- डॉ. दीपेंद्र कमथान
- गूँगी फिल्म उद्योग को जुबान – ‘आलमआरा’,
प्रदर्शन - 14 मार्च 1931, मैजिस्ट्रिक सिनेमा, गिरगाँव मुम्बई,
- डब्ल्यू. एम. खान एवं जुबैदा - पहले गायक/ गायिका,
- दे दे खुदा के नाम पे प्यारे... हिंदी फिल्म के पहले गाने के रूप में पहचाना गया।
आदमी ने अपनी जैसी परछाइयों का अविष्कार एक सदी पूर्व किया था, वह चाहता था कि परछाइयाँ उसकी तरह चलें बोलें बात करें हँसें रोएँ । उसकी मात्र ‘परछाइयों’ वाली परिकल्पना सन् 1913 को भारतीय फिल्मी इतिहास की पहली कथा फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ के रूप में अवतरित हुई । यह परछाइयाँ मात्र मूक परछाइयाँ ही थीं । इन परछाईयों को ‘जुबान’ देने की आधारशिला रखने वाले महान व्यक्तियों में आर्देशिर मारवान ईरानी का नाम प्रमुख है । 05.12.1886 को पूना में जन्में ईरानी ने यूरोपीय देशों में फिल्मों को आवाज़ मिलने के बाद स्वयं यूरोप में रहकर ‘ध्वनि’ की तकनीक को समझा एवं सारे जरूरी उपकरण क्रय कर भारत लौटे और सन् 1926 को स्थापित अपनी इम्पीरियल फिल्म कं. के बैनर तले फिल्म ‘आलमआरा’ का निर्माण शुरू किया । खुद की पटकथा पर भारत की पहले हिन्दी-उर्दू भाषा में निर्मित बोलती फिल्म एक कास्ट्यूम ड्रामा फिल्म थी, जिसके प्रमुख कलाकार मास्टर विठ्ठल, जुबैदा, जिल्लो, पृथ्वीराज कपूर ![]() |
मैजेस्टिक सिनेमा में आलम आरा का पोस्टर |
(फिल्म में खलनायक का चरित्र निभाया), डब्ल्यू.एम. खान जगदीश सेठी (हिन्दी सिनेमा के पहले स्नातक), सुशीला, एलिज़र थे । संवाद जोज़फ डेविड, फोटोग्राफी आदिल ईरानी एवं संगीत फिरोजशाह मिस्त्री एवं बेहराम ईरानी का था ।
दे दे खुदा के नाम पे प्यारे, बदला दिलवायेगा यार अब तू सितमगारों से, रूठा है आसमान, तेरी कटीली निगाहों ने मारा, दे दिल को आराम ऐ साकी गुलफाम, भर भर के जाम पिला जा और दरस बिन मोरे हैं तरसे नयना प्यारे, जब यह मूल रूप से रिलीज़ हुआ, , तो मुहम्मद वज़ीर खान के गीत ‘दे दे खुदा के नाम पे प्यारे’ ने लोकप्रियता हासिल की और इसे हिंदी फिल्म के पहले गाने के रूप में पहचाना गया। शेष गीत अधिकतर ज़ुबैदा द्वारा गाए गए थे; लेकिन फ़िल्म के क्रेडिट में, न तो संगीत निर्देशक और न ही गीतकार का उल्लेख किया गया था।
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आर्देशिर ईरानी |
सम्पर्कः 35 / जे .10, रामपुर गार्डन, बरेली. 243001
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