गोताखोर सुबह
- डॉ. सरस्वती माथुर
1
मौन
माटी का
दिया
जलाया कर
भोर
आएगी।
2
उगी
सुबह
आँखों
में लाली भरे
धरा
उतरी।
3
मेघ
की बाँह
दामिनी
को जकड़
खिली
धूप-सी।
4
डूबा
सूर्य तो
गोताखोर
सुबह
खींच
ले आई।
5
झरने
चले
प्रकृति
के अँगना
नूपुर
बोले।
6
एक
पीपल
मन
खण्डहर में
याद
का उगा।
7
सर्द
हवाएँ
शाम
पुरवाई में
थिरहोजमीं।
8
चुप्पी
तोड़ते
खण्डहर
घर में
चूहों
के बिल।
9
मौन
तोड़ती
अँधेरे
में चिडिय़ाँ
देख
शिकारी।
10
हवा-सामन
आकाश
नापकर
ख्वाब
बुनता।
11
नि:शब्द
नैन
मन
की पीड़ा बुन
नींद
चुराते।
12
कौन
आएगा
ख्वाबों
में बसकर
नीड
बनाने?
13
नभ
से भागी
चाँद
संग चाँदनी
हुई
प्रवासी।
14
चाँद-
जुलाहा
चाँदनी
बुनकर
प्रेम
पिरोता।
15
पुरवा
पाँव
ठुमक
कर चली
बीजनाबाजे।
16
खोल
के मेघ
घुँघराले
केशों को
धूप
दिखाए।
17
सूर्य
डूबा तो
फूलों
के रंग उड़
नभ
पे छाए।
18
बच्चे
सोते हैं
सितारों
को सौंप के
आँखों
के ख्वाब।
19
वायलिन-सी
देर
तक बारिश
बजाती
रही।
20
हवा
थी चुप
चिडिय़ा
का संगीत
गूँजता
रहा।
21
डूबता
सूर्य
आधे
रास्ते जाकर
पेड़ों
में छिपा।
22
जल
लेबहा
भरा
हुआ बादल
आकाश
खाली।
23
पर्वत-चीर
धरा
की ओर जाऊँ
नदिया
हूँ मैं।
24
शाम
हुई तो
चहचहाते
पंछी
नीड
में लौटे।
सम्पर्क:2, सिविल लाइंस,जयपुर-6, फोन-0141-2229621
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