शुभ दीपावली
आओ अंधकार मिटाने का हुनर सीखें हम
कि वजूद अपना बनाने का हुनर सीखें हम
रोशनी और बढ़े, और उजाला फैले
दीप से दीप जलाने का हुनर सीखें हम
-शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
इस अंक में
अनकहीः अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए.... - डॉ. रत्ना वर्मा
ललित निबंधः आलोक पर्व की ज्योतिर्मयी देवी लक्ष्मी - हजारी प्रसाद द्विवेदी
कविताः दीप से दीप जले - माखनलाल चतुर्वेदी
आलेखः दीया हमारा होते ही रोशन होगी जिंदगी उनकी - डॉ. महेश परिमल
व्यंग्यः लक्ष्मी नहीं आई, आ गई महँगाई ! - गिरीश पंकज
कविताः 1. दीपक माला 2. दीपक मेरे मैं दीपों की - रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
जीवन दर्शनः ईश्वर का हाथ : सदा रखें साथ -विजय
जोशी
छत्तीसगढ़ की दीवालीः लोक संस्कृति में ग्वालिन पूजा - उदंती फीचर्स
आलेखः बड़ा महत्त्वपूर्ण है शब्दों का चयन - डॉ. आशीष अग्रवाल
संस्मरणः टहनी सचमुच माँ को बुला लाई थी ! - निर्देश निधि
लघुकथाः फिर से तैयारी - डॉ. कविता भट्ट
बाल एकांकीः चक्रव्यूह - कमला निखुर्पा
बाल कविताः तितली रानी.. -
प्रियंका गुप्ता
बाल कविताः सवेरा, सूरज की सवारी - डॉ. अर्पिता अग्रवाल
बाल कथाः कंजूस और सोना - सूर्यकांत
त्रिपाठी निराला
लघुकथाः हिसाब बराबर - डॉ. आरती स्मित
कविताः अपनी दीवाली - डॉ. उपमा शर्मा
स्वास्थ्यः क्यों कुछ लोग बहुत कम बीमार पड़ते हैं - हिन्दी ज़ेन
कविताः सब बुझे दीपक जला लूँ - महादेवी वर्मा
प्रदूषणः हम भारत में नियमों का पालन क्यों नहीं करते ? - स्रोत फीचर्स
कविताः 1. आज फिर से तुम... 2, आत्मदीप - हरिवंशराय बच्चन
1 comment:
बहुत सुंदर चयन
Post a Comment