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Mar 7, 2024

दोहेः उड़त अबीर गुलाल

 


-  ज्योतिर्मयी पंत

 1

जली होलिका अग्नि में, बचे भक्त प्रह्लाद।

रंगोत्सव के पर्व में, मस्ती संग आह्लाद।।

2

यमुना तट पर गोपियाँ, खेलन आई रास।

कृष्ण प्रेम में रंग गईं, नाचें भर उल्लास।।

3

भर पिचकारी रंग से, भीग रहे सब संग।

ग्वाल बाल की टोलियाँ, मस्ती भरे उमंग।।

4

नभ में रंगी मेघ हैं, उड़त अबीर गुलाल।

सत रंगी धरती हुई, जन जन रंगे भाल।।

5

टेसू सरसों दे रहे , रंगों की सौगात।

बगिया फूलों से सजी, होली की शुरुआत।।

6

ढोल मंजीरे बज रहे, गाएँ फगुआ राग।

घर आँगन रौनक बढ़े, पर्व मिलन अनुराग।।

7

 रंग भरे सब चेहरे, मुश्किल है पहचान।

भेद भाव सब मिट रहे, सब हैं एक समान।।

8

शर्बत ठंडाई मिले, गुजिया संग पकवान।

रंग अबीर गुलाल से, सबका हो सम्मान।।


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