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Nov 1, 2024

कविताः बनाये घर

 - डॉ. शैलजा सक्सेना 


उसने पहाड़ की सुन्दरता गाई,

भर गया उनकी भव्यता के भाव से

फिर बम लगा तोड़ा पहाड़ 

भरकर आत्मीय भाव से चूम लीं फ़सलें

फिर डाली बजरी, गर्म तारकोल 

बनाए अपने घर।


उसने परिवार को माना धुरी जीवन की,

संबंधों पर लिखे महाकाव्य

फिर कानूनी सम्मन भिजवाए भाइयों को


अब डर लगता है उसके प्यार से

अगली बार किसको अपनाएगा,

देखेगा नज़र भर,

फिर तोड़ेगा उसको ही अपने प्रहार से।

बनाए अपने घर।


उसने जंगल को निहारा,

भर गया उनके रहस्य-दर्शन भाव से

फिर काटा पेड़ों को 

बनाए  अपने घर।


उसने धरती को कहा ‘माँ’

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