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Nov 2, 2025

कविताः अपने आप से

  - विजय जोशी 

याद है

उस दिन तुमने कहा था

कि मन नहीं भरा आपका

दुनिया से, जीवन से

इस सारी उहापोह और उलझन से

जो अब भी, करते हैं कविता

जीवन में भरते हैं, रंगों की सरिता

और यह भी कहा था

जिसे आप प्यार कहते हैं

महज एक स्वार्थ है

जहाँ हम

केवल अपने आप से प्यार  करते हैं

और दूसरे

हमारी इच्छाओं का घट भरते हैं

 

तुम्हारी बात ने

मुझे अंदर तक हिलाया

मैं अंदर ही अंदर कुलबुलाया

फिर खुद ही खुद से बोला

अपना अंतरपट खुद ही खोला

हाँ तुम ठीक कहती हो

आम भाषा में

जिसे सब प्यार कहते हैं

सिर्फ एक स्वार्थ है, जहाँ हम

केवल अपने आप से प्यार करते हैं

और दूसरे

न चाहते हुए भी

हमारी मंशाओं को ढोते हैं

पर मेरे लिए तो

प्यार है

एक रंगों भरा विस्तृत आकाश

जिसमें समाया है निश्चल विश्वास

मुझे याद आ रहा है

बचपन में कभी, मैंने कहीं पढ़ा था

कि किसी जन्म में, हम जाने- अनजाने

जिन्हें तकलीफ पहुँचा देते हैं

वे ही अगले जन्म में

हमारे बनकर, फिर मिलने आते हैं

ताकि हम रिश्तों की अहमियत को

फिर से समझ सकें

और इस तरह

अपने पूर्व जन्म के कर्मों को

न सिर्फ धो सकें

बल्कि आगे के सफर में

स्नेह की फसलें भी बो सकें

कहा भी तो गया है कि

हम पूर्व जन्म के ऋण

इस जन्म में चुकाते हैं

और जन्म जन्मांतर के रिश्तों को निभाने

फिर से आते हैं

जिस दिन से

यह भेद मेरी समझ में आ गया

मेरा पूरा सोच ही बदल गया

और आगे का जीवन

फिर से सँवर गया

 

शायद वही दिन था

हाँ वही दिन था कि

मेरे लिए प्यार के मायने बदल गए

संशय के बादल नेपथ्य में फिसल गए

अब तो मैं, सभी को प्यार करता हूँ

हर अच्छाई पर, पूरे मन से मरता हूँ

अपने स्वार्थी मन को भी

अब नहीं पहचानता

कैसा होता है मतलबी जहाँ

यह भी नहीं जानता

रिश्तों में अब है मेरा गहरा यकीन

और मेरे इरादों के नीचे है ठोस जमीन

 

सच कहूँ तो

इतना जीवन जीने के बाद

बहुत कुछ खोने और पाने के उपरांत

मैं यह भी जान गया हूँ

समग्र सत्य को पहचान गया हूँ

कि उम्र के इस दौर में मुझे

व्यक्तिगत नहीं

समष्टिगत होकर जीना होगा

खुद की न सोचकर

दूसरों के दुखों को

शिव- सा पीना होगा

तभी तो कुछ होगा सार्थक

वरना यह तथाकथित

पद- प्रतिष्ठा, धन- दौलत, मान- सम्मान

ओहदों का गुमान

सब कुछ है निरर्थक

 

यही तो है

हाँ केवल यही तो है

जन्म- जन्मांतर से चला आ रहा

हम सबका शाश्वत धर्म

जिसे निभाना ही होगा

और शेष जीवन

दूसरों के लिए

पूरी शिद्दत की साथ

बिताना ही होगा

                आमीन !


49 comments:

  1. प्रेम,विश्वास, कर्म, रिश्ते-नाते तथा जन्म-जन्मांतर की परतें खोलती सुंदर कविता।बहुत-बहुत बधाई सर।

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  2. सरल शब्दों में जीवन का गहन मर्म समझा दियाl केवल हम ही अपने ऊपर अपना नियंत्रण रख सकते है, दूसरों पर नहींl इसलिए हमारा व्यवहार भी दूसरों द्वारा नहीं हमें स्वयं नियंत्रित करना चाहिएl अभिनन्दन!

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  3. सही कहा. समष्टिगत बनकर रहना ही जीवन का सौंदर्य है.

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  4. Anonymous04 November

    प्रीति गुप्ता
    बहुत सुंदर कविता — निस्वार्थता और समष्टि के भाव को बड़ी गहराई से व्यक्त किया है। सच में, जब जीवन दूसरों के लिए जिया जाए तभी वह सार्थक होता है। 🌿

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    1. आदरणीया
      सही कहा आपने। अपने लिये जिये तो क्या जिये। हार्दिक आभार सहित सादर

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  5. सत्य लेखन

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    1. हार्दिक आभार सहित सादर

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  6. Mukesh Shrivastava04 November

    बहुत अच्छी सीख कविता के माध्यम से अपने दी।

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    1. प्रिय भाई मुकेश
      हार्दिक आभार। सादर

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  7. Thought provoking and expressed in a very simple manner

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  8. Anonymous04 November

    जो बात हमारे सबके ज़ेहन में है, उसे आज अपनी कविता के रूप में पिरो दिया है।.......
    संशय छोड़ अब प्रेम ही मार्ग बना,
    स्वार्थ मिटाकर, हर रिश्ता विश्वास बना।
    जीवन का सत्य है, सबके लिए जीना होगा,
    पद और प्रतिष्ठा को छोड, मानवता को अपनाना होगा।
    जयेश

