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Mar 7, 2024

बाल कविताः होली की धूम








 - डॉ. कमलेंद्र कुमार

हरी गुलाबी नीली पीली,

और लाल पिचकारी।

लिए खड़े हैं राजा बाबू,

रामू ,राज बिहारी।

दिव्या नव्या और भारती,

लिए खड़ी गुब्बारे ।

ताक  रहे सब गली सड़क को,

कोई इधर पधारे।

आहट पा गुब्बारे फेकें,

औ' मारी पिचकारी ।

रंग- बिरंगे हुए सभी जन ,

आईं दादी प्यारी ।

साथ लिये वे लड्डू पेड़ा ,

और इमरती सारी।

खुरमी  मटरी  और पापड़ी, 

और सेव नमकीन ।

गरी चिरौंजी वाली गुजिया ,

खा गई पूरी टीम ।

सम्पर्कः रावगंज, कालपी , जालौन, उत्तरप्रदेश – 285204, मो. 9451318138


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