वर्ष - 16, अंक - 8
प्रेम
विपदाएँ आते ही,
खुलकर तन जाता है
हटते ही,
चुपचाप सिमट ढीला होता है;
वर्षा से बचकर,
कोने में कहीं टिका दो,
प्यार एक छाता है,
आश्रय देता है, गीला होता है।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
इस अंक में
अनकहीः रंगों और उमंगों की बौछार - डॉ. रत्ना वर्मा
विकासः असुरक्षित बाँधों को हटाना आवश्यक है - हिमांशु ठक्कर
जीवन दर्शनः महाभारत:
मैं से मुक्ति - विजय जोशी
पर्व - संस्कृतिः छत्तीसगढ़
में होली- चली फगुनाहट बौरे आम... - डॉ. परदेशीराम वर्मा
बाल कविताः होली की धूम
- डॉ. कमलेंद्र कुमार
महिला दिवसः स्त्री -
पुरुष असमानता और हमारा समाज - डॉ. सुरंगमा यादव
कविताः कितना कुछ कर जाती है औरत - विजय जोशी
पर्व- संस्कृतिः शिव
मंदिरों का एक सीधी रेखा में बने होने का रहस्य - प्रमोद भार्गव
फिल्मः भारतीय सिनेमा
की आवाज़ को 93 वर्ष पूरे - डॉ. दीपेंद्र कमथान
कविताः ठोकरों की राह
पर - लिली मित्रा
लघुकथाः क्वालिटी टाइम -
अर्चना राय
बांग्ला कहानीः वह पेड़ -
ऋत्विक घटक , अनुवाद - मीता दास
लघुकथाः अथ विकास कथा -
सुकेश साहनी
व्यंग्यः अर्थों
का दिवंगत होना - डॉ . गिरिराजशरण अग्रवाल
किताबेंः अनुवाद मूल रचनात्मकता से बड़ा काम होता है - सुभाष नीरव
दोहेः उड़त अबीर गुलाल - ज्योतिर्मयी पंत
रपटः वार्षिक
उत्सव- रोजगारमूलक शिक्षा मुख्य उद्देश्य - उदंती फीचर्स
विशेष लेखः छत्तीसगढ़
में महिला सशक्तिकरण के लिए बड़ा कदम - डॉ. दानेश्वरी संभाकर
आलेखः महतारी वंदन योजना- महिलाओं को मिली खुशियों
की गारंटी - श्रीमती रीनू ठाकुर
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