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Nov 1, 2024

व्यंग्यः देखने का नया उपकरण

  - गिरीश पंकज
सुना है, इन दिनों उन्होंने लोगों को देखने के अपने उपकरण बदल लिए हैं । पहले तो वे अपनी दोनों आँखों से ही देखा करते थे । बिल्कुल समदृष्टि के साथ, जब वे कुछ भी नहीं  थे। मगर  जब से पदासीन हुए हैं, मदासीन भी हो गए हैं। अब वे आँखों से नहीं, कानों से देखने लगे हैं। अगर मुँहलगे विश्वसनीय चमचे कुछ कहते हैं तो उनको फौरन यकीन हो जाता है कि ये सही कह रहे होंगे। आप समझ गए न कि मैं छदामीराम की बात कर रहा हूँ । बड़े नेता हैं। अरे, इनको तो आप भी अच्छी तरह जानते हैं ! आपके ही आसपास तो कहीं रहते हैं । जब से उनको बड़ीवाली कुरसी मिली है, तब से वे भाव-विभोर होकर आँखें बंद ही रखते हैं। कोई खास महानुभाव  दिखे तो बिछ-बिछ जाते हैं, मगर आम लोगों को ठीक से देखते ही नहीं। कभी-कभार देखा भी तो घूर कर। सामने वाला डर जाता है। उनसे लाभ पाने की लालसा में लोग उनके आगे-पीछे दाएँ-बाएँ ठीक उसी तरह मँडराते रहते हैं, जैसे मक्खियाँ।  उनके कानों में आकर जिसने भी किसी के बारे में कुछ कह दिया, तो वे उसको ही सच मान लेते हैं। इस तरह वे कान से सुनते भी हैं और देखते भी हैं।

छदामीराम के बारे में जब यह अफवाह मैंने सुनी तो मैं प्रत्यक्ष अनुभव के लिए उनके पास चला गया। मैंने देखा, वे अपनी कुरसी पर विराजमान होकर मोबाइल को लगातार देखे जा रहे हैं। उनके अगल-बगल खड़े लोग उनके दाएँ और बाएँ कान में कुछ-न-कुछ फुसफुसाते और वे सहमति में अपनी एक अदद मुंडी हिला देते। अचानक उनकी नजर मुझ पर पड़ी । कंधे पर खादी का झोला लटका हुआ था, हाथ में कलम थी, तो वे समझ गए कि यह कोई पत्रकार टाइप का जीव है। मुझे धन्य करने के भाव से वे फौरन मुस्कराए और पास बुलाकर बैठने का संकेत किया।  पूछा- “किस अखबार से हैं”, तो  मैंने ईमानदारी से बता दिया कि ' दैनिक खण्डन टाइम्स ' से हूँ, जो सप्ताह में एक बार छपता-ही-छपता है । लेकिन अखबार को लोग खोज-खोज कर पढ़ते हैं।  पिछले दिनों एक मंत्री के घोटाले की खबर हमने छापी थी, जिसे हजारों लोगों ने पढ़ा था।”

मेरी बात सुनकर वे विचलित हो गए और कहने लगे, “अरे, आप लोग घोटाले की भी खबर छापते ही क्यों हैं? ऐसा मत किया करें बंधु, हम जैसे नेताओं की तारीफ करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको विज्ञापन मिलेंगे। किसी का ट्रांसफर-प्रमोशन करवाना हो, तो मदद ले सकेंगे। ऐसा करने से आपके घर लक्ष्मी का प्रवेश होता रहेगा ।”

उनकी बात सुनकर मैंने कहा, “बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप । अब से ऐसा बिल्कुल नहीं होगा । आपने मेरे ज्ञान के कपाट अचानक खोल दिए। बताइए, और क्या चल रहा है ?”

वे कहने लगे, “सब ठीक-ठाक है, बंधु; लेकिन मैं इन दोनों शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। हमारे  खास समर्थक बता रहे थे कि कुछ लोग मुझे कुरसी से हटाने की कोशिश में लगे हुए हैं ।”

मैंने कहा- “आप सुनी-सुनाई बातों पर यकीन कर लेते हैं, यह ठीक बात नहीं। पहले पता तो कीजिए कि जिन लोगों के बारे में कहा जा रहा है, उसमें कितनी सच्चाई है।”

मेरी बात सुनकर वे बोले, “अरे! इतना समय कहाँ है कि जाकर सच्चाई पता करें और जिन्होंने मेरे खिलाफ कुछ कहा है, उनसे जाकर पूछूँ कि क्या तुमने मेरे बारे में ऐसा-वैसा कुछ कहा है। मैंने तो अपने कुछ खास रत्न पाल रखे हैं । बड़े विश्वसनीय। वे जो कहते हैं, उसे मैं आँख मूँदकर मान लेता हूँ। उनके भरोसे रहता हूँ।  अब आँखों से नहीं, कानों से देखता भी हूँ और सुनता भी हूँ।”

उनकी बात सुनकर मैंने कहा, “यहीं तो मार खा जाता है इंडिया। आपको किसी की बातों में नहीं आना चाहिए। आप बड़े नेता हैं। आपको बड़प्पन भी रखना चाहिए । ' 'कौवा कान ले गया' कहने पर कौवे के पीछे भागना ठीक नहीं। अगर आपको लंबे समय तक टिके रहना है तो कान से सुनने की बजाय आँखों से देखकर निर्णय लेना चाहिए वरना जैसा कि इतिहास है, सुनी-सुनाई बातों पर निर्णय लेने वाले बहुत जल्दी इतिहास बन जाते हैं।”

मेरी बात सुनकर वे भयंकर गंभीर हो गए और कहने लगे, “आपकी बात में दम है। इस पर मैं विचार करूँगा।”

बातचीत चली रही थी कि तभी एक बंदे ने उनके कान में कुछ फसफुसाया। फुसफुसाहट मेरे कानों तक भी पहुँच गई। वह कह रहा था, “भैयाजी! इस लेखक-पत्रकार से बचकर रहना। बहुत खतरनाक है। अंट-शंट लिखता है।”

इतना सुनना था कि छदमीराम के तेवर बदल गए। वे फौरन खड़े हुए और  रूखे स्वर में बोले, “नमस्ते। मुझे कहीं और निकलना है। फिर मिलेंगे।”

मैंने भी मुस्कराते हुए हाथ जोड़ लिया।

सम्पर्कः सेक़्टर -3, एचआईजी - 2/ 2 ,  दीनदयाल उपाध्याय नगर, रायपुर- 492010, मोबाइल : 87709 69574

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