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Jun 1, 2024

दो लघु कविताएँ

   - भीकम सिंह






1. निवेदन

क्या करूँ, क्या ना करूँ

जब कभी भी

सोचता हूँ ,

तो वहीं पहुँचता हूँ

ख़ुद ही ख़ुद से छुपकर ।

 

लेटी हैं जहाँ

मेरी मासूम आदतें

खलिहानों में,

मिट्टी के घरौंदों में

राह तककर ।

 

और गाँव से

करता हूँ निवेदन

कि भूले ना

मेरा बचपन

ताक़पे रखकर ।

000

2. बस यूँ ही

मैंने जब - जब

जिस - जिसके

जूते उठाए

तब- तब टूटा मैं ,

अन्दर तक ।

 

आत्म सम्मान को

जैसे मारते रहे

करते रहे क्षीण

राजनेताओं के,

बन्दर तक ।

 

आज सुख में

दु:ख भरे

स्मृतियों के पन्ने

पलटे जा रहा हूँ मैं,

अम्बर तक ।


8 comments:

Anonymous said...

👏👏👏👏👏

Anonymous said...

अति सुंदर कविताएँ भीकम सिंह भाई साहब

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर लघु कविताएं !
आपको हार्दिक शुभकामनाएं
amit

Anonymous said...

अति सुंदर कविताएं ।
आपको बहुत बहुत बधाई ।
सरजीत सिह

Anonymous said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण कविताएँ ।हार्दिक बधाई ।

Anonymous said...

सुदर्शन रत्नाकर

Anonymous said...

बचपन में अपनेपन की सुंगध से ये कविता महक रही है

Krishna said...


बहुत सुंदर रचनाएँ...हार्दिक बधाई।
कृष्णा वर्मा