उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Sep 23, 2009

कालजयी कहानियाँ

गिरगिट
-  अन्तोन चेखव
आंतोन पावलोविच चेखव विश्व के महान रूसी कथाकार और नाटककार थे। उनका जन्म दक्षिण रूस के टगनरोग में 29 जनवरी 1860 को हुआ और उनकी मृत्यु तपेदिक के कारण 15 जुलाई 1904 को हुई। अपने छोटे से साहित्यिक जीवन में उन्होंने रूसी भाषा को चार कालजयी नाटक दिए जबकि उनकी कहानियाँ विश्व के समीक्षकों और आलोचकों में बहुत सम्मान के साथ सराही जाती हैं। चेखव अपने साहित्यिक जीवन के दिनों में ज़्यादातर चिकित्सक के व्यवसाय में लगे रहे। वे कहा करते थे कि चिकित्सा मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका। छोटी कहानियों की शृंखला में प्रस्तुत है चेखव की एक बहुचर्चित कहानी 'गिरगिट' का अनुवाद।
पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, बगल में एक बण्डल दबाये बाजार के चौक से गुजर रहा था। उसके पीछे-पीछे लाल बालों वाला पुलिस का एक सिपाही हाथ में एक टोकरी लिये लपका चला आ रहा था। टोकरी जब्त की गई झडग़रियों से ऊपर तक भरी हुई थी। चारों ओर खामोशी। ...चौक में एक भी आदमी नहीं। ....भूखे लोगों की तरह दुकानों और शराबखानों के खुले हुए दरवाजे ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे थे, यहां तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता था।
'अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का!' ओचुमेलोव के कानों में सहसा यह आवाज आयी, 'पकड़ तो लो, छोकड़ो! जाने न पाये! अब तो काटना मना हो गया है! पकड़ लो! आ...आह!'
कुत्ते की पैं-पैं की आवाज सुनायी दी। आचुमेलोव ने मुड़कर देखा कि व्यापारी पिचूगिन की लकड़ी की टाल में से एक कुत्ता तीन टांगों से भागता हुआ चला आ रहा है। कलफदार छपी हुई कमीज पहने, वास्कट के बटन खोले एक आदमी उसका पीछा कर रहा है। वह कुत्ते के पीछे लपका और उसे पकडऩे की कोशिश में गिरते- गिरते भी कुत्ते की पिछली टांग पकड़ ली। कुत्ते की पैं-पैं और वही चीख, 'जाने न पाये!' दोबारा सुनाई दी। ऊंघते हुए लोग दुकानों से बाहर गरदनें निकालकर देखने लगे, और देखते-देखते एक भीड़ टाल के पास जमा हो गयी, मानो जमीन फाड़कर निकल आयी हो।
'हुजूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फसाद हो रहा है!' सिपाही बोला।
आचुमेलोव बाईं ओर मुड़ा और भीड़ की तरफ चल दिया। उसने देखा कि टाल के फाटक पर वही आदमी     खड़ा है। उसकी वास्कट के बटन खुले हुए थे। वह अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाये, भीड़ को अपनी लहूलुहान उंगली दिखा रहा था। लगता था कि उसके नशीले चेहरे पर साफ लिखा हुआ हो 'अरे बदमाश!' और उसकी उंगली जीत का झंडा है। आचुमेलोव ने इस व्यक्ति को पहचान लिया। यह सुनार खूकिन था। भीड़ के बाचों- बीच अगली टांगे फैलाये अपराधी, सफेद ग्रे हाउंड का पिल्ला, छिपा पड़ा, ऊपर से नीचे तक कांप रहा था। उसका मुंह नुकिला था और पीठ पर पीला दाग था। उसकी आंसू- भरी आंखों में मुसीबत और डर की छाप थी।
'यह क्या हंगामा मचा रखा है यहां?' आचुमलोव ने कंधों से भीड़ को चीरते हुए सवाल किया। 'यह उंगली क्यों ऊपर उठाये हो? कौन चिल्ला रहा था?'
