आपके पत्र

उदंती के नए अंक में भूले- बिसरे कथाकार भुवनेश्वर की कहानी मास्टरनी पढऩे मिली। पाठकों के लिए यह उपलब्धि है। यह कथाकार का शताब्दी वर्ष है। कम लोग ही जान पाते हैं वे कहानीकार के अलावा महत्वपूर्ण कथाकार भी थे। हालांकि उन्होंने कम लिखा है। भाई परदेशीराम वर्मा ने उन्हें याद कर पुण्य का कार्य किया है। शेरों के साथ अशोक सिंघई का संस्मरण याद रह जाने लायक है। श्रमसाध्य कार्य में आपकी सफलता दिखलाई दे रही है। समकालीन सोच के सांचे मे ढली सारगर्भित पत्रिका आकर्षक है। बधाई।
सुभाष नीरव जी की लघुकथा कबाड़ भीतर तक दहला जाती है तो दूसरी ओर धर्म- विधर्म में जीवन के दोहरे मानदण्डों पर गहरा कटाक्ष किया गया है ।
अरुण जी की कविताओं की खासियत है कि वो वहाँ से देखना शुरु करते हैं जहाँ कोई देखना ही नहीं चाहता और उस चीज की अहमियत इस तरीके से दर्शाते हैं कि पढऩे वाला उसी में डूब जाता है।
रश्मि जी आपके बचपन की यादों के साये में गुजरा वह पल आज भी वही सजीवता लिये हुये है... पंत जी ने आपका नाम ही नहीं रखा बल्कि नाम के साथ- साथ सहजता और लेखन की विशेषता भी आपके नाम कर दी जिसे आपकी लेखनी आज सार्थक कर रही है। इस प्रस्तुति के लिये बधाई।
रश्मि प्रभा का लेख 'उनके बाल छू लेने की ख्वाहिश ...' पढ़ते- पढ़ते मैं खुद को इर्शान्वित महसूस कर रहा हूँ ... आप कितनी खुशकिस्मत हैं कि आपको ऐसे महान व्यक्तित्व का छाँव मिला ... और खुशी भी है कि मुझे आपका छांव (आपके संस्मरण के जरिये ही सही) मिल रहा है।
कविता पर कुछ भी कहना धृष्टता होगी ... बस पढ़ रहा हूँ और सीखने की कोशिश कर रहा हूँ ...
आपका संस्मरण पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो उठा नीचे की पंक्तियां आपके लिए ...
प्रभात की प्रभा, सितारों की आभा।
दीप्तिमान कर रही हर राह।
करूं शत शत नमन, हर पल यही चाह।
पंतजी जैसे पारस ने आपको स्पर्श किया और आप दमक उठीं... आपने इतनी बड़ी हस्ती को करीब से देखा जाना...
उदंती का यह अंक बहुत ही शानदार रहा.... खासकर बाघों को लेकर जो सार्थक लेख आपने शामिल किए हंै वे बहुत पसंद आए। सुभाष नीरव जी की लघु कथाएं, जहीर कुरैशी जी के $ग•ाल, नवनीत कुमार गुप्ता की पानी को लेकर चिंता.... और संपादक ने अनकही में सब कह दिया।
'हम सब हाथ धोकर पीछे पड़ें हैं!' लेख में जो बातें कहीं गई हैं वो बिल्कुल सत्य है लेकिन फिर भी बढ़ते प्रदूषण ने इतने सारे वाइरस रच दिए हैं कि उसके संसर्ग से बचना बहुत ही मुश्किल है। इसलिए स्वच्छता की जरूरत आ पड़ी है। पहले जहां कभी दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी वहीं आज छोटे- छोटे बच्चे पेट की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं और वह भी सिर्फ हाथ की गंदगी की वजह से। मैं मानती हूं कि स्वच्छता के बहाने आज एक नए व्यवसाय को फलने फूलने का अवसर दिया जा रहा है। लेकिन सफाई को सफाई तक ही रखना चाहिए उसको एक इशु नहीं बनाना चाहिए।
- रेखा श्रीवास्तव, कानपुर
rekhasriva@gmail.com
- रवि श्रीवास्तव, भिलाई नगर
