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Mar 7, 2024

कविताः कितना कुछ कर जाती है औरत

 

 - विजय जोशी

धरती पर ईश्वर की छाया

सुंदरता की कोमल माया

अनगिन सुंदर सपन सुहाने

रच जाती है औरत


सचमुच में कितना कुछ

कर जाती है औरत.

 

सूरज से तपते ऊसर में

ठंडक बनकर के जीवन में

सावन की पहली बरखा सी

छा जाती है औरत

             सचमुच में ...

 

रिसते अंतस के दर्दों पर

जीवन के जलते जख्मों पर

हमदर्दी का कोमल फाया

रख जाती है औरत

           सचमुच में ...

 

जब समय कठिन हो

पल मुश्किल हों

, तो हसकर अभाव भी

सह जाती है औरत

             सचमुच में ...

 

या जब मन उदास हो

कोई न पास हो

ऐसे क्षण में दुखते मन को

सहलाती है औरत

             सचमुच में ...

 

खामोशी की भाषा में

बिना किसी भी आशा में

बिना कहे ही जाने क्या क्या

कह जाती है औरत

           सचमुच में ...

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