शिक्षा से ही शांति और खुशहाली संभव
आचार्य सोमेन्द्र श्री
जब
सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा तो साथ में एक संदेश दिया - ‘हे मानव! तुम पृथ्वी लोक में जा रहे हो - तुम्हें मैं एक सुन्दर पर्यावरण के
साथ भेज रहा हूँ - इसके साथ चलोगे तो तुम्हारा सर्वदा कल्याण ही होगा। यथा -
‘‘सर्वेभवन्तु
सुखिनःसर्वेसन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मा
कश्चिद् दुःख भाग्भवेद्’’
आज सम्पूर्ण विश्व मानव इस उपर्युक्त कथन की अवहेलना
कर रहा है। विकास की होड़ में सबको छोड़ वह एकाकी विकास की ओर बढ़ रहा है। उसके विकास
में कोई समरसता, सामूहिक
विकास की रेखा और आत्मीयता नहीं रह गयी है, जिससे
वह बार-बार असफल नजर आता है, तब वह
सम्पूर्ण वातावरण को दूषित करने का प्रयास करता है और आतंक फैलाता है,
जिसके कारण विश्व भावना खतरे में पड़कर अशांत हो,
शांति का मार्ग ढूँढने लगती है। इसी के परिप्रेक्ष्य
में हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि स्वर्गीय श्री जयशंकर
प्रसाद जी ने अपने महान-ग्रन्थ (महाकाव्य) ‘कामायनी’
में कहा था कि आज की मानवता क्यों कष्ट में है?
अशान्त क्यों है ? - इसलिए
कि -
ज्ञान-दूर कुछ क्रिया भिन्न है,
इच्छा क्यों पूरी हो मन की,
एक दूसरे से न मिल सके,
यह विडम्बना है जीवन की,
अर्थात्
मनुष्य आज अपने को ज्ञानी समझकर सत्य-ज्ञान से दूर हटा जा रहा है,
बुद्धि का प्रयोग जहाँ होना चाहिए वहाँ न होकर कहीं अन्यत्र
हो रहा है, साथ ही उसकी इच्छा महान से महत्तर बनने की ओर
अग्रसरित है, फिर
भी वह उत्सुक है क्योंकि उसकी इस क्रिया में मानव मूल्यों का हृास हो गया है। वह
एकाकी (अकेले) ही सारी दुनिया पर विजय पताका फहराना चाहता है।
प्रकृति
ने जो उपहार हमें निःशुल्क विकसित होने के लिये दिया है,
उसका ईमानदारी से उपयोग करके,
समता की हानि को अपना कर आगे बढ़ने के अर्थ में है। यथा-
पर्वत, वनस्पतियाँ, नदी,
झील, झरने,
कृषि, पशु-अर्जन
से विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विकास, बिजली,
सिंचाई के साधन, अन्य
उत्पादक, उसका समान वितरण, आर्थिक
एकता, उच्च मानसिकता के द्वारा ही इनका सही प्रयोग कर
सम्पूर्ण विश्व में एकता एवं शांति का बीज बो सकते हैं, अन्यथा
आज विश्व में जो हाहाकार फैला हुआ है, अशांति
के बादल छाये हुए हैं उससे निपटना कठिन हो जाएगा और कठिन हो रहा है।
आज
सम्पूर्ण विश्व में शांति की बात हो रही है क्योंकि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों
ने दुनिया को दहला दिया है कि यदि तृतीय विश्वयुद्ध कभी भी हुआ,
जिसके बादल बहुत वर्षो से मंडरा रहे हैं तो सम्पूर्ण
सृष्टि या तो दहल जाएगी या सर्वनाश हो जाएगा। अतः इसका एक सहज उपाय शिक्षा के
माध्यम से आज खोजा जा रहा है, कि
शिक्षा के माध्यम से हम कौन सा उपाय विकसित कर, विश्व में शांति की स्थापना करें,
जिससे जीवन में समरसता, विश्वास
और मानवीय भावनाओं का विकास पुनः किया जा सके।
शिक्षा
का ध्येय मानव का विकास करना है, बालक
के सोचने-विचारने का क्षेत्र विस्तृत बनाना है,बड़े
लाभ के लिए छोटे लाभ का त्याग करना है, बालक
को जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार करना है, वह
कुशल उपभोक्ता बने, अपने
पड़ोसियों के साथ रहना सीखे, उनके
सुख-दुख में सहायक हो सके। तात्पर्य यह है कि बालक का शिक्षा से बौद्धिक,
शारीरिक एवं आत्मिक विकास प्रकृति प्रदत्त सीमाओं तक
अधिकतम होना चाहिए, तभी
हम जीवन में शांति ला सकते हैं।
सम्पर्कः दिल्ली विश्वविद्यालय, मो. 9410816724, ईमेल
somandrashree@gmail.com
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