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Nov 1, 2021

आलेखः दीया हमारा होते ही रोशन होगी जिंदगी उनकी


-डॉ. महेश परिमल

पिछले साल एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था, जिसमें दीया बेचने वाली एक महिला की दुर्दशा बताई गई है। उसके बनाए दीये नहीं बिक रहे हैं। एक बच्चा उससे दीये खरीदते हुए आश्वासन देता कि शाम तक पूरे दीये बिक जाएँगे। वह घर जाकर एक प्रिंट तैयार करता है। फिर साइकिल से अपने परिचितों के घर जाकर उसे बाँटता है। दीवारों पर लगाता है। उधर शाम तक उस महिला के सारे दीये बिक जाते हैं। शाम को बच्चा उसके पास पहुँचकर कहता है- मैंने कहा था ना कि शाम तक सारे दीये बिक जाएँगे। महिला उस बच्चे को धन्यवाद कहने के लिए लल्ला-लल्ला कहते हुए उसके पीछे भागती है;  लेकिन बच्चा काफी दूर निकल जाता है। रास्ते में महिला को एक पोस्टर मिलता है, जिस पर उसकी तस्वीर होती है, जिस पर लिखा होता है- अम्मा की दीवाली हैप्पी बनाओ, जाके उनसे दीया ले आओ। यह देखकर महिला रूआँसी हो जाती है। वह दिल से उस बच्चे का धन्यवाद करती है। विज्ञापन का आखिरी हिस्सा भावुक कर देता है।

उस दिन कॉलोनी के मेन गेट पर कुछ देर तक खड़े रहा, इस दौरान मैंने पाया कि आजकल कई घरों में ऑनलाइन सामान काफी मात्रा में आ रहा है। लोग घरों से बाहर नहीं निकलना चाहते। इसलिए अमेजान-फ्लिपकार्ट से ऑनलाइन चीजें मंगा रहे हैं। यानी ई कामर्स की खरीदी जोर-शोर से हो रही है। क्या हमने सोचा कि यदि हम इन कंपनियों से सामान नहीं खरीदेंगे, तो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, किंतु यदि हम साधारण दुकानदारों से सामान नहीं खरीदेंगे, तो उन्हें बहुत फर्क पड़ेगा। इधर विदेशी कंपनियाँ मालदार हो जाएँगी, उधर छोटे दुकानदारों की दीवाली नहीं मन पाएगी। हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि कोरोना काल में सभी मध्यम दर्जे के व्यापारियों को मंदी का सामना करना पड़ा है। उनके लिए यह दीवाली दु:ख के गहरे बादल लेकर आई है। कोरोना काल की यह विशेषता यह रही कि इसने अमीरों को और अमीर और गरीबों को और गरीब बनाया है। सरकार ने सहायता की, माफी की योजनाएँ भी बनीं। इसके बाद भी निम्न मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग को किसी तरह का लाभ नहीं मिला।

जिन्हें किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिली, उनकी दीवाली हम लोग जगमग कर सकते हैं। हमें उनकी सहायता सीधे नहीं करनी है, बल्कि उनके उत्पादों को खरीदकर हम उन्हें मदद कर सकते हैं। सीधी मदद का दुरुपयोग अधिक होता है। इसलिए इनके उत्पादों को खरीदकर हम उन्हें प्रोत्साहन दे सकते हैं। यदि हम गाँव की बनी हुई चीजें लेते हैं, तो हालात बदलने में देर नहीं लगेगी। एक तरफ सरकार घोषणा कर रही है कि उनकी आय दोगुनी कर दी जाएगी;  पर यह केवल घोषणा बनकर ही रह जाती है। सरकार किसानों को जो लाभ दिलाती है, उसका फायदा केवल बड़े किसानों को ही मिल पाता है। छोटे किसान हमेशा ठगे जाते हैं। बेरोजगारों के लिए मजदूरी बढ़ाने की घोषणा पर अमल नहीं हो पाता। दूसरी तरफ बेरोजगारी बढ़ती ही रहती है।

