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Dec 1, 2024

बालकथाः बहादुर चित्रांश

  - निधि अग्रवाल

कृतिका की अभी आँख लगी ही थी कि चित्रांश ने उसे जगाया, “मम्मी! मम्मी! वॉशरूम जाना है। मम्मी उठो!”

कृतिका छोटे बेटे रिवान के साथ पूरी रात जागी थी। रिवान अभी-अभी ही सोया था। कृतिका का उठने का बिल्कुल मन नहीं था।

“चित्रांश, बाबू आप जाओ न लाइट ऑन है वॉशरूम की!” कृतिका ने कहा।

“नहीं मम्मी! आप चलो न डर लगता है।”

“चित्रांश घर में कैसा डर? आप जाओ न।” कृतिका झुँझलाई।

“नहीं मम्मा, चलो ना बहुत तेज आई है।”

चित्रांश रुआंसा होकर बोला। कृतिका को बेमन से उठना पड़ा। चित्रांश पल भर के लिए भी अकेले नहीं बैठता था। छोटा रिवान भी कृतिका को परेशान करता है। वह बेहद थक जाती है।

कृतिका चित्रांश को हैंडवॉश ही करा रही थी कि रिवान उसे अपने पास न पाकर उठ बैठा और रोने लगा। कृतिका जल्दी-जल्दी चित्रांश को साथ ले वापस भागी। वह फिर रिवान को गोदी में लेकर सुलाने का प्रयास करने लगी। उसे चित्रांश पर गुस्सा आ रहा था। पता नहीं यह लड़का क्यों इतना डरता है। जैसे - तैसे रिवान सोया। कृतिका ने चित्रांश को उठाकर स्कूल के लिए तैयार किया। उसे स्कूल भेजा। उसे बुरा लग रहा था। फालतू में ही चित्रांश को डांट दिया। रिवान से बड़ा है तो क्या हुआ! है तो अभी छोटा ही। अगले दिन रोज की तरह कृतिका स्कूल गेट पर खड़ी थी।

चित्रांश स्कूल वैन से आने को तैयार नहीं होता था। सुबह उसके पापा उसे स्कूल छोड़ने जाते, लेकिन दोपहर में कृतिका को छोटे रिवान को साथ ले उसे लेने आना पड़ता। कभी-कभी ड्राइवर के न आने पर वह बहुत परेशान हो जाती। सब कहते कृतिका तुमने चित्रांश को बहुत बिगाड़ रखा है। सब बच्चे स्कूल वैन से जाया करते हैं। अब वह कैसे समझाए उन्हें कि चित्रांश किसी से बात नहीं करता, वह और लोगों के साथ सहज महसूस नहीं करता। स्कूल वैन का नाम सुनकर रोने लगता है। तभी कृतिका ने चित्रांश को आते देखा। उसके हाथ में एक टोकरी देखकर वह चौंकी, “अरे यह क्या है?” चित्रांश ने टोकरी आगे बढ़ाई। उसमें एक छोटा सा क्यूट पप्पी बैठा था।

“यह कहाँ से आया?” कृतिका ने चित्रांश का बैग पकड़ते हुए पूछा।

“शिखा मैम ने दिया।”

“सच? मैम ने दिया?। धन्यवाद बोला न मैम को।”

चित्रांश नीचे देखने लगा।

“धन्यवाद बोलते हैं न चित्रांश कितनी बार समझाया है न तुम्हें।”

कृतिका मायूस हो गई। घर आते ही कृतिका ने सबसे  पहले  शिखा मैम को कॉल करके पप्पी के लिए धन्यवाद बोला। शिखा मैम ने कुछ और भी बातें की और कृतिका को चित्रांश की तरफ से निश्चिंत रहने के लिए समझाया। कृतिका ने चित्रांश के कपड़े बदले।

“चित्रांश पप्पी का क्या नाम रखें?”

“आप बताओ।”

“ देखो यह जो पप्पी है, यह तो आपका दोस्त है न!”

चित्रांश को पप्पी को एज अ फ्रेंड सोचकर बहुत अच्छा लगा। उसने हाँ में सिर हिलाया।

“ठीक है तो फिर पप्पी का नाम रखते हैं बड्डी। बड्डी ठीक रहेगा न।”

“ हम्म!”

कृतिका अभी चित्रांश को खाना खिला ही रही थी कि रिवान जाग कर रोने लगा। कृतिका उठकर जाने लगी तो हमेशा की तरह चित्रांश भी उसके साथ हो लिया।

“चित्रांश आप यहीं रुको मैं बस रिवान को लेकर आ रही हूं।”

“ अकेले? नहीं, अकेले नहीं रूकूँगा।”

“अकेले कहाँ हो देखो तुम्हारा फ्रेंड बड्डी है न तुम्हारे पास। तुम इतने इसे यह चपाती खिलाओ।”

कृतिका चली गई और चित्रांश चपाती के टुकड़े करके बड्डी को देने लगा। कृतिका जल्दी ही वापस आ गई। उसने बड्डी के कटोरे में दूध डाला और रिवान को गोदी में लेकर दूर बैठ गई।

“मम्मी खिलाओ न खाना।” चित्रांश बोला।

“देखो बड्डी तो तुम से भी छोटा है। वह तो खुद से खा लेता है। तुम भी कोशिश करो।”

