×××××××××××
उत्सव माहौल में 1 से 9 नवम्बर तक रायबरेली में चले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पुस्तक मेले में डॉ. उदय प्रताप सिंह को मिला आचार्य द्विवेदी युग प्रेरक सम्मान और मुंबई के स्केच आर्टिस्ट नितिन महादेव यादव को डॉ. राममनोहर त्रिपाठी लोक सेवा सम्मान। दीपक सैनी की मिमिक्री पर ठहाके गूँजे और रस्सा कशी में बुजुर्गों का दिखा जोश-
×××××××××××
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास के तत्त्वावधान में रायबरेली के फिरोज गांधी कॉलेज परिसर में ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पुस्तक मेला – 2025’ नौ दिनों तक साहित्य, समाजसेवा और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बना रहा। मेले में गंभीर साहित्यिक विमर्श भी हुए और हंसी-ठहाके भी गूंजे। बच्चों से बड़ों तक के लिए आयोजनों की भरमार थी।1 से 9 नवम्बर तक चले इस आयोजन ने साबित कर दिया कि आचार्य द्विवेदी की कर्मभूमि आज भी हिंदी के अक्षर-संस्कारों से धड़कती है।
ये मेला ऐतिहासिक होने वाला है, इसका अंदाजा पहले ही दिन लग गया। जब देश के सबसे बड़े चिकित्सीय संस्थान एम्स-रायबरेली की डायरेक्टर डॉ. अमिता जैन मेले का उद्घाटन करने पहुँची। उन्होंने बच्चों के साथ पूरे मेले का भ्रमण किया और किताबों को करीब से देखा-पढ़ा। कार्यक्रम में उन्होंने बच्चों को यादगार सीख इन शब्दों में दी-'पुस्तकें मानवता की सबसे बड़ी शिक्षक हैं। डिजिटल युग में भी पढ़ने की संस्कृति को जीवित रखना समाज की जिम्मेदारी है। युवाओं को डिजिटल युग में भी पुस्तकों से जुड़ाव बनाए रखना चाहिए।'
मेले का दूसरा दिन प्रतिभाओं को समर्पित रहा। मुंबई पुलिस को 500 से अधिक अपराधी पकड़वाने में मदद करने वाले स्केच आर्टिस्ट नितिन महादेव यादव को डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी लोक सेवा सम्मान और रायबरेली की टॉपर छात्रा प्रांजलि जायसवाल को शिवानन्द मिश्र ‘लाले’ सम्मान दिया गया। पहली बार मुंबई से रायबरेली पहुँचे स्केच आर्टिस्ट नितिन यादव ने कहा कि कला समाज सेवा का भी सशक्त माध्यम है जबकि प्रांजलि ने इसे अपनी प्रेरणा बताया।
3 और 4 नवंबर की शाम हँसी-ठहाकों और संगीतमय सुरों से गूँज उठी। पुस्तक मेले में तीसरे दिन दिल्ली से आए प्रसिद्ध कलाकार दीपक सैनी ने अपनी शानदार मिमिक्री और लाफ्टर शो से दर्शकों को इस कदर लोटपोट कर दिया कि पूरा पंडाल देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजता रहा। चौथे दिन उस्ताद अब्दुल रशीद खाँ सम्मान ग्रहण करने आईं अयोध्या की प्रसिद्ध लोकगायिका संजोली पांडेय और शाम्भवी शुक्ला ने अपनी मधुर आवाज से समाँ बाँध दिया। दोनों के पारंपरिक लोकगीतों की भावपूर्ण प्रस्तुति ने दर्शकों को अपनी जड़ों से जोड़ दिया। मेले में शाम की पाली में जहाँ स्थानीय प्रतिभाओं को नया मंच मिल रहा था, वहीं दिन में बच्चों को हुनर दिखाने का मौका भी दिया गया। बच्चों के लिए निबंध, भाषण, चित्रकला और स्लोगन प्रतियोगिताएँ हुईं और उन्हें पुरस्कृत भी किया गया।
