याद है
उस दिन तुमने कहा था
कि मन नहीं भरा आपका
दुनिया से, जीवन से
इस सारी उहापोह और उलझन से
जो अब भी, करते हैं कविता
जीवन में भरते हैं, रंगों की सरिता
और यह भी कहा था
जिसे आप प्यार कहते हैं
महज एक स्वार्थ है
जहाँ हम
केवल अपने आप से प्यार करते हैं
और दूसरे
हमारी इच्छाओं का घट भरते हैं
तुम्हारी बात ने
मुझे अंदर तक हिलाया
मैं अंदर ही अंदर कुलबुलाया
फिर खुद ही खुद से बोला
अपना अंतरपट खुद ही खोला
हाँ तुम ठीक कहती हो
आम भाषा में
जिसे सब प्यार कहते हैं
सिर्फ एक स्वार्थ है, जहाँ हम
केवल अपने आप से प्यार करते हैं
और दूसरे
न चाहते हुए भी
हमारी मंशाओं को ढोते हैं
पर मेरे लिए तो
प्यार है
एक रंगों भरा विस्तृत आकाश
जिसमें समाया है निश्चल विश्वास
मुझे याद आ रहा है
बचपन में कभी, मैंने कहीं पढ़ा था
कि किसी जन्म में, हम जाने- अनजाने
जिन्हें तकलीफ पहुँचा देते हैं
वे ही अगले जन्म में
हमारे बनकर, फिर मिलने आते हैं
ताकि हम रिश्तों की अहमियत को
फिर से समझ सकें
और इस तरह
अपने पूर्व जन्म के कर्मों को
न सिर्फ धो सकें
बल्कि आगे के सफर में
स्नेह की फसलें भी बो सकें
कहा भी तो गया है कि
हम पूर्व जन्म के ऋण
इस जन्म में चुकाते हैं
और जन्म जन्मांतर के रिश्तों को निभाने
फिर से आते हैं
जिस दिन से
यह भेद मेरी समझ में आ गया
मेरा पूरा सोच ही बदल गया
और आगे का जीवन
फिर से सँवर गया
शायद वही दिन था
हाँ वही दिन था कि
मेरे लिए प्यार के मायने बदल गए
संशय के बादल नेपथ्य में फिसल गए
अब तो मैं, सभी को प्यार करता हूँ
हर अच्छाई पर, पूरे मन से मरता हूँ
अपने स्वार्थी मन को भी
अब नहीं पहचानता
कैसा होता है मतलबी जहाँ
यह भी नहीं जानता
रिश्तों में अब है मेरा गहरा यकीन
और मेरे इरादों के नीचे है ठोस जमीन
सच कहूँ तो
इतना जीवन जीने के बाद
बहुत कुछ खोने और पाने के उपरांत
मैं यह भी जान गया हूँ
समग्र सत्य को पहचान गया हूँ
कि उम्र के इस दौर में मुझे
व्यक्तिगत नहीं
समष्टिगत होकर जीना होगा
खुद की न सोचकर
दूसरों के दुखों को
शिव- सा पीना होगा
तभी तो कुछ होगा सार्थक
वरना यह तथाकथित
पद- प्रतिष्ठा, धन- दौलत, मान- सम्मान
ओहदों का गुमान
सब कुछ है निरर्थक
यही तो है
हाँ केवल यही तो है
जन्म- जन्मांतर से चला आ रहा
हम सबका शाश्वत धर्म
जिसे निभाना ही होगा
और शेष जीवन
दूसरों के लिए
पूरी शिद्दत की साथ
बिताना ही होगा
आमीन !

प्रेम,विश्वास, कर्म, रिश्ते-नाते तथा जन्म-जन्मांतर की परतें खोलती सुंदर कविता।बहुत-बहुत बधाई सर।
ReplyDeleteसरल शब्दों में जीवन का गहन मर्म समझा दियाl केवल हम ही अपने ऊपर अपना नियंत्रण रख सकते है, दूसरों पर नहींl इसलिए हमारा व्यवहार भी दूसरों द्वारा नहीं हमें स्वयं नियंत्रित करना चाहिएl अभिनन्दन!
ReplyDeleteसही कहा. समष्टिगत बनकर रहना ही जीवन का सौंदर्य है.
ReplyDeleteप्रीति गुप्ता
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता — निस्वार्थता और समष्टि के भाव को बड़ी गहराई से व्यक्त किया है। सच में, जब जीवन दूसरों के लिए जिया जाए तभी वह सार्थक होता है। 🌿
आदरणीया
Deleteसही कहा आपने। अपने लिये जिये तो क्या जिये। हार्दिक आभार सहित सादर
सत्य लेखन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सहित सादर
Deleteबहुत अच्छी सीख कविता के माध्यम से अपने दी।
ReplyDeleteप्रिय भाई मुकेश
Deleteहार्दिक आभार। सादर
Thought provoking and expressed in a very simple manner
ReplyDeleteDear Dr. Surinder
DeleteThanks very much. Regards
जो बात हमारे सबके ज़ेहन में है, उसे आज अपनी कविता के रूप में पिरो दिया है।.......
