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Nov 1, 2024

कहानीः आशंका

  - डॉ. परदेशीराम वर्मा


नेवरिया ठेठवार के आने बाद पंचायत प्रारम्भ होती है । 

पागा बाँधे, हाथ में तेंदूसार की लाठी लिए, वजनी पनही की चर्र-चर्र आवाज पर झूमते नेवरिया को देखकर बच्चे सहम जाते हैं । 

आज भी नेवरिया का प्रतीक्षा है । सब आ गए हैं । लोग जानते हैं कि पंचायत तो प्रारम्भ होती है नेवरिया के खरखारने के बाद और नेवरिया बियारी करने के बाद पहले एक घंटा तेल लगवाते हैं, उसके बाद ही गुँड़ी के लिए निकलते हैं । जैसे नेवरिया का शरीर मजबूत है, वैसे ही बात भी मजबूती से करते हैं । पंचायत के बीच नेवरिया की बात कभी नहीं कटती। जहाँ नेवरिया की बात कमजोर होने लगती है,  वहाँ उसकी लाठी चलती है । नेवरिया के पाँच लड़के हैं जवान ताकतवर । सबके हाथ में चमत्कारी लाठी हमेशा रहती है । खास तेंदूसार की लाठी । तेंदूसार के लड़की भइया सेर-सेर घिव खाय रे ।

नेवरिया खखारते हुए पाँचों लड़कों के साथ आ गए । सब चुप हैं । पीपल के पत्ते अलबत्ता डोल रहे हैं । उसमें बैठे कौए मगर एकदम चुपचाप हैं, शायद नेवरिया का भय उन्हें भी खामोश किए हुए है।

बीच में नेवरिया बैठे हैं, उनके चारों ओंर उनके लड़के । लड़कों के हाथ में लाठी है । लाठी में सेर-सेर घी पीने की तृप्ति है और तृप्ति के बावजूद किसी के भी सिर जम जाने की बेताबी है ।

नेवरिया के हुक्म से पंचायत शुरू हो जाती है । पंचायत हमेशा उनके हुक्म से ही शुरू होती है और उनकी हुंकार से खत्म होती है । कातिक नाई बीड़ी लेकर बीच में उनके पास जाता है, कभी वे एक बीड़ी निकाल लेते हैं, कभी कातिक को झिड़क देते हैं कि बात कितनी जरूरी चल रही है और तुमको बस फुकुर-फुकुर की सूझी है। डाँटना नेवरिया का काम है और डाँट पर हँसना पंचों का । जहाँ तक कातिक नाऊ का सवाल है, वह तो अपनी पीठ पर जब तक धौल नहीं पा लेता, कृतार्थ ही नहीं होता ।

आज खास नेवरिया के लिए पंचायत बैठी है । नेवरिया के लिए नहीं बल्कि उसके मझले लड़के जरहू के खिलाफ । यह तो जरहू की लाठी में बँधी पीतल की चकाचौध का कमाल है कि लोग सात माह से चुप हैं वरना ऐसी गलती अगर दूसरे किसी ने की होती तो उसे बहुत पहले ही मार-मुसेट कर दंडित कर दिया होता । मगर बिल्ली के गले में किसी ने घंटी बाँधी होती तो हमारे गाँव मे भी जरहू को ठिकाने लगा दिया गया होता । समरथ को नहीं दोष गुँसाई... जिसकी लाठी उसकी भैंस ।

गलती तो भूरी ने की कि आज उसने पंचायत बुलवा ली । अब दिन भी आखिरी है। पानी में गोबर करोगे तो एक दिन तो उसे उफलना ही है ।

