- सुशीला 'शील' स्वयंसिद्धा
1. मिट्ठू प्यारे
मिट्ठू प्यारे यह बतलाओ।।
रटते कैसे मुझे सिखाओ।।
मुझको नहीं किताब लुभाती।।
मोबाइल की चैट बुलाती।।
दुखड़ा अपना किसे सुनाऊँ।।
बहन न भाई किसे बुलाऊँ।।
खेलूँ किसके सँग तुम बोलो।।
मन की अपनी साँकल खोलो।।
इस छोटे पिंजर में तंगी।।
यहाँ न कोई साथी- संगी।।
मम्मी- पापा इसको जानें।।
अपना हक़ आज़ादी मानें ।।
मिट्ठू मैं पंछी हो जाऊँ।।
नभ में विचरूँ खुशी मनाऊँ।।
जीभर दोनों भरें उड़ानें
तब ही खुश अपना दिल मानें।।
थक जाएँ तो उतरें नीचे।।
बैठ आम अमरूद- बगीचे।।
जीभर चुगलें दाना-दुनका।।
जीवन जी लें अपने मन का।।
2. चिंटू
का सपना
चिंटू जी के वारे न्यारे।।
पूर्ण हुए जो सपने सारे।।
उड़नखटोले बैठा ढोटा।।
हवा लगी तब देने झोटा।।
उड़ना बादल के भी ऊपर।।
तैर-तैरकर नापे अम्बर।।
दूर क्षितिज की छवि थी न्यारी।।
मनहर ज्यों सोने की क्यारी।।
संध्या रानी आई छम-छम।।
तारे करते चम चम चम चम।।
चन्दा मामा बड़े भले थे।।
बड़े प्यार से गले मिले थे।।
चन्दा मामा बने हिंडोला।।
धरती दिखती जैसे गोला।।
झिलमिल तारे दिखते प्यारे।।
ग्रह- नक्षत्र बहुत ही प्यारे।।
चिंटू सोचे ध्रुव से मिल लूँ।।
उनसे बातें कर कुछ खिल लूँ।।
हाथ मिलाने उतरा नीचे।।
गिरा शून्य में आँखें मीचे।।
काँप रहा था डर के मारे।।
मम्मी-मम्मी मात्र पुकारे।।
मम्मी आईं गले लगाया।।
सपना था- उसको समझाया।।
बहुत झेंपकर हँसता चिंटू।।
हँसी उड़ाएँ छुटकी मिंटू।।
शून्य नहीं है यह है बिस्तर।।
अभी सो रहा है तू जिस पर।।
पूर्व प्रधानाचार्या, जयपुर, राजस्थान, मो. - 9351228446


बेहतरीन अंक और सामयिक, उत्तम सम्पादकीय के लिए हार्दिक बधाई डॉ रत्ना 💐
ReplyDeleteमेरी बाल चौपाइयों को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद 🌹🙏
©️ सुशीला शील स्वयंसिद्धा
सुंदर बाल चौपाइयाँ !
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