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Nov 1, 2021

महादेवी वर्मा की कविता

 सब बुझे दीपक जला लूँ ! 

सब बुझे दीपक जला लूँ

घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूँ

 

क्षितिज कारा तोडकर अब

गा उठी उन्मत आंधी,

अब घटाओं में न रुकती

लास तन्मय तडित बांधी,

धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूँ!

 

भीत तारक मूंदते द्रग

भ्रान्त मारुत पथ न पाता,

छोड उल्का अंक नभ में

ध्वंस आता हरहराता

उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!

 

लय बनी मृदु वर्तिका

हर स्वर बना बन लौ सजीली,

फैलती आलोक सी

झंकार मेरी स्नेह गीली

इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूँ!

 

देखकर कोमल व्यथा को

आंसुओं के सजल रथ में,

मोम सी सांधे बिछा दीं

थीं इसी अंगार पथ में

स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूँ!

 

अब तरी पतवार लाकर

तुम दिखा मत पार देना,

आज गर्जन में मुझे बस

एक बार पुकार लेना

ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूँ!

आज दीपक राग गा लूँ!


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