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Mar 7, 2024

अनकहीः रंगों और उमंगों की बौछार

 - डॉ. रत्ना वर्मा

इस बार फागुन में रंगों के बौछार तो होगी ही, साथ ही एक और भारी बौछार होने वाली है और वह है चुनावी बौछार। होली का त्योहार तो दो दिन की रंगों भरी मस्ती धमाल के बाद समाप्त हो जाएगा और रंग भी दो दिन में फीका पड़ जाएगा, परंतु चुनावी बौछार दो दिन की नहीं होती। चुनाव की तारीख की घोषणा होने के साथ ही मतदान के दिन तक  चुनावी वादों, इरादों और लुभावने भाषणों की बौछार लगातार चलती ही रहेगी। यह तभी रुकती है, जब  तक नतीजे सामने नहीं आ जाते। 

 इन दिनों के चुनाव रंग और फागुनी रंग में एक और समानता देखने को मिल रही है और वह है – होली में विशेषकर ब्रज की होली में  हास- परिहास के साथ गारी गीत गाने की परंपरा है, जिसका लोग बुरा नहीं मानते। उन्हें  होली गीतों की गाली गाली नहीं लगती वह प्रेम के रंगों में पगा कटाक्ष होता है, जो माधुर्यरस से भरा होता है। कुछ इसी तर्ज पर चुनावी भाषणों और राजनेताओं के वक्तव्यों में देखने को मिलता है; पर यहाँ  दोनों में भारी अंतर है। चुनावी गालियों ने तो सारी सीमाएँ लाँघ दी हैं। लोग एक दूसरी पार्टियों की और व्यक्तियों की ऐसी छीछालेदर करते हैं कि यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या हम उसी देश के नागरिक हैं, जो अपनी संयमित भाषा, भव्य सांस्कृतिक विरासत और एकता के लिए पहचाने जाते हैं। जबकि यह हम सब जानते हैं- भाषा में संयम रखना हमारी सांस्कृतिक समृद्धि के लिए बहुत आवश्यक है।  किसी संप्रदाय को राष्ट्र के ऊपर बताना, वर्ग विशेष को आहत करने के लिए टिप्पणी करना, ये सब देश को कमजोर करने वाले वक्तव्य हैं, ऐसी बातों से जनता का विश्वास आहत होता है।  

जिस प्रकार आज के समय में होली सिर्फ हुड़दंग मचाने, पार्टी करने और खाने- पीने के अलावा रेन डांस जैसे हंगामों में लाखों गैलन पानी बहाने तक ही सिमटकर रह गई है, उसी तरह चुनावी रंग भी बदरंग हो गए हैं। यद्यपि चुनावी रंग और होली के  इस रंग में भी जमीन- आसमान का अंतर है, चुनावी रंग में जनता अपने मत और विचार व्यक्त करती है तथा देश के भविष्य का रंग- रूप  सब मिलकर तय करते हैं,  जबकि फागुन के त्योहार होली में लोग आपसी भाईचारे के साथ एक दूसरे के जीवन में प्रेम और उमंग का रंग भरते हैं। हाँ इतना अवश्य कह सकते हैं कि चुनाव और होली दोनों में ही एकता और विविधता का महत्त्व होता है। तो क्यों न इसी महत्त्व को देखते हुए हम भारतीय संस्कृति के अपने मूल स्वरूप, जिसमें कभी होता था गीत- संगीत, नाच- गान, उमंग- उत्साह जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाता था,  उसे एक बार फिर से जगाएँ, ताकि इस त्योहार को प्रेम और सौहार्द के साथ मनाते हुए अपने परिवार और समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर रंग बिरंगी खुशियों का आनंद ले सकें।  

तो फागुनी माहौल तो बनने लगा है  फिर वह रंग चाहे चुनावी हो या फागुनी, क्यों न इसे अपनी संस्कृति से जोड़ते हुए गुम हो चुकी कुछ परम्पराओं को पुनर्जीवित करते हुए एक स्वस्थ माहौल का निर्माण करें और इसे एक सामाजिक और राष्ट्रीय अनुष्ठान के रूप में मनाकर समृद्धि और सहयोग के मूल सिद्धांतों से जोड़ दें। जैसे - सामूहिक रूप से वृक्षारोपण करके, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करके, पानी बचाओ अभियान चलाकर, जनसंख्या नियंत्रण के लिए पहल करके और शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे रचनात्मक काम करके इन दोनों ही उत्सव को रंगारंग बना सकते हैं।  सोने में सुगन्ध तो तब हो जाएगी, जब  परंपरागत गीतों, कथाओं, और पौराणिक किस्सों को नई पीढ़ी के साथ साझा करते हुए अपने मौलिक सिद्धांतों को भी बचाए रखें। 

