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Sep 10, 2020

कथा


जमाई खूब रोया

- श्याम सुन्दर अग्रवाल
हरिया शादी के बाद पहली बार ससुराल गया। उसका ससुर खेत को गया हुआ था। दोपहर को डाकिया एक पत्र दे गया। सास ने पत्र हरिया को पकड़ा कर कहा, बेटा, जरा बाँच कर सुना न के लिख्या है।
हरिया को यह कहना अच्छा न लगा कि वह अनपढ़ है। पढ़ना-लिखना नहीं जानता। उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था इसलिए वह चुप रहा।
जमाई को चुप देख, सास को लगा कि पत्र में ज़रूर कोई बुरी खबर है। वहाँ आई औरतों ने भी कहा, बेटा, जल्दी बाँच कर बता, के लिख्या है।
अब हरिया क्या बोलता। पढ़ना आता, तो ही कुछ बताता। घबराहट में पत्र उसके हाथ से  गिर गया। उसकी सास ने समझा कि ज़रूर कोई रिश्तेदार मर गया है। उसका भाई बीमार था, वही गुजर गया होगा। फिर क्या था, वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। उसे रोते देख हरिया भी रोने लग गया।
हरिया का ससुर खेत से वापस आया। उसने उनसे रोने का कारण पूछा। सास बोली, मैं तो बरबाद हो गई! मेरा भाई नहीं रहा! और फिर पत्र पकड़ाते हुए कहा,लो आप भी पढ़ लो।
ससुर ने पत्र पढ़ा। पत्र में लिखा था, हम आपके पुत्र से अपनी बेटी का रिश्ता करने को तैयार हैं।…
यह खुशखबरी सुन गाँव वाले चले गए। तब ससुर ने हरिया से पूछा, बेटा, तुम क्यों दुखी हुए?
हरिया बोला, मुझे पढ़ना-लिखना नहीं आता। जब मुझे पत्र पढ़ने को कहा गया तो मुझे बहुत दुख हुआ।
यह सुनकर उसके ससुर ने कहा, दुखी न होवो बेटा, तुम अब भी पढ़ सकते हो। अच्छे काम के लिए कभी देर नहीं होती।

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