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Sep 10, 2020

कविता

शृंगार है हिन्दी

 - रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

खुसरो के हृदय का उद्गार है हिन्दी।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी।।
मीरा के मन की पीर बनकर गूँजती घर-घर।
सूर के सागर- सा विस्तार है हिन्दी।।
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक।
तुलसी के मानसका विस्तार है हिन्दी।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी।।
सत्यार्थ प्रकाशबन अँधेरा मिटा दिया।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी।।
कामायनीका उर्वशी का रूप है इसमें।
आँसूकी करुण, सहज जलधार है हिन्दी।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह गोदानबन गई।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी।।
मधुशालाकी मधुरता है इसमें घुली हुई।
दिनकर की वाणी है, हुंकार है हिन्दी।।
भारत को समझना है तो जानिए इसको।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी।।

3 comments:

नंदा पाण्डेय said...

माँ की मीठी बोली है हिंदी ....बहुत बढ़िया

Sudershan Ratnakar said...

भारत का है गौरव, शृंगार है हिंदी। बहुत सुंदर

Sudershan Ratnakar said...

भारत का है गौरव, शृंगार है हिंदी। बहुत सुंदर