वर्ष - 13, अंक - 1
जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के
गौरव
का अनुभव नहीं है,
वह उन्नत नहीं हो सकता।
-डॉ. राजेंद्रप्रसाद
आलेखः कब कटेगा यह भ्रम-जाल?-डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
आलेखः हर घड़ी बदल रही है, रूप जिंदगी…-डॉ. महेश परिमल
आलेखः हर घड़ी बदल रही है, रूप जिंदगी…-डॉ. महेश परिमल
रंगमंचः विन्सेंट ए फ्लैश बैक - विनोद साव
कहानी: अंतराल -विजय जोशी
संस्मरणः खंडित संवाद -निर्देश निधि
कहानी: अंतराल -विजय जोशी
संस्मरणः खंडित संवाद -निर्देश निधि
किताबेंः बनजारा मन: प्रवहमान रचनाशीलता की द्योतक -डॉ. कविता भट्ट
कविताः शृंगार है हिन्दी -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कविताः शृंगार है हिन्दी -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
6 comments:
उदंती का सितम्बर-20 अंक भी अन्य अंकों की भांति समसामयिक सन्दर्भों से युक्त सारगर्भित सामग्री का अद्भुत और अनुपम खजाना सँजोये है। एक से एक बेहतरीन आलेख, संस्मरण, लघुकथाएं, कविताएं इस अंक में उपस्थित हैं। डॉ गोपालबाबू शर्मा का व्यंग्य, हिमांशु जी की कविता विशेषरुप से प्रभावशाली।
सम्पादक महोदय साधुवाद के पात्र हैं
हमेशा की तरह यह अंक भी पढ़ने योग्य ��
बहुत आकर्षक अंक, शानदार साज सज्जा के साथ।
अंक अच्छा लगा कहुं तो न्याय नहीं हो पायेगा संपादिका और लेखक दोनों के प्रति, क्योंकि हंस के समान मोती सी रचनाएं चुनकर, सहेजकर, सुन्दर आकार देकर पाठकों के सामने परोसना असंभव भले ही न हो, पर कठिन तो अवश्य ही है। प्रशंसा बहुत सतही सुख देगी, मैं तो श्रद्धावनत हूं इन पलों में संपादिका महोदया के प्रति। सादर साधुवाद
हर बार की तरह निखरते रूप में उत्कृष्ट रचनाओं से सुसज्जित उदंती का सित. अंक पढ़ने को मिला । किसी भी पत्रिका की श्रेष्ठता का मापदंड उसका सम्पादकीय और चयनित रचनाओं से मापा जाता है।इसका श्रेय डॉ रत्ना वर्मा जी एवं परामर्श सम्पादक रामेश्वर काम्बोज जी को जाता है। ।ज्ञानवर्धक, सटीक जानकारी देते रोचक आलेख, जीवनी अंश संस्मरण, कहानी,कविताएँ, लघुकथाएँ सम्पूर्ण सामग्री पठनीय है। कविता भट्ट जी द्वारा बनजारा मन, काव्य संग्रह की समीक्षा सारगर्भित एवं सुंदर है। सभी रचनाकारों को बधाई ।
आप सबने सराहा इसके लिए हार्दिक धन्यवाद... विश्वाश है आप सबका साथ और सहयोग सदा बना रहेगा...
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