- अंजू खरबन्दा
1-बत्रा आंटी
सरकारी विद्यालयों में पहली से पाँचवीं तक एक ही अध्यापिका रहती थी। हर कक्षा उत्तीर्ण होने के साथ- साथ वह अध्यापिका भी हमारे साथ अगली कक्षा में आ जाती । मेरी प्रथम अध्यापिका रही बत्रा आंटी ।
हाँ हम उन्हें आंटी ही पुकारा करते। बुआजी बताती हैं कि पहले उन्हें बहनजी कहा जाता था, वक्त बदला, तो वे आंटी कहलाने लगी और काफी बाद में जाकर वह मैडम कहलाईं।
उस समय हम लोग टाट- पट्टी पर बैठा करते थे। एक कक्षा में कुछ- कुछ दूरी पर चार- टाट पट्टियाँ बिछी थीं। रोल नंबर के अनुसार हमारी बारी होती कक्षा की सफाई की । रोज दो लड़कियाँ इस कार्य को दक्षता से करतीं व बत्रा आंटी की शाबाशी पातीं । उनकी शाबाशी पाना मानो मैडल जीतना! पूरा दिन खुशी व गर्व से बीतता कि आज हमारे हिस्से उनकी शाबाशी आई ।
बत्रा आंटी सुबह जब कक्षा में प्रवेश करतीं, तो सब बच्चे खड़े होकर अभिवादन स्वरूप जोर से चिल्लाते-"कक्षा स्टैंड"
वह प्यारी सी मुस्कान बिखेरती हुई कहती
"बैठ जाओ!’’
फिर शुरू होता क्रम अपनी- अपनी तख्ती दिखाने का ।
मोतियों जैसी लिखावट होने के कारण मुझे हमेशा शाबाशी ही मिलती। लिखावट में मुझे पुरस्कार भी मिला था। उस समय पुरस्कार स्वरूप टूथब्रश और पेन मिला करते थे।
हमारे समय चार विषय ही हुआ करते- गणित, विज्ञान, हिंदी और सामाजिक विज्ञान।
पहाड़े याद करने के लिए हम सभी बच्चे जितना दम लगाकर बोल सकते, उतनी जोर- जोर से चिल्लाते हुए पहाड़े बोलते-
दो एकम दो
दो दूनी चार
दो तिया छह....
फिर हिंदी के दोहे याद कर खूब जोर- जोर से बोले जाते, ताकि अच्छे से कण्ठस्थ हो जाएँ। लगभग सभी कक्षाओं से ऐसी ही आवाजें आया करतीं ।
खुले- खुले हवादार कमरे और खिड़की के बाहर लगे हरे- भरे वृक्ष। बड़ा ही रमणीक दृश्य होता था, सरकारी स्कूल का उस वक्त।
बत्रा आंटी के साथ मेरा गहरा लगाव रहा । उनका सरल व्यवहार व प्रेमपूर्वक सभी बच्चों पर ध्यान देना इसका कारण हो सकता है। मुझे स्वतंत्रता शब्द बोलने में बड़ी मुश्किल आई तब बत्रा आंटी ने मेरे हाथ में चॉक देते हुए कहा- ‘‘बार- बार बोर्ड पर लिखो और ध्यान से पढ़ते हुए ये शब्द दोहराओ।"
जाने कौन- सा जादू हुआ कि कुछ ही देर में मैं स्वतंत्रता शब्द बिना अटके बोलने लगी ।
मैं पाँचवीं में थी, जब मेरी मम्मी का देहांत हुआ। स्कूल आकर मैं चुपचाप खिड़की के पास खड़ी रहती, तब बत्रा आंटी मेरे पास आती, स्नेह से अपना हाथ मेरे सिर पर रखती, मेरा नन्हा- सा हाथ अपने मजबूत हाथों में थाम मुझे प्यार से समझाती ।
आज भी उनका चेहरा आँखों के सामने है । वह जहाँ भी हो खुश रहें स्वस्थ रहे, प्रभु से यही कामना है ।
2- सुमन शर्मा मैम
लम्बी, गोरी, खूबसूरत, हल्के घुँघराले बालों का ढीला- सा जूड़ा और तिस पर गुलाब का फूल लगाए, दुनिया का सबसे दिलकश चेहरा! ऐसी थी हमारी सुमन शर्मा मैम ।
उनका साड़ी बाँधने का तरीका ऐसा कि उन पर से नजर ही न हटती। जो उन्हें देखता, बरबस देखता ही रह जाता। उनका सम्मोहन ही था कि क्लास की शैतान से शैतान लड़कियाँ भी उनकी क्लास में चुपचाप बैठकर पढ़तीं।
जब वह बोलती, तो मानो फूल झरते, जब वह मुस्कुराती, तो मानो फिजा खिल उठती और जब वह किसी बात पर हँस पड़ती, तो मानो हवाएँ गीत गाने लगतीं ।
वह हमें हिंदी पढ़ाया करती । उनके पढ़ाने का अंदाज ऐसा कि हम एकटक उन्हें ही निहारा करते । किताब हाथ में थामे, जब वह अपना हाथ हिलाते हुए पाठ समझाती, तो हम सभी सम्मोहित हो उन्हें सुनते।
जब वह पहाड़ों के बारे में विस्तृत वर्णन करती, पहाड़ साक्षात् आँखों के आगे आ खड़े होते। जब वह नदियों के बारे में पढ़ाती, नदियाँ आस पास लहराने लगतीं! जब कोई कहानी सुनाती, उसके पात्र हमसे बातें करने लगते। जब कोई कविता कहती, ऐसा समाँ बँध जाता कि कोई सुध- बुध ही न रहती।
बाकी विषयों की क्लास में हम घंटी बजने की प्रतीक्षा करते; परंतु सुमन मैम की क्लास में कब घंटी बज जाती, होश ही न होता।
उन्हें निहारते, उनसे पढ़ते न जाने कब उन जैसा बनने का सपना मन में पलता चला गया और आज.... उनसे प्राप्त किया हुआ ज्ञान व उनकी तरह ही पढ़ाने का तरीका मेरे कितने काम आ रहा है, यह सोचकर खुद पर हैरान होती हूँ। उन्हीं की तरह, गहराई तक जाना और तब तक समझाना, जब तक कि खुद को व बच्चे को तसल्ली न हो जाए ।
जब बच्चे मुझसे कहते हैं, आप जब पढ़ाते हो, तो आँखों के आगे पूरा सीन क्रिएट हो जाता है, तब सुमन मैम और भी याद आती हैं।
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