- डॉ. आरती स्मित
शुक्रिया नन्ही दोस्त!
शुक्रिया
मुझसे बोलने-बतियाने के लिए
शुक्रिया कि
तुमने नहीं बनाई दूरी
नहीं परोसी उपेक्षा
नहीं उड़ाई खिल्ली
मेरे ठूँठ शरीर की,
जबकि
बसंत ने पहना दी है
हर एक को
रंग-बिरंगी पोशाक
हरियाते-मुस्काते
हजारों रंगों से आकंठ
भर-भर आते
वे
मुझे देखते तक नहीं
न ही पास फटकते हैं
तोता, मैना और कबूतर ही
मतलबी दुनिया का मारा
मेरा साथी कौआ
मुझे
मेरे होने के मायने समझाता है
और दे जाता है उपहार
आत्मीय स्पर्श का
नन्ही दोस्त (डव)!
अब
तुम आई हो
सुनाने लगी हो बासंती गीत
अपनी नन्ही अँजुरी में
भर-भरकर नेह
बरसाने लगी हो
इस सूखे, कठुआए
तन-मन पर
तन अब भी जर्जर है
मन में कोंपल फूटी है
नैनों में उषा मुस्काई है
मैं सुन पा रहा हूँ
आलिंगन करती हवा का
जीवन- राग
नन्ही दोस्त!
मैं अब जीना चाहता हूँ
सँजोना चाहता हूँ
कुछ खिलखिलाते लम्हें
तुम साथ दोगी न?
सम्पर्क: डी 136, गली नं. 5, गणेशनगर पांडवनगर कॉम्प्लेक्स, दिल्ली 110092, ईमेलः dr.artismit@gmail.com, ब्लॉगः https://smitarti.wordpress.com/
1 comment:
जीवन के यथार्थ को दर्शाती, बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता । बधाई आरती जी।
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