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Sep 10, 2020

किताबें

बनजारा मन: 

प्रवहमान रचनाशीलता की द्योतक 

- डॉ. कविता भट्ट

हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं पर निरन्तर अपनी उत्कृष्ट लेखनी चलाने वाले तथा नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहित करने वाले वरिष्ठ एवं वरेण्य साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी का काव्य-संग्रह ‘बनजारा मन’ पढ़ा।  आख़िर मन बंजारा ही तो होता है। अपने डेरे बदलता है और प्रतिदिन आशा-निराशा से इसका संघर्ष एक अनन्त विषय है। इस विषय को शब्दों में समायोजित और शृंखलाबद्ध करने का एक अभिनव प्रयास है-बनजारा मन। इस संग्रह को इन  तीन विभागों में सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत किया गया -तरंगमिले किनारे और निर्झर। इनमें से अधिकतर काव्यकृतियाँ विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैंये कविताएँ साक्षी हैं-रचनाकार के जीवन के विविध पक्षोंप्रवाहमान चिन्तनशीलतासंघर्ष और सामाजिक चैतन्य की। पहले खंड की ही एक कविता बनजारा मन को शीर्षक के रूप में चयनित किया गया है। यह शीर्षक पूरे संग्रह की रचनाओं को समाहित किए हुए है। यह प्रतिबिम्बित करता है-आत्मबोधविस्तारचेतनाजागृति और अनन्त आत्मज्ञान को भी। साथ ही इसमें व्यावहारिक जगत् के क्रिया-कलाप से फलीभूत मन के ज्वार-भाटाउतार-चढ़ाव और आकर्षण-विकर्षण इत्यादि को भी भली प्रकार लिपिबद्ध किया गया है। यह संग्रह आधुनिक काल की कशमकश से व्युत्पन्न विसंगतियोंविद्रूपताओंविरक्ति और वितृष्णा को भी शब्दचित्र में बाँधता है।

 तरंग की सभी रचनाएँ अत्यंत सुन्दर हैंकिन्तु तूफान सड़क परइस शहर मेंमन की बातेंप्यासे हिरनछोटी-सी अँजुरीसारे बन्धन भूल गए तथा सहे नदी इत्यादि रचनाएँ मुझे भीतर तक छू गईं। इन रचनाओं में वर्तमान परिदृश्य के बहुविध पक्ष परिलक्षित होते हैं। वैयक्तिक और सामाजिक विषयों के कथ्य हैं ये कविताएँ- पत्थरों के / इस शहर में / मैं जब से आ गया हूँ,/ बहुत गहरी / चोट मन पर / और तन पर खा गया हूँ।

ये भाव आज प्रत्येक व्यक्ति के मन के हैं। कोई ऐसा साथी नहींजिससे हम अपना दुःख कह सकें। जो हमारे घावों पर मरहम लगा सके। यह कविता इस बात को बहुत ही सुन्दर ढंग से विवेचित करती है।

छोटी-सी अँजुरी कविता अथाह आत्मविश्वासआशावाद और सकारात्मकता से ओत-प्रोत भावों को समाहित किए हुए है। कवि की कल्पना और विश्वास कहाँ तक पहुँच सकते हैंयह पठनीय है इस कविता में।

दूसरा खण्ड मिले किनारे शीर्षक से है। बहुत ही सुन्दर उपशीर्षक के द्वारा रचनाकार सत्योंकथ्यों और तथ्यों को प्रस्तुत करने में सफल हुए हैं।  जितनी कीलें-कविता में रचनाकार ने मन के भावों और मर्मों को अत्यंत गहन ढंग से अभिव्यक्त किया है। यह कविता प्रत्येक दिन हर किसी व्यक्ति के मन में उठने वाले भावों का भी शब्द-चित्रांकन है।

इसके साथ ही शीर्षक हेतु प्रयुक्त कविता मन बनजारा अत्यंत सुन्दर ढंग से लिखी गयी प्रेम की कविता हैयह उन्मादसमर्पण और रोमांच का सम्मिश्रण है-दर्पण में तुमने जब रूप निहारा होगा / तब माथे पर चमका वह ध्रुव तारा होगा।

निर्झर इस काव्य-संग्रह का तीसरा खण्ड है। इसमें हार नहीं मानती चिड़िया अतिसुन्दर दृश्य प्रस्तुत करती है- तिनका तिनका चुनकर / नीड़ बनाती है चिड़िया/

अब बच्चे-बच्चे नहीं रहे। मशीनीकरण व भौतिकता पर गहरा तंज है यह कविता-अब बच्चेबच्चे नहीं रहे / बूढ़े हो गए हैं।

एक और बहुत ही सुन्दर कविता है- बीमार ही होती हैं लड़कियाँ- मैं नहीं रहूँगी- / लेकिनफिर भी जीवित रहूँगी- / गुलाबों की क्यारी में /  तुलसी-चौरे में।

सभी कविताएँ उत्कृष्ट हैंकिन्तु सरल भाषा में लिखी गई प्रवहमान रचनाशीलता कि द्योतक हैं। भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों की कसौटी पर खरा उतरता पठनीय एवं संग्रहणीय संग्रह हैं- बनजारा मन।

पुस्तक- बनजारा मन (काव्य-संग्रह) : रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, पृष्ठः 148, मूल्यः 300 /-रुपयेप्रथम संस्करणः 2020, अयन प्रकाशन, 1/20, महरौलीनई दिल्ली-110030

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