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Jul 12, 2011

उदंती.com, जून- जुलाई 2011

वर्ष 3, संयुक्तांक 10-11, जून- जुलाई 2011

चरित्र एक वृक्ष है, मन एक छाया। हम हमेशा छाया की सोचते हैं, लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है।
-अब्राहम लिंकन
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पर्यावरण विशेष
अनकही: नागरिक या प्रजा?
पर्यावरण विशेष : प्रकृति के साथ साहित्य, वेद और धर्म का रिश्ता -डॉ. नलिनी श्रीवास्तव
विश्व शरणार्थी दिवसः प्राकृतिक आपदा से बढ़ते पर्यावरण शरणार्थी - प्रमोद भार्गव
पर्यावरण विशेष : नदी पर्यटन पर्यावरण को दांव पर लगा के नहीं - वी. के. जोशी
पर्यावरण विशेष : प्रदूषण का पता लगायेगी मशीन
जीवनशैली: पिता को दोस्त बनाना होगा -डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति
यात्रा संस्मरणः मिनी तिब्बत का रहस्य लोक - प्रिया आनंद
वाह भई वाह
पर्यावरण विशेष : हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं - के. जयलक्ष्मी
हाइकुः पुकारे बादल को - कमला निखुर्पा
हिन्दुस्तानी हो, हिन्दुस्तानी बनो - शास्त्री जे.सी. फिलिप
कहानी: वह क्षण - जैनेन्द्र कुमार
कविता: मेरे बचपन की शाम - डॉ. राजीव श्रीवास्तव
व्यंग्य: अन्ना के नाम एक पत्र - के. पी. सक्सेना 'दूसरे'
लघु कथाएं: 1. दुआ 2 . नींद - रमेश बतरा
उपेक्षित जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' - डॉ. परदेशीराम वर्मा
आपके पत्र/ मेल बाक्स
पिछले दिनों
रंग बिरंगी दुनिया

5 comments:

girish pankaj said...

hamesha kee tarah saja-daja ank..achchhhalaga. parh kar aur kuchh likhooonga.

रश्मि प्रभा... said...

हमेशा की तरह आकर्षक

P.N. Subramanian said...

बहुत ही खूबसूरत अंक निकला है, सहेजने योग्य. कृपया बताएं की मुझे हार्ड कॉपी कैसे उपलब्ध हो सकती है. वार्षिक ग्राहक बनना चाहूँगा.

सहज साहित्य said...

पर्यावरण जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर एक साथ इतनी वैविध्यपूर्ण सामग्री पढ़कर अच्छा लगा । ड़ॉ नलिनी श्रीवास्तव , प्रमोद भार्गव वी के जोशी के जय लक्ष्मी के लेख सँजोने लायक हैं ।कमला निखुर्पा के हाइकु मर्मस्पर्शी एवं सधे हुए हैं । इस कुशल सम्पादन के लिए बधाई की पात्र हैं।

रेखा श्रीवास्तव said...

रत्ना जी,

जून - जुलाई अंक देखा हर अंक की तरह से बहुत सुंदर प्रस्तुति है. विशेष रूप से मुझे पर्यावरण सम्बन्धी लेख बहुतभाए.