आखि़री कविता
- अशोक शाह
सूरज ने लिखी जो ग़ज़ल
वह धरती हो गई
धरती ने जो नज़्म कही
नदी बन गई
नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव
इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई
धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से
बाकी सब शोर
शाम का दीया जलाया
अँधकार के माथे पर
जैसे तिलक लगाया
जलती हुई बाती ने
गीत जो गुनगुनाया
टिमटिमाती लौ में
नाच उठा अँधियारा
मैंने देखा, तुमने भी
फैला जो अँजोर
इतना-सा ही जीवन होता
बाकी सब शोर
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लेखक के बारे में- बिहार के सीवान में जन्म। शिक्षा आई.आई.टी कानपुर एवं आई.आई.टी, दिल्ली से प्राप्त करने के उपरांत एक वर्ष तक भारतीय रेलवे इन्जिनियरिंग सेवा में कार्य। 1990 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदार्पण कर मध्यप्रदेश के 10 से अधिक जिलों में विभिन्न पदों पर कार्य। अब तक ग्यारह कविता संग्रह प्रकाशित।
देश की तकरीबन सभी पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ प्रकाशित।
सम्प्रति- भारतीय प्रशासनिक सेवा में, सम्पर्क- डी-एक्स, बी-2, चार इमली, भोपाल, मो. 9981816311
3 comments:
सुन्दर सोच और सुन्दर कविता।
बहुत उम्दा ��
बेहतरीन कविता....बधाई
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