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Feb 1, 2025

व्यंग्यः बड़ा सोचने पर कोई जीएसटी नहीं लगता

  - जवाहर चौधरी

“बाउजी अपना तो मानना है कि आदमी को अपनी लड़ाई खुद लड़ना पड़ती है । और लड़ाई वही जीतता है जिसके हौसले बुलंद होते हैं। वो कहते हैं ना ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’। कल अपन ने बंगला देखा एक। मार्केट में बिकने को आया है। पाँच करोड़ माँग रहा है। दो मंजिला है। आगे पोर्च भी है और पीछे वाश एरिया है बड़ा सा। थोड़े पेड़ भी लगे हैं। अच्छा है।” मनसुख ने बताया। 

“पाँच करोड़ का बंगला! फिर!?” 

“फिर क्या! अभी तो दो तीन बार और देखेंगे। मिसेस को भी ले जाऊँगा। वह भी देख लेगी अच्छे से, अन्दर बाहर सब। उसको भी बड़ा शौक है।”

“मनसुख पाँच करोड़ का बंगला कैसे ले लोगे तुम?”

“पाँच तो बोल रहा है। टूटेगा अभी कुछ दिन बाद। प्रापर्टी में ऐसा ही होता बाउजी। लोग मूँ फाड़ते हैं, पर मिलता थोड़ी है।”

“फिर भी कितना टूटेगा? ढाई करोड़ से नीचे तो जाएगा नहीं।”

“वो कुछ भी बोले अपन तो दो करोड़ लगाएँगे बस।” 

“दो करोड़ में कैसे दे देगा? ”

“तो नहीं दे। मेरे पास कहाँ हैं दो करोड़। अपनी कोई लाटरी थोड़ी लगी है।” 

“जब रुपये हैं नहीं, तो क्यों जाते हो प्रापर्टी देखने?” 

“मेंगाई कित्ती है बाउजी। तनखा में कुछ पुरता थोड़ी है। महीने के आखरी चार पाँच दिन तो समझो बड़ी मुस्किल से कटते हैं। मन मर जाने को करता है।” 

“ऐसे में करोड़ों का मकान देखने का क्या मतलब है मनसुख!”

“अन्दर से मजबूती बनी रहती है। बाउजी हौसला बुलंद होना चइये। गरीब आदमी के पास अगर हौसला भी नहीं हो तो लड़ेगा कैसे। ड्रायवरी का ये मजा तो है कि सेठ जी की बड़ी कार लेके कहीं भी जाने का मौका मिल जाता है और प्रापर्टी देख लेते है ठप्पे से। ... अभी तो एक जमीन भी देखी अपन ने। तीस किलोमीटर पे है। सत्तर करोड़ माँग-रा है। अच्छी खातिरदारी करी किसान ने। अपन ने तीस करोड़ लगा दिए हाथो हाथ।”

“तीस करोड़!!” 

“अरे देगा थोड़ी। पचास से नीचे नहीं आएगा वो। पर जमीन अच्छी है। खेती होती है। फलों के पेड़ भी हैं, दो कुएँ और तीन बोरवेल हैं। मोटर लगी हुई है। अपने को कुछ-नी करना है। चलती हुई प्रापर्टी है। रजिस्ट्री कराओ और हाँको-जोतो मजे में।” 

“किसी दिन फँस मत जाना यार तुम। जिंदगी भर चक्की पिसिंग करते रह जाओगे।”

“फँसे हुए तो हैं ही बाउजी गले- गले तक। दो महीने का मकान किराया चढ़ गया है। मकान मालिक तगादे करता है। टालने के लिए अन्दर से दमदारी चइए। सोच में करोड़ों हों तो कान्फिडेंस बना रहता है। मेंगाई से तो आप भी कम परेशान नहीं हो। चलो किसी दिन आपको भी कुछ प्रापर्टी दिखा देता हूँ। फिर देखना आप, सोच ही बदल जाएगी, लगेगा अच्छे दिन आ गए।”

“रहन दे भिया। झोले में नहीं दाने और अपन चले भुनाने।”

“ऐसा नहीं हैं बाउजी। कार चलता हूँ ; लेकिन सोच ये रखता हूँ कि कार मेरी है, सेठ तो बस सवारी है। वोट भी मैं प्रधानमंत्री को ही देता हूँ, चाहे पार्षद का चुनाव हो रहा हो। बड़ा सोचने पर कोई जीएसटी नहीं लगता है। और ये भी हो सकता है कि किसी दिन भगवान तथास्तु बोल दें।” 

सम्पर्कः BH 26 सुखलिया, भारतमाता मंदिर के पास, इंदौर- 452010,  मो. 940 670 1 670  

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