उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Feb 19, 2017

आए क्या ऋतुराज

      आए क्या ऋतुराज
                            - डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

कैसी आहट -सी हुई, आए क्या ऋतुराज ?
मौसम तेरा आजकल, बदला लगे मिजाज।।1

अमराई बौरा गई , बहकी बहे बयार ।
सरसों फूली- सी फिरे, ज्यों नखरीली नार ।। 2

तितली अभिनन्दन करे,  मधुप  गा रहे गान।
सजी क्यारियाँ धारकर, फूल-कढ़े परिधान ।। 3

मोहक रंग अनंग के, धरा खेलती फाग ।
खिलते फूल पलाश के, ज्यों वन दहके आग ।। 4

टेसू , महुआ, फागुनी, बिखरे रंग हजार ।
धरा-वधू भी खिल उठी,  कर सोलह सिंगार ।। 5

फागुन ने मस्ती भरी, कण-कण में उन्माद ।
विरहिन का जियरा करे, अब किससे रियाद।। 6

देखी पीड़ा हीर की, रांझे का संताप ।
धीरे-धीरे बढ़ गया, दिन के मन का ताप ।। 7

आम, नीम सब मौन हैं, गुम सावन के गीत ।
खुशियों की पींगें नहीं, बिसर गया संगीत ।। 8

तीखे तेवर धूप के, उगल रहा रवि आग ।
चादर हरी सहेज ले, उठ मानव! अब जाग ।। 9

जब से अपने मूल का, छोड़ दिया है साथ ।
पर्णहीन तरु सूखता, रहा न कुछ भी हाथ ।। 10

धरती डगमग डोलती, कहती है कुछ बात ।
धानी चूनर छीन कर, मत करना आघात ।। 11

देखा दर्द किसान का, विवश धरा ग़मगीन ।
नहीं नयन में नीर है, नभ संवेदनहीन ।। 12

धुला-धुला आकाश है, सुरभित मंद समीर ।
सुभग, सुहानी शारदी, हरती मन की पीर ।। 13

झीनी चादर धुंध की, सिहरा सूरज भूप।
सिमटी,ठिठुरी झाँकती,यह सर्दी की धूप ।। 14

माटी महके बूँद से, मन महके मृदु बोल ।
खिडक़ी एक उजास की, खोल सके तो खोल ।। 15

मेरी ख़ुशियों में मिले, उनको ख़ुशी अपार।
ख़ुशियाँ उनकी माँगती, मैं भी सौ-सौ बार ।। 16

मन की माटी पर लिखा, जब से उनका नाम।
खुशियों की कलियाँ खिलीं, महकी सुबहो-शाम।। 17

फूलों -बसी सुगंध ज्यों,वीणा में झंकार।
दिल में धडक़न-सा रहे, सदा तुम्हारा प्यार ।। 18

तेरा  जब से है मिला, नेह-भरा सन्देश।
आँखों से छलकी खुशी, धर मोती का वेश ।। 19

पुरवा में पन्ने उड़े, पलटी याद -किताब ।
कितना मन महका गया, सूखा एक गुलाब ।। 20

दर्द,महफिलें याद कीं, खुशियों के  अरमान ।
मुट्ठी भर औक़ात है, पर कितना सामान ।। 21

सह जाएँगे साथिया, पत्थर बार हज़ार ।
बहुत कठिन सहना मगर, कटुक वचन के वार ।। 22

नयन दिखे नाराज-से, हुई नयन से बात
पिघल गया मन मेघ-सा, खूब हुई बरसात ।। 23

तीखे,कड़वे बोल का, गहरा था आघात ।
मरहम-सा सुख दे गई, तेरी मीठी बात ।। 24

सम्पर्कः एच-604 , प्रमुख हिल्स, छरवडा रोड, वापी-396191, ज़िला- वलसाड (गुजरात), 

2 comments:

DEVENDRA PANDEY said...

सुन्‍दर सरस दोहे !

सुनीता काम्बोज said...

सभी दोहे एक से बढ़कर एक हार्दिक बधाई आपको

पुरवा में पन्ने उड़े, पलटी याद -किताब ।
कितना मन महका गया, सूखा एक गुलाब ।।