- ज्योतिर्मयी पंत
1
जली होलिका अग्नि में, बचे भक्त प्रह्लाद।
रंगोत्सव के पर्व में, मस्ती संग आह्लाद।।
2
यमुना तट पर गोपियाँ, खेलन आई रास।
कृष्ण प्रेम में रंग गईं, नाचें भर उल्लास।।
3
भर पिचकारी रंग से, भीग रहे सब संग।
ग्वाल बाल की टोलियाँ, मस्ती भरे उमंग।।
4
नभ में रंगी मेघ हैं, उड़त अबीर गुलाल।
सत रंगी धरती हुई, जन जन रंगे भाल।।
5
टेसू सरसों दे रहे , रंगों की सौगात।
बगिया फूलों से सजी, होली की शुरुआत।।
6
ढोल मंजीरे बज रहे, गाएँ फगुआ राग।
घर आँगन रौनक बढ़े, पर्व मिलन अनुराग।।
7
रंग भरे सब चेहरे, मुश्किल है पहचान।
भेद भाव सब मिट रहे, सब हैं एक समान।।
8
शर्बत ठंडाई मिले, गुजिया संग पकवान।
रंग अबीर गुलाल से, सबका हो सम्मान।।
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