चित्रांश ने देखा बड्डी ने सब खाना चट कर डाला था। उसने एक और चपाती बड्डी को दी और खुद भी अपना खाना खाने लगा। कृतिका ध्यान से चित्रांश को देखती रही। वह मन ही मन शिखा मैम का शुक्रिया अदा कर रही थी।

“मम्मी बड्डी कितना पेटू है।”

चित्रांश बड्डी को और खाना देते हुए खिलखिलाया। कृतिका भी हंसने लगी।

“तुम देखना वह ज़्यादा-ज्यादा खाना खाकर जल्दी-जल्दी बड़ा हो जाएगा। तुम भी खत्म करो अपना खाना नहीं तो तुम छोटे रह जाओगे और बड्डी बड़ा हो जाएगा।”

चित्रांश ने अपना पूरा खाना खत्म कर लिया। आज बहुत दिनों बाद कृतिका ने खुद को हल्का महसूस किया। वह दोनों बच्चों को सुलाने लगी। तभी चित्रांश बोला,  “मम्मा वाशरूम।”

“ आप जाओ और बड्डी को साथ ले जाओ। बड्डी बाहर बैठा रहेगा।”

“ नहीं, आप चलें।”

“आप जाओ तो बड्डी को लेकर, आपने देखा है न मूवी में कुत्ते कितने वफादार होते हैं। चोर को भी पकड़ लेते हैं।”

चित्रांश की थोड़ी हिम्मत बंधी। वह बड्डी को लेकर चला गया। बड्डी दरवाजे के पास उछलता रहा और कू- कू करके चित्रांश को दिलासा देता रहा कि घबराना नहीं, "मैं हूं न!"

शाम को कृतिका ने रिवान को प्राम में लिटाया और बड्डी को बास्केट में बिठाकर चित्रांश को दिया। वे सब पार्क के लिए निकले।

“चित्रांश इज अ बिग बॉय ! बड्डी का भी कितना ध्यान रखता है।” कृतिका ने कहा तो चित्रांश खुश हो गया।

 पार्क में बड्डी को देखने के लिए सब बच्चे चित्रांश के आसपास जुट गये। कृतिका जानबूझ कर रिवान को ले कर थोड़ा दूर घूमने लगी।

“इसका नाम क्या है ?” एक बच्चे ने पूछा।

  “काटता है क्या ?”  दूसरे ने पूछा

“कहाँ से मिला?” जितने बच्चे उतने सवाल।

चित्रांश शुरू में तो शरमा रहा था फिर धीरे-धीरे बच्चों की बातों का जवाब देता गया। थोड़ी देर में ही सब बच्चे बड्डी के साथ खेलने लगे। बड्डी कभी एक बच्चे के पीछे भागता कभी दूसरे के और फिर लौटकर चित्रांश के पास आ जाता। अब तो यह रोज का नियम बन गया। चित्रांश जहाँ जाता बड्डी उसके साथ जाता। बड्डी चित्रांश का ध्यान रखता, चित्रांश बड्डी का। चित्रांश का दिल तो करता कि बड्डी को अपने साथ स्कूल भी ले जाए ; लेकिन क्या करता। स्कूल में उसका दाखिला संभव नहीं था लेकिन घर पर जरूर वह स्कूल के सभी पाठ बड्डी को सुनाता और बड्डी भी ऐसे सिर हिलाता, जैसे उसे सब समझ आ गया हो।

 धीरे-धीरे पार्क में रोज मिलने से चित्रांश और बच्चों के साथ भी घुलने - मिलने लगा। उसका डर कम होने लगा। कृतिका रविवार को उसके स्कूली दोस्तों को घर बुला लेती थी या उसे उनके घर खेलने ले जाती। कुछ महीनो बाद चित्रांश ने खुद कहा कि मुझे स्कूल वैन से स्कूल जाना है मेरे सभी फ्रेंड वैन से जाते हैं।

फाइनल एग्जाम रिजल्ट लेने जब कृतिका स्कूल पहुची तो शिखा मैम ने कहा, “अब तो चित्रांश को कहना पड़ता है कि हर सवाल का जवाब आप नहीं दे सकते हो और बच्चों को भी मौका मिलना चाहिए।”

कृतिका ने कहा, “कैसे आपको शुक्रिया कहूँ! आप ने तो चित्रांश को पूरा बदल दिया।”

शिखा मैम ने कहा, “नहीं कृतिका वह तो शुरू से ही हीरा था। बस थोड़ा तराशने की जरूरत थी।”


लेखक के बारे में- 


पेशे से चिकित्सक निधि अग्रवाल की रचनाएँ प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। कुछ कहानियों का पंजाबी, गुजराती और बांग्ला अनुवाद हुआ है। वे अपने लेखन में सूक्ष्म मनोभावों के चित्रण के लिए जानी जाती हैं। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पंडित बद्री प्रसाद शिंगलू सम्मान सहित अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। कहानी संग्रह 'अपेक्षाओं के बियाबान',उपन्यास 'अप्रवीणा' काव्य संग्रह ' कोई फ्लेमिंगो नीला नहीं होता ‘ व ' गिल्लू की नई कहानी’ उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं। ई-मेल:nidhiagarwal510@gmail.com



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