हर घड़ी बदल रही है, रूप जिंदगी…
-डॉ. महेश परिमल
हर
घड़ी बदल रही है, रूप जिंदगी,
छाँव
है कभी, कभी है धूप जिंदगी
लोग कहते हैं कि गति ही जीवन है। इसका आशय यही हुआ कि यदि जीवन में
गति नहीं है, तो आपका
जीवन संतुलित नहीं है। आप यदि ठहर गए, तो जीवन भी ठहर जाता
है। ठहरना या थम जाने को ठहरे हुए पानी की संज्ञा देते
हुए कहा गया है कि ठहरा हुआ पानी गंदा होता है, जबकि बहता
हुआ पानी हमेशा निर्मल होता है। पर क्या गति हमेशा ही होनी चाहिए? क्या ठहराव में जीवन नहीं होता? जीवन में कई पल ऐसे
भी आते हैं, जब हम कहते हैं कि काश... समय कुछ ठहर जाता।
यानी उस वक्त भी गति होती है। कई बार ठहरना लाभकारी होता है। वह भला कैसे....
छत्तीसगढ़ी में एक शब्द है ‘अगोरना’ यानी ठहरकर प्रतीक्षा
करना। रास्ते पर कुछ दूरी से दो लोग जा रहे होते हैं, तो
पीछे वाला उसे अगोरने के लिए कहता है। यानी तुम कुछ ठहर जाओ, तो मैं भी तुम्हारे साथ हो लूँगा। इस तरह से कुछ पल का यह ठहराव व्यक्ति
को एक साथी दिला देता है। दूसरी ओर आज गति को ही जीवन मान लिया गया है। आज जो भी
बाइक बाजार में आ रही है, उसमें गति ही केंद्रीय पक्ष होता
है। कितनी जल्दी स्पीड पकड़ती है। कब वह हवा से बातें करने लगेगी? यानी गति वह भी तेज। इस तेज गति में ठहराव का कोई स्थान नहीं है। वैसे भी
बाइक और युवा के जीवन में ठहराव तो होता नहीं है। उसे सड़कों पर भागते वाहनों पर
देखा ही जा सकता है। गति में हम कई बार जीवन के सौंदर्य का रसपान नहीं कर पाते।
गति हमें ठहराव की सीख नहीं देती। कई बार हम दिखावे के लिए जो ठहराव पैदा करते हैं,
वह वास्तव में ठहराव नहीं होता। उसमें दिखावे का भाव होता है। इसे
समझने के लिए हमें उस घटना को याद करना होगा, जब 2016
में मई महीने के अंतिम सप्ताह में सोनू निगम एक भिखारी का वेश बनाकर सड़क किनारे हारमोनियम के साथ गाने लगे-हर घड़ी बदल
रही है, रूप जिंदगी, छाँव है कभी,
कभी है धूप जिंदगी। वे पूरी तल्लीनता से इस गीत को गा रहे थे,
पर लोग उन्हें अनसुना-अनदेखा कर आगे बढ़ रहे थे। कई लोगों ने उसे एक
नजर देखा, फिर आगे बढ़ गए। हाँ, कुछ आम
लोगों ने उसके गीत को सुना। बाद में सोनू निगम ने बताया कि इस दौरान एक युवक मेरे पास आया, पहले तो उसने मेरा गाना रिकॉर्ड
किया, फिर हाथ मिलाने के बहाने चुपके से बारह रुपये देकर पूछा कि बाबा, नाश्ता किया या नहीं।

एक लेखक कहते हैं कि मैंने जीवन को दिशा देने वाली किताबें फुटपाथ से
ही खरीदी है। फुटपाथ यानी वही ठहराव। हर शहर में फुटपाथ होते हैं। वहाँ किताबें ही
नहीं, जीवन को
संवारने की कई आवश्यक चीजें मिल जाती हैं। इसके लिए ठहराव का होना आवश्यक है। जीवन
की आपाधापी में केवल भागते रहने को गति मानने वाले कभी ठहरकर स्वयं को परखें। क्या
गति से ही सब कुछ पाया जा सकता है? गति बहुत कुछ दे सकती है,
पर दिल का सुकून नहीं दे सकती। सुकून तो हमें ठहराव से ही मिलेगा।
बाइक पर तेज गति से भागने वाला युवा कभी सड़क किनारे खेलते बच्चे की चंचलता को नहीं
देख पाता। जहाँ बच्चा बिंदास होकर अपने साथियों के साथ मस्ती कर रहा होता है।
यह सच है कि ‘चलना जीवन
की कहानी, रुकना मौत की निशानी’ पर कब
तक चलना है हमें? चलते रहने के लिए रुकना
भी तो आवश्यक है ना? तो क्यों न रुककर
जीवन की परिभाषा को ही समझने की कोशिश की जाए। ट्रेन में बैठकर यदि डूबते सूरज को
निहारा जाए, तो यह गति में ठहराव का अद्भुत समन्वय होगा। हम
गति में हैं, उधर सूरज ठहरा हुआ लगता है। तेजी से भागती
ट्रेन से पल-पल डूबते सूरत को देखना कितना आनंददायक होगा, कभी
कल्पना की है आपने? खुशियाँ तो हमारे ही आसपास बिखरी पड़ी है।
हम ही उसे अनदेखा कर जाते हैं। आगे बढ़ने की चाह में हम अपना सुनहरा वर्तमान खो रहे
हैं। वर्तमान को अनदेखा कर हम भविष्य की ओर भाग रहे हैं, हमारा
वर्तमान ही हमारे साथ रहकर हमारी प्रतीक्षा कर रहा है, उसके
पास है बेइंतहा खुशियाँ, आपका काम है उन खुशियों को पकड़ना,
उसमें डूबना और उसे आत्मसात कर लेना। तो कहाँ चले आप, पहले खुशियाँ तो बटोर लो….
Dr. Mahesh Parimal, T3-204 Sagar Lake View, Vrindavan Nagar, Ayodhya By pass, BHOPAL
462022, Mo.09977276257
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