पुस्तक मेले में 5 नवंबर को हुए 'आयुष मेले' के बाद शाम को भारत की लोकसंस्कृति की अद्भुत और यादगार झलक देखने को मिली। माता कौशल्या के कोसल प्रदेश और आज के (पश्चिम ओडिशा) से आई बच्चियों और कलाकारों के बेटियों के जन्म से लेकर विदाई से जुड़े लोक नृत्य की प्रस्तुति की छटा फिजाँ में बिखर गई। कलाकार भावों में इस कदर रँगे और उनको देखकर दर्शकों की आँखों से आँसू छलक पड़े। ये दृश्य देखकर माहौल थोड़ी देर तक गम्भीर भी हो गया। लोगों ने एकटंकिया म्यूजिक स्कूल-पदमपुर से प्रशिक्षण पा रहे इन बच्चों को प्रस्तुति के बाद आशीर्वाद दिया। 6 नंवबर को भी मेले में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रायबरेली जनपद के युवा कलाकारों ने अपनी प्रतिभा दिखाई।
7 नवंबर को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पुस्तक मेले के सातवें दिन आचार्य द्विवेदी न्यास की ओर से श्रेष्ठ कवि व पूर्व सांसद डॉ. उदय प्रताप सिंह को आचार्य द्विवेदी युग प्रेरक सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान ग्रहण करते हुए डॉ. उदय प्रताप भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि हिंदी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम का सम्मान मिलना गौरव की बात है। सम्मान समारोह के बाद कवि सम्मेलन में कवयित्री डॉ. सरिता शर्मा ने अपनी नई कविता 'सुनो समंदर, तिरस्कार सहते-सहते, सूख रही है एक नदी बहते-बहते..' पढ़ी। बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों ने रस्साकशी, रूमाल झपट्टा प्रतियोगिता और म्यूजिकल चेयर रेस में जोश दिखाकर अपने बचपन को फिर से याद किया। 'आचार्य पथ' स्मारिका का विमोचन संपादक आनंद स्वरूप श्रीवास्तव ने अतिथियों से कराया।
आठवाँ दिन मुशायरे के नाम रहा। इस दरम्यान पहला वाकिफ रायबरेलवी स्मृति सम्मान मरणोपरांत प्रयागराज के मरहूम शायर डॉ. जमीर अहसन को दिया गया, जिसे उनकी बेटियों अतिया नूर और कुदसिया ज़मीर ने ग्रहण किया। मुशायरे का बिस्मिल्लाह प्रयागराज के जीशान फ़तेहपुरी ने किया। उन्होंने मोहब्बत की राह में नफ़रत बोने पर गजल पढ़ी। अतिया नूर का इस शेर-'जब वह चला तो कतरा समंदर का हो गया, आँखों में ठहरा अश्क तो पत्थर का हो गया' खूब दाद मिली। रायबरेली की शायरा तारा इकबाल की गजल 'रिश्तों के ख़ुमार में हम फिर से आ गए, यानी दुआ सलाम में हम फिर से आ गए...' को बहुत सराहा गया। इस कार्यक्रम में बुजुर्ग शायर हसन रायबरेली ने माँ गंगा पर शेर पेश किए, जिससे पूरा माहौल मंत्रमुग्ध हो गया। लखनऊ के महेंद्र भीष्म के उपन्यास 'हाँ मैं हूँ' और अयोध्या की कवयित्री मानसी द्विवेदी के गीत संग्रह 'नदी सी मैं' पर गंभीर विमर्श भी हुआ।
समापन दिवस पर युवा गायिका दृष्टि पांडेय की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के बाद भजन संध्या और फिर फूलों की होली ने बेमौसम माहौल होलियाना कर दिया। नौ दिनों तक चला आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पुस्तक मेला संस्कृति, साहित्य और मानवीय जुड़ाव का उत्सव बन गया, जिसने यह साबित किया कि रायबरेली की धरती पर किताबों के साथ भावनाओं-कलाओं की गूँज आज भी इसलिए सुनी-सुनाई जाती है; क्योंकि आचार्य द्विवेदी साहित्य भाषा व्याकरण के साथ-साथ इतिहास भूगोल विज्ञान और कलाओं के भी पारखी थे। उनके निबंध 'संगीत के स्वर' और 'भारतीय चित्रकला' आज भी चाव से पढ़े-पढ़ाए जाते हैं।
सम्प्रतिः प्रबंध संपादक एवं प्रकाशक, ककसाड़ पत्रिका दिल्ली, मो. 9968288050




No comments:
Post a Comment