ReplyDeleteसंशय छोड़ अब प्रेम ही मार्ग बना,
स्वार्थ मिटाकर, हर रिश्ता विश्वास बना।
जीवन का सत्य है, सबके लिए जीना होगा,
पद और प्रतिष्ठा को छोड, मानवता को अपनाना होगा।
जयेश
प्रिय जयेश
Deleteसोच के स्तर पर हम दोनों एक ही पथ के सहयात्री हैं। हार्दिक आभार। सस्नेह
सत्य है परन्तु अत्यंत कठिन है ।
ReplyDeleteY Pathak
Deleteआदरणीय
Deleteआप तो कठिनाइयों पर विजय प्राप्ति अभियान में हम सब के आदर्श हैं। हार्दिक आभार सहित सादर
I do not deserve to comment on it..
ReplyDeleteJust Awesome
That is it
प्रिय डॉ. विजेंद्र
Deleteआपकी नम्रता का शुरू से कायल हूं। हार्दिक आभार
अति सुंदर।
ReplyDeleteप्रिय अशोक
Deleteहार्दिक आभार। सस्नेह
नि:शब्द
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।सही और बहुत गहरी बात कही है आपने । स्वयं से तो सभी प्यार करते हैं, लेकिन निःस्वार्थ भाव से दूसरों के बारे में सोचना ही वास्तविक जीवन है।सुंदर संदेश। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteआपकी परंपरा के सहयात्री हो पाना हम सबका सौभाग्य है। हार्दिक आभार सहित सादर
आ. विजय जोशी
ReplyDelete*अपने आप से* कविता के माध्यम से आपने खुद के नहीं वरन सभी काव्य प्रेमियों के दिल में, जीवन के शेष समय को सार्थक और उत्साहपूर्ण बनाने का संदेश दिया है। 🙏🙏
करें कुछ विशेष, जिंदगी बची है शेष,
ना जाने कब, हो जाएंगे अवशेष
सकारात्मक नजरिया, बहुत प्रभावशाली कविता।
हार्दिक अभिनंदन 🙏🙏
प्रिय सुरेंद्र भाई,
Deleteयह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो इसमें कुछ व्यर्थ न हो। हार्दिक आभार सहित सादर
आदरणीय सर,
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर और मन को छूने वाला लेख।
धन्यवाद .
प्रिय महेश, हार्दिक आभार। सस्नेह
ReplyDeleteHeart touching truth….. karma theory appears in life. Cause n Effect . Sowing n Reaping continues. Time flies. It’s also true that self reflection helps🙏🏼
ReplyDeleteDear Daisy
DeleteYou are right. Time flies and so it's necessary that we contribute with the best of our capacity and capability.
Thanks very very much
आदरणीय जोशी सर
ReplyDeleteअत्यन्त सुंदर अभिव्यक्ति मन और दिल को छू ले ने वाला लेख l
धन्यवाद
हार्दिक आभार
Deleteअति सुंदर लेख
ReplyDeleteआदरणीय आपने जीवन के यथार्थ को बहुत ही सुन्दर शब्दों में वर्णन किया है। आपका साधुवाद।
ReplyDeleteप्रिय मित्र कृष्णकांत
Deleteहार्दिक आभार। सादर
पिताश्री बहुत ही सरल और भावात्मक ढंग से लिखी हुई कविता। ह्रदय को स्पर्श करती है । पिताजी सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteप्रिय हेमंत
Deleteहार्दिक आभार। सस्नेह
बहुत सुंदर कविता परंतु एक सत्य यह भी है कि जब तक हम स्वयं से प्यार नहीं करते तब तक किसी और से नहीं कर सकते । इसमें निजी स्वार्थ नहीं है- जब हम स्वयं का ध्यान रखेंगे तभी मित्रो और रिश्तेदारों का ध्यान रख पाएंगे
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteप्रिय किशोर भाई
ReplyDeleteबहुत सही बात कही आपने। प्यार अंदर होगा तभी तो बंट पाएगा। हार्दिक आभार
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ReplyDeleteअपने लिए जिये तो क्या जिये
ReplyDeleteतूं जी ए दिल जमाने के लिये।
आपकी कविता में सरल शब्दों मे सुन्दर भाव व्यक्ति। बहुत अच्छा लगा।
आदरणीय
Deleteहार्दिक आभार सहित सादर
बहुत सरल शब्दों में भावपूर्ण कविता। मोदी जी के शब्दों में मन की बात ।सादर प्रणाम आदरणीय sir
ReplyDeleteप्रिय माण्डवी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सहित सस्नेह
काकाजी प्रणाम। बहुत सुंदर कविता है आप की।
ReplyDeleteR/Sir, अति सुंदर कविता। पढ़कर मन खुश हो गया।
ReplyDeleteDaisy C Bhalla- It’s about leading life positively- in Budhist way- Lessening Karmic retribution
ReplyDeleteसार्थक सृजन
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