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Feb 1, 2025

दो कविताएँ

- मधु बी. जोशी 

 1. एक सच के लिए


कमाती हूँ शब्द

जीवन से

जैसे कमाता है

चमड़ा चमार


गूँथती हूँ शब्द

अर्थ के उतरने 

के लिए

जैसे 

जूता गाँठता है

मोची


जीवन मथता है

मुझे अहर्निश

और

सम्भव करता है

एक सच

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2. हवा


हवा

खिलाती है

फूल


बिखराती है

पराग


सहलाती है

पानी की चादर को


गीत ढालती है

वेणुवन में


तराशती है

चट्टानें


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