भारत मन्दिरों का देश है। हर-एक मंदिर की अपनी एक कहानी है, मान्यताएँ हैं, और विशेषताएँ हैं। उत्तर से दक्षिण तक पूरब से पश्चिम तक भारत के चप्पे-चप्पे में शताब्दियों पुरानी अनगिनत मन्दिर अद्भुत, अनोखी और अविस्मरणीय किस्से-कहानियों को कहते आज भी अडिग अपनी जगह बने हुए हैं।
ऐसे ही अनगिनत कलात्मक मंदिरों की शृंखला में सोलहवीं शताब्दी में बना एक अद्भुत मंदिर लेपाक्षी मन्दिर भी है। यह आंध्र प्रदेश के श्री सत्य साई जिले के एक छोटे से गाँव में है। यह गाँव लेपाक्षी गाँव के नाम से ही जाना जाता है। हिन्दुपुर से लगभग 15 और बेंगलुरु से 120 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यह लेपाक्षी मन्दिर है।
वैसे तो पूरा मन्दिर ही अपने आप में अनूठा है। मन्दिर के बेजोड़ संरचना और अद्भुत शिल्पकला को मंदिर के हर-एक पत्थर में देखा और महसूस किया जा सकता है। मन्दिर आश्चर्यचकित, अद्भुत नक्काशियों, मूर्तियों और भित्ति-चित्रों से पटा पड़ा है। इन स्तंभों पर भगवान शिव के 14 अवतारों - नटराज, हरिहर अर्धनारीश्वर, गौरीप्रसाद, कल्याणसुंदर इत्यादि के भित्तिचित्र उनके विभिन्न रूपों का चित्रण किया गया है।
साथ ही यहाँ रहस्यमयी झूलता खम्भा (Hanging pillars) इस मन्दिर का विशेष आकर्षण बिन्दु है। इसके अलावा यहाँ देखने के लिए विशालकाय शिवलिंग व नंदी की विशाल मूर्ति हैं जो एक ही चट्टान को काटकर बनाई गयी हैं। श्रीराम जी के पदचिन्ह, बड़े पत्थरों से बना विशालकाय गणेश और हनुमान जी की मूर्ति की भी अपनी कहानी है।
लेपाक्षी मन्दिर का रहस्य
अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर इसे अजीब और रहस्यमयी मंदिर कहा जाए तो। रहस्यमयी बात यह है कि इसका एक खंभा जमीन से कुछ सेंटीमीटर ऊपर हवा में लटका हुआ है और इसका रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है।
इसलिए इसे ‘हैंगिंग पिलर (झूलता हुआ स्तंभ) टेंपल’ के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है यह रहस्यमयी तरीके से हवा में लटका हुआ खम्भा।
ब्रिटिश काल में भी ब्रिटिश इंजीनियरों ने इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश में लटकते हुए खम्भे पर हथौड़े से वार किया था। बाकी खम्भों में दरारें पड़ीं; लेकिन यह झूलता खम्भा जस-का-तस रहा। आखिरकार यह बात सामने आई कि मंदिर का सारा वजन इस एक खम्भे पर ही है। ब्रिटिश लटकते हुए खम्भे के रहस्यमयी संरचना के सामने घुटने टेक दिए और हारकर वापस चले गए।
अर्ध मण्डप या अंतराल मण्डप
मण्डप का निर्माण पूरा नहीं हो पाने के कारण इसे अर्ध या अंतराल मण्डप कहा जाता है।
मान्यता है कि इसी जगह भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और देवताओं ने यहाँ नृत्य किया था। उन्हीं की याद में विजयनगर राजाओं ने एक नृत्य मंडप का निर्माण किया। इसमें नक्काशीदार कुल सत्तर (70) खम्भे हैं, जिसमें 69 खम्भे जमीन से जुड़े हुए हैं और एक खंभा छत से तो जुड़ा हुआ है लेकिन जमीन से जुड़ाव नहीं है। इसके पीछे का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है।
इस खम्बे को लेकर किए जा रहे दावे में कितनी सच्चाई है यह जानने के लिए अधिकतर पर्यटक इस खम्बे के नीचे से बहुत सारी वस्तुएँ जैसे कपड़े, कागज़ आदि को खम्भे के नीचे से डालकर इधर से उधर खींचते और निकालते हैं।