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    1. प्रिय जयेश
      सोच के स्तर पर हम दोनों एक ही पथ के सहयात्री हैं। हार्दिक आभार। सस्नेह

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  9. Anonymous04 November

    सत्य है परन्तु अत्यंत कठिन है ।

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    1. Anonymous04 November

      Y Pathak

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    2. आदरणीय
      आप तो कठिनाइयों पर विजय प्राप्ति अभियान में हम सब के आदर्श हैं। हार्दिक आभार सहित सादर

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  10. I do not deserve to comment on it..
    Just Awesome
    That is it

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    1. प्रिय डॉ. विजेंद्र
      आपकी नम्रता का शुरू से कायल हूं। हार्दिक आभार

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  11. Ashok Shrivastava04 November

    अति सुंदर।

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    1. प्रिय अशोक
      हार्दिक आभार। सस्नेह

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  12. Replies
    1. हार्दिक आभार। सादर

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  13. Anonymous04 November

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।सही और बहुत गहरी बात कही है आपने । स्वयं से तो सभी प्यार करते हैं, लेकिन निःस्वार्थ भाव से दूसरों के बारे में सोचना ही वास्तविक जीवन है।सुंदर संदेश। सुदर्शन रत्नाकर

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    1. आदरणीया
      आपकी परंपरा के सहयात्री हो पाना हम सबका सौभाग्य है। हार्दिक आभार सहित सादर

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  14. सुरेन्द्र लाड़04 November

    आ. विजय जोशी

    *अपने आप से* कविता के माध्यम से आपने खुद के नहीं वरन सभी काव्य प्रेमियों के दिल में, जीवन के शेष समय को सार्थक और उत्साहपूर्ण बनाने का संदेश दिया है। 🙏🙏

    करें कुछ विशेष, जिंदगी बची है शेष,
    ना जाने कब, हो जाएंगे अवशेष

    सकारात्मक नजरिया, बहुत प्रभावशाली कविता।

    हार्दिक अभिनंदन 🙏🙏

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    1. प्रिय सुरेंद्र भाई,
      यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो इसमें कुछ व्यर्थ न हो। हार्दिक आभार सहित सादर

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  15. आदरणीय सर,
    अत्यंत सुन्दर और मन को छूने वाला लेख।
    धन्यवाद .

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  16. प्रिय महेश, हार्दिक आभार। सस्नेह

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  17. Daisy C Bhalla04 November

    Heart touching truth….. karma theory appears in life. Cause n Effect . Sowing n Reaping continues. Time flies. It’s also true that self reflection helps🙏🏼

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    1. Vijay Joshi07 November

      Dear Daisy
      You are right. Time flies and so it's necessary that we contribute with the best of our capacity and capability.
      Thanks very very much

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  18. Anonymous04 November

    आदरणीय जोशी सर
    अत्यन्त सुंदर अभिव्यक्ति मन और दिल को छू ले ने वाला लेख l
    धन्यवाद

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    1. विजय जोशी07 November

      हार्दिक आभार

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  19. Sapan suhane04 November

    अति सुंदर लेख

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  20. आदरणीय आपने जीवन के यथार्थ को बहुत ही सुन्दर शब्दों में वर्णन किया है। आपका साधुवाद।

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    1. विजय जोशी07 November

      प्रिय मित्र कृष्णकांत
      हार्दिक आभार। सादर

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  21. Anonymous04 November

    पिताश्री बहुत ही सरल और भावात्मक ढंग से लिखी हुई कविता। ह्रदय को स्पर्श करती है । पिताजी सादर प्रणाम 🙏

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    1. Anonymous07 November

      प्रिय हेमंत
      हार्दिक आभार। सस्नेह

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  22. Kishore Purswani06 November

    बहुत सुंदर कविता परंतु एक सत्य यह भी है कि जब तक हम स्वयं से प्यार नहीं करते तब तक किसी और से नहीं कर सकते । इसमें निजी स्वार्थ नहीं है- जब हम स्वयं का ध्यान रखेंगे तभी मित्रो और रिश्तेदारों का ध्यान रख पाएंगे

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  23. विजय जोशी07 November

    प्रिय किशोर भाई
    बहुत सही बात कही आपने। प्यार अंदर होगा तभी तो बंट पाएगा। हार्दिक आभार

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  24. This comment has been removed by the author.

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  25. अपने लिए जिये तो क्या जिये
    तूं जी ए दिल जमाने के लिये।
    आपकी कविता में सरल शब्दों मे सुन्दर भाव व्यक्ति। बहुत अच्छा लगा।

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    1. आदरणीय
      हार्दिक आभार सहित सादर

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  26. बहुत सरल शब्दों में भावपूर्ण कविता। मोदी जी के शब्दों में मन की बात ।सादर प्रणाम आदरणीय sir

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  27. प्रिय माण्डवी
    हार्दिक आभार सहित सस्नेह

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  28. Anonymous16 November

    काकाजी प्रणाम। बहुत सुंदर कविता है आप की।

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  29. Ashok Shrivastava16 November

    R/Sir, अति सुंदर कविता। पढ़कर मन खुश हो गया।

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  30. Daisy C Bhalla- It’s about leading life positively- in Budhist way- Lessening Karmic retribution

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  31. सार्थक सृजन

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