1- अवरोध
-नन्दा
पाण्डेय
सीमा स्कूल से आते ही कपड़े सीने की मशीन लेकर
बैठ गई। आज, उसे हर हाल में सारे ऑर्डर पूरे करने ही होंगे।
कल माँ को लेकर डॉक्टर के पास जो
जाना है।
माँ के बिना अपने जीवन की कल्पना
से सिहर उठती है सीमा।
माँ को ठीक होना ही होगा।
जब तक माँ स्वस्थ थी उसे पैसों की
कोई चिंता नहीं होती थी। माँ- बेटी दोनों मिलकर इतना कमा लेती थी कि आराम से दिन
गुजर रहा था।
इस कोरोनाकाल में माँ का काम भी
छूट गया और लॉक डाउन ने पैसों के महत्त्व
को भी अच्छे से समझा दिया है उसे।
फिर माँ की यह
बीमारी ....ईश्वर को भी अभी ही परीक्षा लेनी थी।
‘सीमा, ये क्या स्कूल से आते ही मशीन लेकर बैठ गई।’
‘कुछ खा तो लिया होता....
माँ की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी।’
‘माँ, भूख नहीं है। फिर यह काम अधिक आवश्यक है। आज मुझे किसी भी कीमत पर सारे
आर्डर तैयार करने हैं माँ’
‘तो! तू अपनी जान दे देगी।’
नहीं माँ! क्या कह रही हो। मेहनत
से जी नहीं चुराते तुमने ही तो सिखाया है। ‘फिर मैं मेहनत कर सकती
हूँ , तभी तो कर रही हूँ।’
‘सारे ऑर्डर पूरे करने में
रात हो जाएगी। फिर तू स्कूल का काम लेकर बैठ जाएगी। बेटी, इतना
मेहनत करने की जरूरत क्या है...! अपने जिगर के टुकड़े को इतना काम करते देखकर माँ
का दिल डूबने लगता है। आज तुम्हारे बाबा होते तो....’-
माँ की नम आँखों
को देखकर सीमा उठ खड़ी हुई- ‘माँ! तुम भी न ! नाहक ही
परेशान होती हो।’
‘चलो खाना खा लेती हूँ बस!’
‘बेटी, इतने पैसों को जोड़कर क्या करना है....तुम्हारी कमाई से दाल-रोटी तो आराम
से चल जाता है बेटा...?’
रमा के हलक में रोटी फँसते-फँसते रह गई...... कैसे बताए माँ को कि ‘...माँ! तुम्हें कैंसर हो गया
है।’
‘अरे उमा, क्या हुआ कल लड़के वाले आये थे
न तुम्हारी सुमि को देखने ...?’
सब ठीक तो रहा न! ‘लड़का....कैसा
था....? और परिवार वाले...?’
कुसुम सवाल पर सवाल दागे जा रही
थी।
‘कहाँ खो गई उमा....!’
‘हूँ.... हाँ..! कुसुम ,
उमा ने चौंकते हुए कहा ‘रवि बहुत अच्छा लड़का
है... स्टेट बैंक में कैशियर है।’
‘न जाने किन कर्मों का फल
था जो इस लड़के के माँ- बाप खुद ही रिश्ता लेकर हमारे घर आए...। लड़का भी साथ ही आया
था...ऐसा नहीं कि सिर्फ़ लड़के या उसके माँ-बाप ने सुमि को पसंद किया हो- बल्कि सुमि
के हाव-भाव से भी यही लगा कि सुमि को भी यह लड़का बहुत पसंद है...मगर...।’
मायूसी में बदलता चला गया सीमा का
स्वर...।
‘जब सब कुछ ठीक था,
तो फिर मगर....क्यों लगा रही हो बीच में ?’
‘नहीं कुसुम, जाते-जाते हमारी हर उम्मीद पर पानी फेर गए वे लोग... सुमि का अरमान एक बार
फिर टूट कर बिखर गया...।’
जब सब कुछ ठीक था तब....
‘हाँ कुसुम, .. पसंद नीलामी के सामने खत्म हो गई.....जाते-जाते अपने लड़के की कीमत बता कर
गए वे लोग.....।’
-0-
3- दृष्टि
उस रात जब सब खाना खा चुके और
राजू स्वभावानुसार अभी घर नहीं लौटा था, तो एकांत पाकर शीला ने
बात शुरू की...’सुनो जी! राजू विवाह करना चाहता है।’
‘राजू विवाह करना चाहता है?’ मनोज ने पुष्टि करनी चाही।
‘हाँ ।’
‘मगर किससे?’
‘उसके ही ऑफिस में काम
करती है आरती, उसी से। आज सुबह ही उसने मुझे बताया। वह कोर्ट
में जाकर कोर्ट -मैरिज करना चाहता है।’
‘पर कोर्ट में ...क्यों?’
‘क्योंकि आरती ईसाई है।‘
‘और तुमने अनुमति दे दी?’
‘उसने अनुमति नहीं माँगी
थी।‘
‘फिर?’
‘उसने सूचित किया है।’
‘और तुमने कुछ नहीं कहा?’
‘नहीं।’
‘क्यों ?’
‘मेरे कहने या न कहने का
कोई अंतर नहीं पड़ता।’
अब वह बच्चा नहीं है,
बड़ा हो गया है।
वह जानता है कि हमारा विवाह किस
प्रकार हुआ है...।
No comments:
Post a Comment