गहरा कटाक्ष सुभाष नीरव जी की लघुकथा कबाड़ भीतर तक दहला जाती है तो दूसरी ओर धर्म- विधर्म में जीवन के दोहरे मानदण्डों पर गहरा कटाक्ष किया गया है ।
- रामेश्वर काम्बोज, दिल्ली
rdkamboj@gmail.com
कविताओं की खासियत rdkamboj@gmail.com
अरुण जी की कविताओं की खासियत है कि वो वहाँ से देखना शुरु करते हैं जहाँ कोई देखना ही नहीं चाहता और उस चीज की अहमियत इस तरीके से दर्शाते हैं कि पढऩे वाला उसी में डूब जाता है।
- वंदना गुप्ता, दिल्ली
rosered8flower@gmail.com
उनके बाल छू लेने की ख्वाहिश ...rosered8flower@gmail.com
रश्मि जी आपके बचपन की यादों के साये में गुजरा वह पल आज भी वही सजीवता लिये हुये है... पंत जी ने आपका नाम ही नहीं रखा बल्कि नाम के साथ- साथ सहजता और लेखन की विशेषता भी आपके नाम कर दी जिसे आपकी लेखनी आज सार्थक कर रही है। इस प्रस्तुति के लिये बधाई।
- सदा, रीवा (मध्यप्रदेश)
मुझे खुशी हुई है ...रश्मि प्रभा का लेख 'उनके बाल छू लेने की ख्वाहिश ...' पढ़ते- पढ़ते मैं खुद को इर्शान्वित महसूस कर रहा हूँ ... आप कितनी खुशकिस्मत हैं कि आपको ऐसे महान व्यक्तित्व का छाँव मिला ... और खुशी भी है कि मुझे आपका छांव (आपके संस्मरण के जरिये ही सही) मिल रहा है।
कविता पर कुछ भी कहना धृष्टता होगी ... बस पढ़ रहा हूँ और सीखने की कोशिश कर रहा हूँ ...
- इंद्रनील भट्टाचार्य, उड़ीसा
रश्मि जी के लिएआपका संस्मरण पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो उठा नीचे की पंक्तियां आपके लिए ...
प्रभात की प्रभा, सितारों की आभा।
दीप्तिमान कर रही हर राह।
करूं शत शत नमन, हर पल यही चाह।
- मृदुला हर्षवर्धन, गोरेगांव, हरियाणा
आप दमक उठीं पंतजी जैसे पारस ने आपको स्पर्श किया और आप दमक उठीं... आपने इतनी बड़ी हस्ती को करीब से देखा जाना...
- सोनल रसतोगी, गोरेगांव, हरियाणा
शानदार अंक उदंती का यह अंक बहुत ही शानदार रहा.... खासकर बाघों को लेकर जो सार्थक लेख आपने शामिल किए हंै वे बहुत पसंद आए। सुभाष नीरव जी की लघु कथाएं, जहीर कुरैशी जी के $ग•ाल, नवनीत कुमार गुप्ता की पानी को लेकर चिंता.... और संपादक ने अनकही में सब कह दिया।
- लोकेन्द्र सिंह राजपूत, ग्वालियर
lokendra777@gmail.com
स्वच्छता की जरूरत lokendra777@gmail.com
'हम सब हाथ धोकर पीछे पड़ें हैं!' लेख में जो बातें कहीं गई हैं वो बिल्कुल सत्य है लेकिन फिर भी बढ़ते प्रदूषण ने इतने सारे वाइरस रच दिए हैं कि उसके संसर्ग से बचना बहुत ही मुश्किल है। इसलिए स्वच्छता की जरूरत आ पड़ी है। पहले जहां कभी दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी वहीं आज छोटे- छोटे बच्चे पेट की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं और वह भी सिर्फ हाथ की गंदगी की वजह से। मैं मानती हूं कि स्वच्छता के बहाने आज एक नए व्यवसाय को फलने फूलने का अवसर दिया जा रहा है। लेकिन सफाई को सफाई तक ही रखना चाहिए उसको एक इशु नहीं बनाना चाहिए।
- रेखा श्रीवास्तव, कानपुर
rekhasriva@gmail.com
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