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Mar 7, 2024

लघुकथाः क्वालिटी टाइम

  - अर्चना राय

अरसे बाद दोनों घर में अकेले थे। मौसम भी सुहाना हो रहा था। घने बादल, ठंडी हवा के साथ रिमझिम बारिश की फुहारें कुछ अलग ही समाँ बाँध रही थी। पति हमेशा की तरह कमरे में  ऑॅफिस की फाइलों में व्यस्त थे।

"यह लीजिए, चाय के साथ आपके पसंद के प्याज के पकोड़े।"- पत्नी ने पकौड़ा उनके मुँह में डाल कर, मुस्कुराते हुए कहा।

 कितने समय बाद आज वह पत्नी को भर नजर देख रहे थे। अचानक उनके मशीनी शरीर में इंसानी स्पंदन महसूस होने लगा। आज पत्नी कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी या वे ही थोड़ा रूमानी हो रहे थे, कहना मुश्किल था।

"तुम भी, तो मेरे पास आकर बैठो।"- पत्नी का हाथ प्यार से पकड़ते हुए कहा।

"अरे!...आप खाइए, मुझे रसोई में काम है।" - पत्नी ने बनावटी  आवाज में कहा।

 "बैठो न! आज हम कितने दिनों बाद, घर में अकेले हैं, वर्ना सारा दिन घर और बच्चों में व्यस्त होती हो।"

"आपके पास भी कहाँ टाइम रहता है। दिन भर आफिस, और घर पर भी फाइलों में ही डूबे रहते हैं।"

"क्या करूँ? इस बार मुझे प्रमोशन चाहिए ही है। तीन साल हो गए एड़ी चोटी का जोर लगाते, अब, तो मेरे जूनियर भी मुझ से आगे निकल गए हैं।"

"चिंता न कीजिए, इस बार आपको जरूर तरक्की मिलेगी। मैंने भगवान से प्रार्थना की है।" 

"अच्छा यह सब छोड़ो, आओ कुछ अपनी बातें करते हैं।"- पति ने शरारत से आँखें चमकाते हुए कहा।

 ठंडी हवा के झोंके के साथ, सौंधी खुशबू ने आकर कमरे को भर दिया।

"हटिए न! आप भी।" -पत्नी के गाल शर्म से गुलाबी हो गए।

"सुनो न!मुझे तुमसे कुछ कहना है।"- पति ने प्यार से  कहा।

"अरे हाँ! याद आया मुझे भी आपसे कुछ बताना है।"- अचानक से पत्नी के चेहरे का गुलाबी रंग उड़ गया।

"कहो? "

 "बिट्टू के स्कूल से फीस भरने का नोटिस आया है। पूरे पाँच हजार भरने हैं।"- पत्नी ने चिंतित होते हुए कहा।

  कमरे  में फैली खुशबू कुछ कम सी होने लगी। पति के चेहरे पर भी चिंता की लहर दौड़ गई।

"सब इंतजाम हो जाएगा।"- अपने आप को संभाल कर पुनः पत्नी को बैठाते हुए बोला।

 "और हाँ...गाँव से भी माँ जी का फोन आया है, इस बार फसल खराब हो गई है। , तो साल भर का अनाज नहीं भेज पाएँगी, उसका इंतजार हमें ही करना पड़ेगा।"

"अच्छा!" पति का चेहरा अब  तनाव ग्रस्त हो गया।

"कल मकान मालिक भी धमका रहा था। पिछले महीने, चाचा की बेटी की शादी ने घर का सारा बजट ही बिगाड़ दिया है।"-पत्नि अपनी धुन में कहे जा रही थी।

 "हाँ..हाँ देखता हूँ। "-अचानक से पति ने पत्नी का हाथ छोडकर, फाइल उठा ली और पन्ने पलटने लगा।

"अरे! आप भी , तो कुछ कह रहे थे न? " - पत्नी ने कुछ सोचते हुए कहा।

"ऊँ... हां कल से ऑफिस के डब्बे में दो रोटियाँ और ज्यादा रख देना। सोचता हूँ ओवरटाइम  कर लूँ।"

अब कमरे से खुशबू पूरी तरह उड़ चुकी थी। और धीरे -धीरे उसका इंसानी शरीर मशीन में तब्दील होने लगा। 

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सम्पर्कः भेड़ाघाट जबलपुर म. प्र.


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