सबसे पहले पूछा गया कि भई, पंचायत किस कारण एकत्र की गई है । कुछ देर की निस्तब्धता के बाद भूरी ने रूँधे गले से कहा, ददा हो, मैंने बुलाया है और फफक-फफककर रोने लगी। गुँड़ी चढ़ाकर भूरी अपने को अपमानित महसूस कर रही थी । उस दिन को कोस रही थी जब वह नेवरिया के लड़के के टेन में गोबर बीनने चली गई थी । बँभरी पेड़ के घने जंगल में टेन हाँककर नेवरिया के बेटे जरहू ने चोंगी सुलगा लिया । भूरी भी गोबर बीनकर घर जाने के लिए लौटने लगी तभी उसने देखा कि जरहू उसे बड़े मनोयोग से देख रहा है । भूरी थी भी तो गोरी नारी । बड़े-बड़े स्वजातीय गोंड़ आए, रजगोंड़ आए, मगर भूरी ने इनका कर दिया । अपने ढाई साल के इकलौते बेटे सुकलू को देख-देखकर भूरी अघा जाती थी । कुटिया-पिसिया करके सुकलू को पोसती हुई अपने स्वर्गीय पति लीभू की याद में सब दुख झेल रही थी । वह भरी जवानी में विधवा हो गई और चुरपहिरी जात की होने के बावजूद उसने चूरी पहनने से इनकार कर दिया । लोग उसकी इसीलिए इज्जत करते थे । छोटी जाति की होकर भी इतनी चारित्रिक दृढ़ता । यह स्त्री गाँव वालों के लिए श्रद्धास्पद थी । लीभू को मरे तीन साल हो गए, मगर भूरी ने कहीं भी हाथ लाम नहीं किया ।

बंभरी बन में अकेली जानकर जरहू ने उसे रोक लिया । भूरी तो सोच भी नहीं सकती थी कि दिन-दहाड़े कोई आदमी वैसी अनीयत कर सकता है । मगर जरहू तब आदमी नहीं, राक्षस बन गया था । उसने भूरी का सब कुछ छीन लिया । रोती हुई भूरी ने तब उसे कहा कि दो दिन पहले ही मुड़ मिंजाई हुई है, कुछ हो गया तो गोड़िन के साथ ठेठवार की जाति भी बिगड़ जाएगी । तब मूँछ पर हाथ फेरते हुए जरहू ने कहा था कि देख, मैं सब ठीक कर लूँगा । गाँव में कौन है जो हमारे सामने सर उठाकर चले और मुँह खोले, कुछ हो गया तो मैं तुम्हें सँभाल लूँगा । हाँ, इसकी चरचा कहीं मत करना और आज से मैं मरद के बच्चे की तर तुम्हारा हाथ पकड़ता हूँ, कोलिहा की तरह नहीं कि रात का हुआ-हुआ और सुरूज के साथ लुड़धुंग-लुड़धुंग ।

और भूरी मान गई थी । मानना ही पड़ता । यह तो जरहू की भलमनसाहत थी कि उसने उसे आश्वासन भी दिया । चाहता तो वहीं नरवा में मारकर फेंक सकता था । मगर दिलवाला है जरहू, प्रेमी भी है, ऐसा भूरी ने उस दिन मान लिया था । आज उसी प्रेमी की परीक्षा है । रूँधे स्वर में भूरी ने अपने सात माह के पेट में पल रहे बच्चे के बाप का नाम लिया । नाम भी नहीं लिया, उसने कहा, नेवरिया ददा के मँझला बेटा के ताय ।

इतना सुनना था कि नेवरिया उठ खड़े हुए । आँखें लाल हो गई । उन्होंने ललकार कर कहा, जरहू तो है सिधवा लड़का, सच-सच बता, तूने कैसे फाँसा उस भकला को ।

भूरी भी जानती थी कि पंचायत से सब कुछ कहना जरूरी है । उसने निडर होकर सब बता दिया । उसने यह भी बताया कि जरहू ने उतरवाने के लिए उस पर दबाव डाला । न जाने क्या कुछ पिलाया भी । मगर ठेठवार का बींद है, नहीं उतरा । अब आप सब कर दो नियाव ।

नेवरिया ने डांटकर चुप कराना चाहा, मगर भूरी ने मुँहतोड़ जवाब दिया । हाथ पकड़ने के समय तो गरज रहा था तुम्हारा बेटा कि कोई बात नहीं है । मुड़ मींजे हो तो भी सँभाल लूँगा । अब सँभालता क्यों नहीं, मुड़गिड़ा बना बैठा है पंचायत में ।

