वह दरवाज़े के पास रखे
रद्दी काग़ज़ों,
किताबों और शीशी-बोतलों की भरी बोरियाँ और पुरानी महँगी चीज़ें दरवाज़े से उठा-उठाकर
बाहर करता जा रहा था। घर की मालकिन वहीं खड़ी चुपचाप उसे देखती रही। वह तराजू
निकालने के लिए झुका फिर कुछ सोचकर अपनी चिप्पी लगी पैंट में हाथ डालकर मुट्ठी में
कुछ तुड़े-मुड़े नोट निकाले और मालकिन के सामने कर दिए। मालकिन ने रुपये पकड़े,
गिने, बोली, ‘इतने सारी
रद्दी के सिर्फ़ सत्तर रुपये!’
उसने अपनी जेब में फिर हाथ
डाला, मगर खाली जेबें टटोलकर हाथ लौट आए। वह
गिड़गिड़ाता, उससे पहले ही मालकिन ने वे रुपये उसकी हथेली पर
रख दिए। उसके चेहरे पर हताशा उभरी , मालकिन ने मुस्कुराकर
कहा, ‘रख लो। घर के लिए दीया बाती ख़रीद लेना।’
‘लेकिन कबाड़?’
‘वह भी तुम्हारा। तुमने
मेरे घर से कबाड़ निकाला, बदले में मैंने तुम्हें दीया-बाती के लिए रुपये दिए। हो गया हिसाब बराबर।’
उसने एक बार कबाड़ का ढेर देखा, फिर घर की मालकिन को।... फिर हथेली में
दमकते रुपयों को। उसकी आँखों में दीये जल उठे।
मोबाइल : 8376836119
2 comments:
सकारात्मक सोच लिए बहुत सुंदर संदेश देती लघुकथा। लघुकथा। हार्दिक बधाई ।
आभार दी
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