उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Mar 7, 2024

पर्व-संस्कृतिः शिव मंदिरों का एक सीधी रेखा में बने होने का रहस्य

  - प्रमोद भार्गव

 
तकनीक
के आविष्कार के साथ भारत की स्थापत्य कला की विज्ञान सम्मत तार्किकता सामने आने लगी है। अब भारत समेत पूरी दुनिया आश्चर्य में है कि जब अक्षांश और देशांश को जानने के उपकरण नहीं थे, तब भारत में हजारों साल पहले एक सीधी रेखा में दो ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसे सात शिव मंदिर निर्मित कर दिए गए। ये सातों मंदिर केदारनाथ से रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के बीच स्थित हैं। ये मंदिर पंचतत्त्वों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। सभी मंदिर देशांतर रेखा पर लगभग 79 डिग्री पर निर्मित हैं। उत्तराखंड के केदारनाथ, तमिलनाडु के अरुणाचलेश्वर, थिल्लई नटराज, जम्बूकेश्वर, एकाम्बेश्वरनाथ, आंध्रप्रदेश के श्रीकालाहस्ती और रामेश्वरम् मंदिरों को एक सीधी रेखा में स्थापित किया गया है। इस रेखा को शिव-शाक्ति अक्ष रेखा भी कहा जाता है। इन मंदिरों में कालाहस्ती जल, एकाम्बेश्वरनाथ अग्नि, अरुणाचलेश्वर वायु, जम्बूकेश्वर पृथ्वी और थिल्लई नटराज मंदिर आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन मंदिरों की उम्र 4000 वर्ष की मानी गई हैं। इनके बीच की दूरी 2383 किमी है।

    इन सभी मंदिरों के बीच भारत का अत्यंत महत्त्वपूर्ण महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन में स्थापित है। यह पश्चिमी देशों से बहुत पहले से समय की गणना की अवधारणा से जुड़ा है। उज्जैन जो भारत की हृदयस्थली है, इसकी भौगोलिक स्थिति विलक्षण हैं। यहां कर्क और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को काटती हैं, इसलिए इसे पृथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है। यह भी धारणा है कि उज्जैन पृथ्वी और आकाश के मध्य स्थित है। भूतभावन महाकाल को कालजयी मानकर ही उन्हें काल यानी समय का देवता माना गया है। कालगणना के लिए मध्यव्रती स्थल होने के कारण इस नागरी का प्राकृतिक, वैज्ञानिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और खगोलीय महत्व रेखांकित किया जाता रहा है। उज्जैन में महाकाल की स्थापना का रहस्य मध्यबिंदु होने के साथ मंगलगृह की उत्पत्ति का स्थल भी माना गया है। यहां पर ऐतिहासिक नवग्रह मंदिर और वैदशाला की स्थापना से कालगणना का मध्यबिंदु होने के प्रमाण मिले है।

  प्राचीन भारतीय मान्यताओं के अनुसार जो भौगोलिक गणनाएं प्राचीन ऋृषियों ने की हैं, उन्होंने उज्जैन को ‘शून्य रेखांश पर माना है। कर्क रेखा भी यहीं से होकर गुजरती है। यहीं से भू-मध्य रेखा इसे काटती है। भू-मध्य और कर्क रेखा का मिलन स्थल होने के कारण इसे पृथ्वी का नाभि स्थल भी माना गया है। इसी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण प्राचीन आचार्यों के प्रतिपादित सिद्धांतों में समय गणना, पंचांग निर्माण आदि के लिए उज्जैन यानी प्राचीन अवंतिका को केंद्र बिंदू के रूप में स्वीकार किया गया। ज्योतिष के सबसे प्राचीनतम एवं सर्वाधिक प्रमाणिक ग्रंथ ‘सूर्य सिद्धांत‘ में भूमध्य रेखा के सिलसिले में उल्लेख है कि

        राक्षसांलयदेवौकः शैलयोर्मध्यसूत्रगाः।

        रोहितकमवन्ती च यथा सन्निहितं सरः।।

  अर्थात, लंका और सुमेरू पर्वत के मध्य जो सूत्र होगा, उसके बीच के नगर रेखापुर कहलाते हैं। जैसे रोहतक, अवंति और कुरूक्षेत्र ऐसे स्थान हैं, जो इस रेखा पर स्थित है।

 प्रसिद्ध खगोलविद् भास्कराचार्य ने पृथ्वी की मध्य रेखा का वर्णन इस प्रकार किया है-

 यललोको उज्जयिनी पुरोपरि कुरुक्षेत्रादि देशान् स्पृशत्।

  सूत्रं-मेरुगतं बुधैर्निगदिता सा मध्यरेखा भुवः।।

  अर्थात, जो रेखा लंका और उज्जयिनी से होकर कुरुक्षेत्रादि देशों का स्पर्श करती हुई सुमेरू से जाकर मिलती है, उसे भूमि की मध्यरेखा कहते है। इस प्रकार भूमध्य रेखा लंका से सुमेरू तक जाते हुए उज्जयिनी सहित अन्य नगरों को छूती हुई गुजरती है, किंतु वह कर्क रेखा को एक ही स्थान उज्जैन में मिलती है। इसलिए इस स्थान को काल गणना के लिए उपयुक्त माना गया है। अतएव वर्तमान में विश्व की समय गणना के लिए जो महत्व ग्रीन विच को प्राप्त है, वहीं महत्व पुरातन काल से उज्जयिनी को प्राप्त है।

