पुकारे बादल को- कमला निखुर्पा
1
मन के मेघ
उमड़े है अपार
नेह बौछार।
2
छलक उठे
दोनों नैनों के ताल
मन बेहाल।
3
छूने किनारा
चली भाव- लहर
भीगा अन्तर
4
टूटा रे बाँध
कगार- बंध टूटे
निर्झर फूटे।
5
फूटे अंकुर
मन- मधुबन में
तू जीवन में।
6
खिली रे कली
चटख शोख रंग
महकी गली।
7
कटे जंगल
गँवार बेदखल
उगे महल।
8
ऊँचे महल
चरणों में पड़ी है
टूटी झोपड़ी।
9
रोई कुदाल
हल- बैल चिल्लाए
खेत गँवाए।
10
मन गुलाब
खिलता रहे यूं ही
कंटकों में भी
11
कस्तूरी- तन
दौड़े मन हिरन
जग- कानन।
12
आधुनिकता
बाहर घुला- मिला
घर में तनहा।
13
संदेश तेरा
अमृत की बूँद- सा
परदेस में।
14
मन का सीप
पुकारे बादल को
मोती बरसा।
लेखक के बारे में:
कविता, कहानी, लघुकथा, नाटक एवं संस्मरण का
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और संकलनों में प्रकाशन।
संप्रति: हिन्दी -प्रवक्ता, केन्द्रीय विद्यालय वन अनुसंधान केन्द्र,
देहरादून (उत्तराखण्ड)
Email- kamlanikhurpa@gmail.com
मो. 09410978794
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