर गईं, तो मैं आप जैसी कैसे बनूँगी। मुझे तो दादी आप जैसा बनना है”- कहकर कसके गले लग जाती है। प्रतिदिन स्कूल से आने बाद किसी एक एक्टीविटी की क्लास के लिए जाती है। हिरनी- सी उछलती-कूदती कभी जिमनास्टिक तो कभी टाइकोंडो के जौहर दिखाती है। कभी पियानों पर धुन बजाकर लुभाती है, तो कभी आर्ट क्लास में सीखे आर्ट वर्क से  मन मोहती है। मेरे साथ खाना, मेरे साथ सोना और होमवर्क भी मेरे साथ बैठकर ही करती है। सोने से पहले स्कूल में घटित दिनभर के किस्से सुनाती है। कभी नए सीखे अंग्रेज़ी गाने सुनाती है। जब नींद घेरने लगती,  तो गुडनाइट बोलकर मेरा हाथ पकड़कर कहती है- ‘‘आप मेरी बैस्ट फ़्रैंड हैं।’’

जब कभी मेरी तबीयत ख़राब हो जाए, तो माँ की तरह मेरा माथा सहलाती है। और अंग्रेज़ी में सांत्वना भी देती है, ‘‘फ़िकर न करो दादी आप जल्दी ठीक हो जाओगे। मैं आपका लुक आफ़्टर करूँगी।’’

 मेरे बैड की साइड-टेबुल के दराज़ में रखी सभी दवाओं से परिचित है छोटी- सी प्यारी सी मेरी नर्स। सब जानती है किस तकलीफ़ में कौनसी गोली लेती हूँ मैं। बाक़ायदा दवाई और पानी देती है। अगर कंधे- गर्दन में दर्द है, तो छोटे-छोटे हाथों से मरहम मलती है, कंधे दबाती है, हीटिंग पैड लगाती है। फिर कुशल निर्देशिका की तरह लैपटॉप और सेलफ़ोन बंद करके मेज़ पर रख देती है और पलंग पर आँखें मूँदकर लेटने का आदेश देते हुए कम्बल ओढ़ाती है। यदि मुझे वॉशरूम जाना हो, तो मेरे उठते ही मुझे चप्पल पहनाती है। मेरा हाथ पकड़कर छोड़ने भी जाती है। मैं यह जानते हुए भी कि ख़ुद जा सकती हूँ; लेकिन उसके प्यार और अहसास का मान रखते हुए उसका हाथ थाम लेती हूँ। उस समय उसके प्यार- भरे नन्हे हाथ मुझे कितना मजबूत सहारा लगते हैं!

सात वर्ष की उम्र तथा औरों के प्रति इतना प्रेम और चिंता करते देखकर मेरा रोम-रोम उसके पल-पल सुखद जीवन की दुआएँ करता है। बेटों की माँ होने के कारण बेटियों के प्यार की इतनी गहराई का अहसास मुझे कभी हो ही नहीं पाया। पौत्री को पाने के बाद ही पता चला कि लोग क्यों कहते हैं कि बेटियाँ ईश्वर का अनोखा उपहार होती हैं! प्रेम का निर्झर, प्राणों से प्यारी है मुझे मेरी पौत्री नन्दिनी।

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