इन सबके लिए अलग से कोई विशेष प्रयास करने की जरूरत भी नहीं होगी। आप होली के लिए पकवान बनाते ही हैं, रंग गुलाल का आयोजन भी करते हैं, दोस्तों के घर जाते हैं या थीम पार्टी करते हैं, बस इन्ही के बीच किसी एक विषय को केन्द्र में रखकर उत्सव का कलेवर बदल दें।  यही बात चुनावी उत्सव में भी लागू की जा सकती है। अपनी अपनी पार्टी का एजेंडा लेकर नेता चुनावी सभाएँ करते हैं, गाँव - गाँव में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, तो इन्हीं सबके बीच जनता से मात्र वादे न करके उनकी समस्यओं को गंभीरता से सुनें और निराकरण करने की पहल तुरंत शुरू कर दें न कि वोट के बदले सहायता का अश्वासन दें। इसके लिए  आपको जनता में विश्वास पैदा करना होगा और यह तभी संभव है जब आप अपने प्रति इमानदारी बरतेंगे। 

पैसे और ताकत के बल पर आप चुनाव तो जीत सकते हैं, पर जनता का दिल तभी जीतेंगे, जब उनसे जुड़कर काम करेंगे अन्यथा पाँच साल बाद आप फिर उनके सामने होंगे तब जनता आपको वोट न देकर बता देती है कि आपने कहाँ गलती की है। इसके लिए भी प्रत्येक भारतीय को एक जागरूक नागरिक होने का कर्त्तव्य निभाना होगा। यह तभी संभव होगा जब आपको राजनैतिक पार्टियों के किए हुए कार्यों की, अपने संविधान की, नियम- कानून की, आपके लिए किए जा रहे कार्य योजनाओं की सही जानकारी होगी। 

तो आइए, इन दोनों त्योहारों का स्वागत रंग और उल्लास के साथ करें तथा प्रेम और सौहार्द के साथ रंग खेलेते हुए देश की प्रगति और विकास के लिए अपने बहुमूल्य वोट का इस्तेमाल करें। वैसे ‘आदर्श बाराबंकवी’ के शब्दों में ये बात भी सही है कि- 

कर रहा हूँ फिर सभी सौहार्द की बातें वही,

और ये भी जानता हूँ मानेगा कोई नहीं।

 सुधी पाठकों को चुनावी और फागुनी होली दोनों के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। 


6 comments:

विजय जोशी said...

आदरणीया,
बहुत सटीक बात कही है आपने। सुमधुर दुर्भावनारहित हास परिहास युक्त गाली भी बहुत आनंद का प्रसंग है। इसीलिये बरसाने की होली जग प्रसिद्ध है। कृष्ण गोपी उलाहना पूर्ण संवाद मन में तरंग का प्रसंग है।
पर राजनीति तो अब काजल की कोठरी हो गई है। जितना ऊंचा आदमी उतनी नीची बात। यह समाज के पतन की ओर भी एक इशारा है।
- समय समय की बात है समय समय के योग
- लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग
आपकी लेखनी में साहस, शुचिता तथा सामर्थ्य का अद्भुत संगम है। सो हार्दिक बधाई सहित सादर

रत्ना वर्मा said...

आपकी शुभकामनाओं के लिए मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। आपके समर्थन और आपके शब्दों से मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। आपका साथ और समर्थन मेरे लिए अत्यंत मूल्यवान हैं। सादर 🙏

Anonymous said...

सार्थक, सटीक सम्पादकीय। वास्तव में आज सौहार्द और प्रेम-भाव की आवश्यकता है। त्योहार केवल मनोरंजन या परम्पराओं को निभाने के लिए नहीं मनाए जाते अपितु शिक्षा भी देते हैं। चुनावी माहौल भी बदलना चाहिए। आपकी कहीं अनकही बात सदैव सोचने को विवश करती है। हार्दिक बधाई

Anonymous said...

सुदर्शन रत्नाकर

रत्ना वर्मा said...

आपके शब्दों के लिए धन्यवाद!
प्रेम और सौहाद्र ही हमारे रिश्तों की मजबूत बुनियाद हैं जो हमारे जीवन को सजग, संवेदनाशील और खुशहाल बनाते हैं। आपका हार्दिक आभार सुदर्शन जी l

डॉ दीपेन्द्र कमथान, बरेली said...

श्रद्धेय रत्ना जी
आप कुछ भी हों ! आपने जो कुछ भी लिखा हो ! उसके सार में वेदना एवं संवेदना ही होगा इसके परे कुछ नहीं होगा और शायद इसके सिवा कुछ और हो भी नहीं सकता है।

व्यक्ति के जीवन के दो सिरे माने गए हैं। व्यक्ति के जीवन में मूल रूप से वेदना एवं संवेदना से परे कुछ भी नहीं।

शायद, मानव सभ्यता का यह एक उच्चतम विचार है।

विरोध, विद्रोह, अलोचना एवं समालोचना करना व्यक्ति के व्यक्तिव का सकारात्मक गुण है, यह उसके व्यक्तित्व के जीवंतता का परिचायक है।

जीवन के बारे में, देशकाल के बारे में कितना कुछ लिखा गया और कितना कुछ लिखा जाएगा और जो भी लिखा जाएगा वह उस घटना का, समय का, एक दृष्टिकोण होगा जोकि संभवतः आलोचना एवं समालोचना से प्रभावित होगा।
आपकी लेखनी की चिंता को साधुवाद !

फागुन और चुनावी फागुन की हार्दिक बधाई

सादर !