भूरी की बात जरहू के अंतस् में बरछी की तरह जा लगी । उसका हाथ लाठी पर चला गया, होंठ फड़कने लगे । आँखे ललिया गईं। किन्तु पंचायत तो पंचायत है, उसे चुप रह जाना पड़ा । अंत में तय हुआ कि गाय की पूँछ पकड़कर भूरी को स्वीकार करना होगा कि बच्चा जरहू के हाथ का ही है । बछिया लाई गई । भूरी उठ खड़ी हुई । ऊपर आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे । भूरी ने सोचा कि धरती फट जाती तो वह उसमें सीता की तरह जा समाती । मगर धरती फटी नहीं । भूरी को परीक्षा के लिए तैयार होना पड़ा ।

चारों ओर खामोशी थी । भूरी उठी । उसने साधकर कदम बढ़ाया और ज्यों ही वह बछिया के पास पहुँची, नेवरिया खड़े हो गए । उन्होंने चिल्लाकर कहा अधरमिन का क्या भरोसा । छोटी जात की औरत का भरोसा भी हम क्यों करें । यह जरूर छू देगी बछिया की पूँछी । चलो उठो ! हमें नहीं देखना है यह अधर्म । लोग उठने लगे लेकिन कुछ लोगों ने विरोध किया और अंत में बात पंचायत पर छोड़ दी गई । बहुत दिनों के बाद नेवरिया की पगड़ी धूल-धूसरित होने जा रही थी । गाँव भर में हर व्यक्ति की छोटी-छोटी गलतियों के लिए पनही लेकर पंचायत में उठ जाने वाले नेवरिया आज स्वयं अपराधी बने बैठे थे । अब कुछ नौजवान लड़कों की भी अपनी टोली बनने लगी थी ।
नेवरिया सब देख रहे थे । अत: पंचायत की बात उन्हें माननी पड़ी । नेवरिया को अंदाज नहीं था कि भीतर-ही-भीतर गाँव में किस तरह बदलाव आ गया है ।

अंत में पंचों ने फैसला सुना दिया कि भूरी को पोसने की जिम्मेदारी नेवरिया के मझले बेटे जरहू की होगी ।


पंचायत खत्म हो गई । भूरी पंचों को आशीष दे रही थी । लोग भी प्रसन्न थे । धर्म की विजय हुई थी, पापी दंडित हुआ था । एक नई शुरूआत हो गई थी । भूरी अपने आने वाले बच्चे के भविष्य के प्रति आश्वस्त हो गई थी । जरहू के रूप में अब उसके बच्चों को बाप मिल गया था; लेकिन बात इतनी सीधी नहीं थी ।

कुम्हारी और गाँव के बीच एक खरखरा नरवा है । गाँव भर की बरदी वहीं जाती हैं । बरदी चराने वाले राउत लड़कों ने एक दिन गाँव में आकर बताया कि भूरी ने बँभरी पेड़ में लटककर फाँसी लगा ली है ।

गाँव भर के लोग गए । भूरी को बँभरी पेड़ से उतारा गया । सबने आश्चर्यचकित होकर देखा कि भूरी के गले में भेड़ी रूआँ की मजबूत डोरी थी जिसे नेवरिया को बड़े मनोयोग से ढेरा पर आँटते हुए, फिर हाथ से बँटते हुए लोगों ने देखा था। देखा था और सराहा था कि नेवरिया के लड़के तो भेंड़ी-रूआँ कतरने में ही माहिर हैं, किन्तु डोरी बुनना तो केवल नेवरिया को आता है।

यह तो नेवरिया की रस्सी का कमाल है कि भूरी जैसी दुहरी देह की औरत उससे झुल गई और रस्सी का कुछ नहीं बिगड़ा। भूरी की गरदन जरूर टूट गई । नेवरिया दु:खी है तो केवल इसीलिए कि लाख समझाने पर भी उसके लड़के डोरी बनाने की कला नहीं सीख पाए । नेवरिया आशंकित है कि उनके बाद डोरी के अभाव में न जाने लड़कों को किन मुसीबतों का सामना करने पड़े ।

सम्पर्कः एल.आई.जी.-18, आमदी नगर, हुडको, भिलाई (छ.ग.) 490 009फोनः 0788-2242217, मोबाइल 98, 279-93494

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