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Aug 1, 2025

हाइकुःमेघ चंचल

 - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

बजा मांदल

घाटियों में उतरे

मेघ चंचल।

2

चढ़ी उचक

ऊँची मुँडेर पर

साँझ की धूप।

3

नन्हा सूरज

भोर ताल में कूदे

खूब नहाए।

4

लहरें झूला

खिल-खिल करता

चाँद झूलता।

5

शोख़ तितली

खूब खेलती खो-खो

फूलों के संग।

6

सिहरा ताल

लिपटी थी धुंध की

शीतल शॉल।

7

उठते गए

भवन फफोले-से

हरी धरा पे।

8

ठूँठ जहाँ हैं

कभी हरे-भरे थे

गाछ वहाँ पे।

9

घायल पेड़

सिसकती घाटियाँ

बिगड़ा रूप।

10

लोभ ने रौंदी

गिरिवन की काया

घाटी का रूप।

11

हरी पगड़ी

हर ले गए बाज़

चुभती धूप।

12

हरीतिमा की

ऐसी किस्मत फूटी

छाया भी लूटी।

13

कड़ुआ धुआँ

लीलता रात-दिन

मधुर साँसें।

14

सुरभि रोए

प्राण लूट रही हैं

विषैली गैसें।

15

मुँह बाए हैं

प्यासे पोखर जहाँ

नीर वहाँ था।

16

तरसे कूप

दो घूँट मिले जल

सूखा हलक।

17

गीत न फूटे

अब सूखे कण्ठ से

मौसम रूठे।

18

पाखी भटके

न तरु-सरोवर

छाँव न पानी।

19

सुगंध लुटी

पहली वर्षा में लो

दुर्गंध उड़ी।

20

वसुधा-तन

रोम-रोम उतरा

विष हत्यारा।

21

दुर्गंध बने

घातक रसायन

माटी मिलके।

22

क्षय-पीड़ित

हुआ नील गगन

साँसें उखड़ी।

23

तन झुलसा

घायल सीने का भी

छेद बढ़ा है।

24

गुलाब दुखी

बिछुड़ी है खुशबू

माटी हो गया।

25

घास जो जली

धरा गोद में पली

गौरैया रो।


2 comments:

  1. समस्त हाइकु उत्कृष्ट, आदरणीय काम्बोज जी की लेखनी को नमन 🙏

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  2. सभी हाइकु पर्यावरण के विरूद्ध व्यक्ति की आचरण से उपजे दृश्य की व्यथा है।
    सुंदर हाइकु के लिए काम्बोज जी को बधाई। इस तरह की और भी मार्गदर्शक हाइकु लिखते रहें।
    शुभकामनाएँ।

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