इस दिशा में लोगों को दो पहलुओं पर काम करना होगा। पहला तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रुपये पहुँचाने होंगे। दूसरा है, छोटे दुकानदारों से माल खरीदना। शहर के लोग आर्थिक रूप से इसलिए सम्पन्न होते हैं, क्योंकि वे लोग अब ऑनलाइन खरीदी करने लगे हैं। इस बार दीवाली और क्रिसमस पर शहरी लोग ई कॉमर्स साइट से 70 हजार करोड़ का माल खरीदेंगे। जो कुछ वे खरीदेंगे, वे सभी चीजें शहर के छोटे व्यापारियों के पास उपलब्ध हैं। यदि ऑनलाइन खरीदी में 50 प्रतिशत की भी कमी हो जाए, तो छोटे व्यापारियों के पास से 35 हजार करोड़ रुपए आ जाएँगे। हमारा छोटा-सा योगदान लघु व्यापारियों को बड़ी राहत दे जाएगा।

छोटा दुकानदार हमारे घर के आसपास ही रहता है। हमारा उनका संबंध भले ही केवल सामान की खरीद-फरोख्त का हो, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ भी हो, आखिर वह है हमारा अपना है। जिसे हम जानते-पहचानते हैं। अमेजान-फ्लिपकार्ट को तो हममें से किसी ने नहीं देखा। फिर वह हमारा अपना कैसे हो गया। व्यापारी से हमारे सीधे संबंध हैं। पर उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों से वायवीय संबंध हैं। आप ही बताएँ आप किस तरह के संबंधों को प्राथमिकता देंगे? यह सच है कि छोटे व्यापारी की आर्थिक स्थिति सुधारने का हमने कोई ठेका तो नहीं ले रखा है, पर बड़ी कंपनियों को राहत देने का भी हमने तो ठेका नहीं ले रखा है। इंसानियत यही कहती है कि पहले उसकी मदद करो, जो करीब है। हमारी खरीददारी से हमारी ही नहीं, बल्कि उसकी दीवाली भी सुधर जाएगी।

अब एक छोटे-से उदाहरण से अपनी बात समझाने की कोशिश करता हूँ। हमने बाजार से कुछ दीये खरीदे, इससे क्या दीये बेचने वाले का ही लाभ हुआ। नहीं, पहले तो उस कुम्हार को लाभ मिला, जिसने दीया बनाया, उससे उसके परिवार को आर्थिक लाभ हुआ। दूसरा लाभ तेल वाले को मिला; क्योंकि बिना तेल के दीया तो जलाया ही नहीं जा सकता। फिर बाती के बिना दीया कैसे जलेगा, तो कपास उगाने वाले किसान को भी तो लाभ हुआ ना? फिर कपास का बीज बेचने वाले व्यापारी को भी इसका लाभ मिला। कपास तोड़ने वाले श्रमिकों को भी रोजगार मिला। कपास को गाँव से शहर ले जाने वाले वाहन चालक को भी लाभ हुआ। उसका परिवार भी उस लाभ का अधिकारी बना। सोचो, एक दीया कितनों को रोजगार ही नहीं, चेहरे पर खुशियाँ फैला रहा है? यही है सच्चाई।

छोटे व्यापारियों की कमर कोरोना ने तोड़ दी है। कमर तो मध्यम वर्ग की भी टूटी है। पर यही मध्यम वर्ग ही मध्यम वर्ग का सहारा बनेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। हम बच पाए, तो छोटे व्यापारी बच जाएँगे। हम ही उन्हें बचा सकते हैं। क्या हुआ, यदि वह कुछ अधिक मुनाफा कमाता है। हम यही सोचेंगे कि देश का पैसा देश में ही है। पर विदेशी कंपनी को दिया हुआ हमारा पैसा विदेश ही जाएगा। स्वदेश में तो नहीं रहने वाला। छोटे व्यापारियों को कोई उधार भी नहीं देता। हम उनसे सामान खरीदकर उन पर कोई एहसान नहीं करेंगे। इसलिए इंसानियत के नाते यही कहना है कि छोटे व्यापारियों से सामान खरीदकर हमें देश को आगे बढ़ाने की दिशा में एक छोटा-सा प्रयास करना है। आप ऐसा करेंगे ना?

सम्पर्कः टी 3- 204, सागर लेक व्यू, वृन्दावन नगर, भोपाल- 462022, मो. 09977276257




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