उदंती.com,
वर्ष 2, अंक 10, मई 2010
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संगीत को देवदूतों की भाषा ठीक ही कहा गया है।
- कार्लाइल
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वर्ष 2, अंक 10, मई 2010
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संगीत को देवदूतों की भाषा ठीक ही कहा गया है।
- कार्लाइल
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- अनकही: उड़ जा रे पंछी ...
- संस्कृति :आओ संवारें अपनी नदियां - नवनीत कुमार गुप्ता
- कानून :विदेशों में सुरक्षित नहीं हैं भारत की बेटियां - मनोज राठौर
- यात्रा संस्मरण: चोपता की वह चांदनी रात...- मुन्ना के. पाण्डेय
- वन्य जीवन :वनों की रक्षक भील महिलाएं - सुभद्रा खापर्डे
- जरा सोचें : आप कितना पानी पीते हैं? - उदंती फीचर्स
- खेल खेल में : आईपीएल बोले तो... - अविनाश वाचस्पति
- संरक्षण : कहां गई आंगन में फुदकने वाली गौरैया? - कृष्ण कुमार मिश्र
- कविता : मां चाहती है / गौरैया बहुत परेशान - रामेन्द्र जनवार
- लघुकथाएं: फीस / बड़ा होने पर - गंभीर सिंह पालनी
- कहानी: नई रोशनी - रवीन्द्रनाथ टैगोर
- 21 वीं सदी के व्यंग्यकार : व्यंग्य ऊपर व्यंग्य - अख्तर अली
- किताबें
- खोज: टमाटर देख भागेंगे मच्छर?
- चमत्कार : प्रहलाद जानी- वे हवा खा कर जिंदा हैं... - उदंती फीचर्स
- इस अंक के लेखक
- आपके पत्र/ इन बाक्स
- रंग बिरंगी दुनिया
- वाह भई वाह
3 comments:
सामने जो चिड़िया का दृश्य मानो छत्तीसगढ़ की शान में बैठी हो इसे तो अभ्यारण में छोड़ देना चहिये|
हमेशा की तरह यह अंक भी बहुत ही मनभावन बन पड़ा है। मज़े की बात यह भी कि इस बार वेब से पहले छपी हुई प्रति पहले हाथ में आ गई। गौरैया पर जानकारी और उसकी तस्वीरे बहुत सुंदर हैं।
सुन्दर साज-सज्जा व बेहतर आलेखों के साथ उंदती तो मेरे मन को भा गयी!
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