  उज्जैन में प्रतिवर्ष 21 जून को दोपहर मनुष्य की परछाई कुछ पलों के लिए साथ छोड़ देती है। जबकि परछाई हर समय मनुष्य के साथ रहती है। दरअसल 21 जून साल का सबसे बड़ा दिन होता है। इसी दिन दोपहर में सूरज सबसे ऊपर होता है, तब परछाई विशेष खगोलीय स्थिति में आ जाने के कारण लुप्त हो जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कर्क और मध्यरेखा का मिलन बिंदु उज्जैन है। अब यहां की प्राचीन वेधशाला में इस अनोखी खगोलीय घटना को देखने के लिए यंत्र की व्यवस्था भी कर दी गई है। चूंकि 21 जून का दिन सबसे लंबा दिन होता है, इसलिए सूरज उत्तरी गोलार्ध से होता हुआ ठीक कर्क रेखा के ऊपर आ जाता है। इस दिन, दिन सबसे बड़ा होता है, लेकिन रात छोटी होती है। इस दिन की लंबाई 13 घंटे 34 मिनट तक की रिकॉर्ड की गई है। इसीलिए उज्जैन को ‘शून्य (0) रेखांश पर माना गया है। अर्थात जब हमारे ऋषि कर्क, भूमध्य रेखा और ‘शून्य रेखांश को जानते थे, तब अक्षांश और देशांतर भी जानते थे। इसीलिए केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच स्थित सात शिव मंदिर एक सीधी रेखा में बनाया जाना संभव हुआ।

   उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर 79.0669 डिग्री देशांतर पर स्थित है, इसे अद्र्ध ज्योतिर्लिंग कहते हैं। नेपाल के पशुपतिनाथ शिव मंदिर को मिलाकर यह पूर्ण हो जाता है। इस मंदिर को महाभारत काल में पांडवो ने बनवाया था और फिर आदि ‘शंकराचार्य ने इसकी पूनस्र्थापना की थी। आंध्रप्रदेश के चित्तूर में श्री कालीहस्ती मंदिर को पंचतत्वों में जल का प्रतिनिधि माना जाता है। यह मंदिर 79.6983 डिग्री देशांतर पर स्थित है। एकाम्बेश्वर मंदिर 79.42,00 डिग्री देशांतर पर स्थित है। इस शिव मंदिर को पृथ्वी तत्व की मान्यता प्राप्त है। इस विशाल शिव मंदिर को पल्लव राजाओं ने बनवाया था। बाद में चोल वंश और विजयनगर के राजाओं ने इसका जीर्णोद्धार कर इसमें कई सुधार किए। अरुणाचलेश्वर मंदिर भी चोल राजाओं ने बनवाया था। यह मंदिर 79.0677 डिग्री देशांतर पर स्थित है। जम्बूकेश्वर मंदिर करीब 1800 साल पुराना है। इसके गर्भग्रह में जल की धारा निरंतर बहती रहती है। यह मंदिर 79.0677 डिग्री देशांतर पर स्थित है। केरल में स्थित थिल्लई नटराज मंदिर 79.6935 डिग्री देशांतर पर स्थित है। इसका निर्माण आकाश तत्व के लिए किया गया है। यह मंदिर महान नर्तक शिव के नटराज रूप को समर्पित हैं। चिदंरबरम में स्थित इस मंदिर की दीवारों पर नृत्य की 108 मुद्राओं का सबसे प्राचीन चित्रण हैं। रामेश्वरत ज्योतिर्लिंग तमिनलाडू में स्थित है। यह मंदिर 79.3174 डिग्री देशांतर पर स्थित है। भागवान श्रीराम ने रावण की लंका पर चढ़ाई करने से पहले इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण यौगिक गणना के आधार पर एक सीधी रेखा में इनके निर्माण के कालखंड में संभव हो पाया था। यह भी एक धारणा है कि इन मंदिरों का निर्माण कैलाश मानसरोवर को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

  उज्जैन के महाकाल से ज्योतिर्लिगों की दूरी भी अत्यंत सोच-समझकर तीन अंकों की दूरी पर निर्धारित की गई है। उज्जैन से सोमनाथ की दूरी 777 किमी, ओंकारेश्वी की 111, भीमाशंकर 666, काशी विश्वनाथ 999, मल्लिकार्जुन 999, केदारनाथ 888, त्रयंबकेश्वर 555, बैजनाथ धाम 999, रामेश्वरम 1999 और घृष्णेश्वर 555 किमी की दूरी पर स्थित हैं। उज्जैन देश के मानचित्र पर 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र तट से लगभग 1658 फीट की ऊंचाईं पर बसा प्राचीन नगर है। हमारे पूर्वजों की यह ऐसी अद्वितीय प्रोद्यौगिकी थी, जिसे आधुनिक उपकरणों एवं संचार उपग्रहों से जुड़ा विज्ञान भी नहीं जान पाया है।   

                     ■

सम्पर्कः शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र.

मो. 09425488224, 09981061100


  

  

        


1 comment:

मेरी अभिव्यक्तियाँ said...

रोचक एवं ज्ञानवर्धक आलेख।