जब भारत में कोई व्यक्ति इधर की बात उधर करता है, तो कहावत की चपेट में आ जाता है , ‘कूकर- सा सूँघत फिरे इते उते की बात।’ यह कहावत यद्यपि भारतीय परिवेश पर ही लागू हो सकती है,अमेरिकी परिवेश पर नहीं।
मैं इन दिनों अमेरिका में देख रहा हूँ ,यहाँ सुअर तो देखने को भी नहीं मिलते; क्योंकि अधिकतर तो स्थानीय नागरिकों के उदरस्थ हो जाते हैं। अमेरिका में घर- घर कुत्ते होते हैं, किन्तु सड़क पर एक भी उद्दंड नहीं मिलेगा । यहाँ एक भी कुत्ता अकेले और आवारा घूमते हुए नहीं पाया जाता।
सारी अमेरिकी महिलाएँ ,पालतू को पदोन्नत कर उसे बेटा ही बुलाती हैं- ‘माय सन’। उनका आग्रह होता है उसे कुत्ता कदापि न कहें, उसे या तो नाम से बुलाएँ, अथवा बेटा कहें। कुत्ता कहकर कदापि अपमानित न करें।
अब जरा यहाँ की हरियाली पर आ जाएँ। अमेरिका में प्रत्येक घर के सामने भरपूर हरियाली रहती है। मुझे आश्चर्य होता है यह हरियाली कहाँ से आती है ? उस हरियाली का श्रेय मैं उन पेट्स को देता हूँ, जो ड्रिप इरीगेशन (बूँद- बूँद सिंचाई) करते रहते हैं। यह विशेष गुण इस प्राणी में देखा जाता है- शरीर का सारा का सारा जल, एक ही पौधे पर खर्च नहीं करता, बचा- बचाकर अनेक पौधों की सिचाई करता चलता है। अमेरिका में जो इतनी हरियाली और स्वच्छता दिखाई देती है वह इन ‘कुत्तों’, सॉरी बेटों के कारण ही रहती है।
प्रत्येक पेट को, दिन में दो, या तीन बार भी घुमाने ले जाया जाता है। पेट्स में वह विशेष गुण है, जिसके कारण एक पेट अनेक पौधों की सिंचाई करता है। प्रत्येक यात्रा में अनेक पौधों पर जलाभिषेक करता चलता है। सारा जल एक ही पौधे या वृक्ष पर नहीं डालता। शासन द्वारा इस प्रकार जल- विसर्जन की तो अनुमति है; क्योंकि उससे हरियाली बढ़ती है; किन्तु पेट के मल विसर्जन की नहीं। यदि एक बार भी पेट ने मल विसर्जन खुले में किया और उसे नहीं उठाया गया, तो कुत्ते का मालिक तो पकड़ में आ ही जाएगा, तब कूकर स्वामी को 75 डॉलर का दंड भुगतना होगा । एक दो बार लापरवाही बरती कि मालिक को 500 डॉलर तक जुर्माना भरना होगा। जिस प्रकार घर में छोटे बेटे की पॉटी का ध्यान रखा जाता है, ठीक उसी प्रकार बाहर चहलकदमी करते हुए पेट, की पॉटी का। यहाँ यदि कोई अपरिचित कुत्ता भी आमने सामने आ जाए, तो उनका परस्पर मिलन भौंककर नहीं होता, प्रेमालाप के साथ होता है।कुत्तों का पग प्रक्षालन
“इन आँखों का यही विशेष, वह भी देखा यह भी देख।”
मैंने अपनी ग्रामीण संस्कृति में संतों के पग प्रक्षालन होते देखे हैं। जब कोई साधु संत गाँव में आ जाते थे, तो भावुक भक्त उनके पग प्रक्षालन करते थे, यानी पाँव पर स्वच्छ जल डालते और अपने हाथों से परात में मल- मलकर उनके चरण धोते थे।
जब बारात आती थी, तब भी वधू पक्ष के वरिष्ठ लोगों द्वारा, वर पक्ष के बड़े बूढ़ों के पग प्रक्षालन करने की परंपरा थी । सन 1949 से पहले हम भी अपने गाँव में सुबह- सुबह लोटा लेकर गाँव के बाहर निवृत्त होने जाते थे; क्योंकि नंगे पाँव जाते थे; इसलिए लोटे को तथा हाथ – पाँव को भी मिट्टी या राख से रगड़कर धोते थे।
भारतीयों को यह जानकारी नहीं, कल्पना भी नहीं, अमेरिका में कुत्तों का भी दिन में दो बार पग प्रक्षालन होता है।
भारत हो या अमेरिका, कुत्तों को दो बार यानी सुबह और शाम, साथ ले जाकर घुमाना आवश्यक रहता है, हाँ घर में घुसते ही पग प्रक्षालन करना पड़ता है। कई बार मनुष्य तो बस एक बार सुबह या शाम पेट साफ़ करता है, अमेरिका में श्वान की शान यह है कि दो बार उसे शौच के बहाने घुमाने ले जाना अत्यावश्यक होता है। कुत्ते रखने वालों को मजबूरी में दो बार पदयात्रा करनी ही पड़ती है। निस्संदेह इससे मनुष्यों का स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।


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