'हुजूर! मैं चुपचाप अपनी राह जा रहा था, बिल्कुल गाय की तरह,' खूकिन ने अपने मुंह पर हाथ रखकर, खांसते हुए कहना शुरू किया, 'मिस्त्री मित्रिच से मुझे लकड़ी के बारे में कुछ काम था। एकाएक, न जाने क्यों, इस बदमाश ने मेरी उंगली में काट लिया। ..हुजूर माफ करें, पर मैं कामकाजी आदमी ठहरा, ... और फिर हमारा काम भी बड़ा पेचिदा है। एक हफ्ते तक शायद मेरी उंगुली काम के लायक न हो पायेगी। मुझे हरजाना दिलवा दीजिए। और हुजूर, कानून में भी कहीं नहीं लिखा है कि
 हम जानवरों को चुपचाप बरदाश्त करते रहें। ..अगर सभी ऐसे ही काटने लगें, तब तो जीना दूभर हो जायेगा।'
'हुंह..अच्छा..' ओचुमेलाव ने गला साफ करके, त्योरियां चढ़ाते हुए कहा, 'ठीक है। ...अच्छा, यह कुत्ता है किसका? मैं इस मामले को यहीं नहीं छोडूंगा! कुत्तों को खुला छोड़ रखने के लिए मैं इन लोगों को मजा चखाउंगा! जो लोग कानून के अनुसार नहीं चलते, उनके साथ अब सख्ती से पेश आना पड़ेगा! ऐसा जुर्माना ठोकूंगा कि छठी का दूध याद आ जायेगा। बदमाश कहीं के! मैं अच्छी तरह सिखा दूंगा कि कुत्तों और हर तरह के ढोर-डगार को ऐसे छुट्टा छोड़ देने का क्या मतलब है! मैं उसकी अकल दुरुस्त कर दूंगा, येल्दीरिन!'
सिपाही को संबोधित कर दरोगा चिल्लाया, 'पता लगाओ कि यह कुत्ता है किसका, और रिपोर्ट तैयार करो! कुत्ते को फौरन मरवा दो! यह शायद पागल होगा। .....मैं पूछता हूं, यह कुत्ता किसका है?'
'शायद जनरल जिगालोव का हो!' भीड़ में से किसी ने कहा।
'जनरल जिगालोव का? हुंह...येल्दीरिन, जरा मेरा कोट तो उतारना। ओफ, बड़ी गरमी है। ...मालूम पड़ता है कि बारिश होगी। अच्छा, एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि इसने तुम्हें काटा कैसे?' ओचुमेलोव खूकिन की ओर मुड़ा, 'यह तुम्हारी उंगली तक पहुंचा कैसे? ठहरा छोटा- सा और तुम हो पूरे लम्बे- चौड़े। किसी कील-वील से उंगली छी ली होगी और सोचा होगा कि कुत्ते के सिर मढ़कर हर्जाना वसूल कर लो। मैं खूब समझता हूं! तुम्हारे जैसे बदमाशों की तो मैं नस-नस पहचानता हूं!'
'इसने उसके मुंह पर जलती सिगरेट लगा दी थी, हुजूर! यूं ही मजाक में और यह कुत्ता बेवकूफ तो है नहीं, उसने काट लिया। यह शख्स बड़ा फिरती है, हुजूर!'
'अबे! झूठ क्यों बोलता है? जब तूने देखा नहीं, तो गप्प क्यों मारता है? और सरकार तो खुद समझदार हैं। वह जानते हैं कि कौन झूठा है और कौन सच्चा। खुद मेरा भाई पुलिस में है। ..बताये देता हूं....हां....'
'बंद करो यह बकवास!'
'नहीं, यह जनरल साहब का कुत्ता नहीं है,' सिपाही ने गंभीरता पूर्वक कहा, 'उनके पास ऐसा कोई कुत्ता है ही नहीं, उनके तो सभी कुत्ते शिकारी पौण्डर हैं।'
'तुम्हें ठीक मालूम है?'