बदलते समय में लोगों में मान्यता पनपी कि कोई भी खंभे के इस पार से उस पार तक कोई कपड़ा ले जाए, तो उनकी इच्छाएँ पूरी हो जाती है।
लेपाक्षी का इतिहास
कुछ किंवदंतियों के अनुसार इसका संबंध #रामायण में श्रीराम और जटायु से है। मान्यता है कि जब रावण और जटायु के युद्ध में, जटायु हार गए और घायल होकर राम- राम चिल्लाते हुए इसी जगह पर गिर पड़े थे। कुछ समय पश्चात् श्रीराम जटायु को खोजते हुए आते हैं; तब उनकी दृष्टि निश्चेष्ट जटायु पर पड़ती है। भगवान राम जटायु का सिर अपनी गोद में रखकर ले-पाक्षी, लेपाक्षी अर्थात् उठो पक्षी (तेलुगु में ले का अर्थ उठो होता है) बार-बार बोलते रहे । अंततः जटायु अंतिम साँस लेते हुए भगवान श्रीराम के गोद में अपने प्राण त्याग दिए।
भगवान राम ने उसी स्थान पर जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया तब से उस स्थान का नाम लेपाक्षी पड़ गया और वहाँ निर्मित मन्दिर का नाम लेपाक्षी मन्दिर। यहाँ निर्मित तीन विशालकाय मन्दिर भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित हैं।इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी कुछेक मान्यताएँ हैं -
मान्यता है कि यह सतयुग के समयकाल का है। इसलिए लेपाक्षी मंदिर का इतिहास अति-प्राचीन है। मान्यता है कि महर्षि अगस्त्य ने शिवजी के वीरभद्र रूप को समर्पित कर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। शिवलिंग के पीछे सात मुहं वाला विशाल नाग भी हैं। यह भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव वीरभद्र रूप में स्थित है। यह मन्दिर कुर्मासेलम की पहाडियों पर कछुए की आकार में बना बना हुआ है।
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 16वीं सदी में विरुपन्ना और विरन्ना नाम के दो भाइयों ने कराया था, जो विजयनगर के राजा के यहाँ काम करते थे।मान्यताएँ जो भी हो लेकिन यहाँ की शिल्पकला और अद्भुत नक्काशी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
विश्वप्रसिद्ध विशालकाय नंदी
इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर शिवजी की सवारी नंदी की एक विशाल मूर्ति है। यह विश्व में नंदी की सबसे विशाल मूर्ति है। लंबाई 27 फीट व ऊँचाई 15 फीट के आसपास है।
विश्वप्रसिद्ध विशालकाय नागलिंग
यह विश्व का सबसे बड़ा नागलिंग है। दुनिया भर से लोग इस अद्भुत व विशाल नागलिंग को देखने आते हैं। यह शिवलिंग एक पहाड़ पर स्थित है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसे स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। शिवलिंग के पीछे सात मुहँ वाला विशाल शेषनाग भी विराजमान है जो इसे और ज्यादा अद्भुत और विशाल रूप देता है।
लेपाक्षी मंदिर पर साड़ियों के डिजाइन
लेपाक्षी मंदिर की एक और विशेषता यह हैं कि यहाँ की दीवारों के भित्तिचित्रों पर शिव के विभिन्न रुपों के अलावा उस समयकाल के कई प्रकार के साड़ियों के डिजाइन भी बने हुए हैं। जिन्हें भारत ही नहीं बल्कि् देश-विदेश के साड़ियों के जानकर देखने और इनका विश्लेषण करने के उद्देश्य से यहाँ आते हैं।
आज लेपाक्षी साड़ियाँ और डिजाइन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
हनुमान जी और भगवान गणेश की विशालकाय मूर्ति जो एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई है भी यहाँ आने वाले सैलानियों का ध्यान आकर्षित करती है।
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