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Oct 25, 2017
उदंती.com अक्टूबर-2017
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अक्टूबर-
2017
जलाओ दिये
,
पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर
,
कहीं रह न जाए
-
गोपाल दास नीरज
-अनकहीः
कितने अँधेरे और कब तक?
- रत्ना वर्मा
-
प्रकाश पर्वः
‘
तमसो मा ज्योर्तिगमय
’
- डॉ. कविता भट्ट
-सूचना क्रांति:
सोशल मीडिया और हम
- श्याम बाबू शर्मा
-ऋतु:
अनुपम शारदीय आनन्द
- जी.के. अवधिया
-प्रकृति:
पारिजात
,
हरसिंगार और बाओबाब
- कालूराम शर्मा
-हाइकु गीत:
भोर कहाँ है
- रमेशराज
-प्रेरक:
जीवन को बेहतर बनाने वाली कुछ बातें
-हिन्दी ज़ेन से
-व्यंग्य:
मेरी आदर्श जीवन शैली
- हरि जोशी
-कविता:
जंगल मौन है?
- अनुभूति गुप्ता
-कहानी:
दर्द कतरा कतरा
- प्रेम गुप्ता ‘मानी’
-वसीयत:
बुढ़ापे को समय रहते सुरक्षित कीजिए
- चन्द्रप्रभा सूद
-सेहत:
मस्तिक को तंदुरुस्त रखता है संगीत
- डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
-डायरी के पन्नों से
: यादों में बिखरे चार रंग
-डॉ. आशा पाण्डेय
-कविता:
पिता की अस्थियाँ...
- सुशील यादव
-लोककथा:
बगुला पत्नी
- डॉ. अर्पिता अग्रवाल
-दो कविताएँ:
1- तुम्हारी नाराजगी
,
2- उन मुस्कराहटों में
- पीहू
-मौसम:
...धरा ने ओढ़ ली सफेद चादर
- रश्मि शर्मा
-जीवन दर्शन:
कुछ अलग करें...
- विजय जोशी
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