'जी सरकार।'
'मैं भी जनता हूं। जनरल साहब के सब कुत्ते अच्छी नस्ल के हैं, एक- से- एक कीमती कुत्ता है उनके पास। और यह! तो बिल्कुल ऐसा- वैसा ही है, देखो न! बिल्कुल मरियल है। कौन रखेगा ऐसा कुत्ता? तुम लोगों का दिमाग तो खराब नहीं हुआ? अगर ऐसा कुत्ता मास्का या पीटर्सबर्ग में दिखाई दे तो जानते हो क्या होगा? कानून की परवा किये बिना, एक मिनट में उससे छुट्टी पा ली जाये! खूकिन! तुम्हें चोट लगी है। तुम इस मामले को यों ही मत टालो। ...इन लोगों को मजा चखाना चाहिए! ऐसे काम नहीं चलेगा।'
'लेकिन मुमकिन है, यह जनरल साहब का ही हो,' सिपाही बड़बड़ाया, 'इसके माथे पर तो लिखा नहीं है। जनरल साहब के अहाते में मैंने कल बिल्कुल ऐसा ही कुत्ता देखा था।'
'हां-हां, जनरल साहब का तो है ही!' भीड़ में से किसी की आवाज आयी।
'हूंह। ...येल्दीरिन, जरा मुझे कोट तो पहना दो। अभी हवा का एक झोंका आया था, मुझे सरदी लग रही है। कुत्ते को जनरल साहब के यहां ले जाओ और वहां मालूम करो। कह देना कि मैंने इसे सड़क पर देखा था और वापस भिजवाया है। और हां, देखो, यह कह देना कि इसे सड़क पर न निकलने दिया करें। मालूम नहीं, कितना कीमती कुत्ता हो और अगर हर बदमाश इसके मुंह में सिगरेट घुसेड़ता रहा तो कुत्ता बहुत जल्दी तबाह हो जायेगा। कुत्ता बहुत नाजुक जानवर होता है। और तू हाथ नीचा कर, गधा कहीं का! अपनी गन्दी उंगली क्यों दिखा रहा है? सारा कुसूर तेरा ही है।'
'यह जनरल साहब का बावर्ची आ रहा है, उससे पूछ लिया जाये। ...ऐ प्रोखोर! जरा इधर तो आना, भाई! इस कुत्ते को देखना, तुम्हारे यहां का तो नहीं है?'
'वाह! हमारे यहां कभी भी ऐसा कुत्ता नहीं था!'
'इसमें पूछने की क्या बात थी? बेकार वक्त खराब करना है, ' ओचुमेलोव ने कहा, 'आवारा कुत्ता यहां खड़े-खड़े इसके बारे में बात करना समय बरबाद करना है। तुमसे कहा गया है कि आवारा है तो आवारा ही समझो। मार डालो और छुट्टी पाओ?
'हमारा तो नहीं है,' प्रोखोर ने फिर आगे कहा, 'यह जनरल साहब के भाई का कुत्ता है। हमारे जनरल साहब को ग्राउंड के कुत्तों में कोई दिलचस्पी नहीं है, पर उनके भाई साहब को यह नस्ल पसन्द है।'
'क्या? जनरल साहब के भाई आये हैं? ब्लादीमिर इवानिच?' अचम्भे से ओचुमेलोव बोल उठा, उसका चेहरा आह्वाद से चमक उठा। 'जरा सोचो तो! मुझे मालूम भी नहीं! अभी ठहरेंगे क्या?'
'हां।'
'वाह जी वाह! वह अपने भाई से मिलने आये और मुझे मालूम भी नहीं कि वह आये हैं! तो यह उनका कुत्ता है? बहुत खुशी की बात है। इसे ले जाओ। कैसा प्यारा नन्हा- सा मुन्ना- सा कुत्ता है। इसकी उंगली पर झपटा था! बस-बस, अब कांपो मत। गुर्र...गुर्र...शैतान गुस्से में है... कितना बढिय़ा पिल्ला है!
प्रोखोर ने कुत्ते को बुलाया और उसे अपने साथ लेकर टाल से चल दिया। भीड़ खूकिन पर हंसने लगी।
'मैं तुझे ठीक कर दूंगा।' ओचुमेलोव ने उसे धमकाया और अपना लबादा लपेटता हुआ बाजार के चौक के बीच अपने रास्ते चला गया।

No comments: