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Dec 1, 2024

कविताः बंद किताब

  - नन्दा पाण्डेय







एक बंद पड़ी

किताब थी वो!

 

जिसने न धूप देखी

न वसंत देखा

न पूस की रात देखी

न पतझड़ के दिन देखे

 

जिसने

न झरने देखे

न पहाड़ देखा

 

क्योंकि...

किसी ने उसे

पढ़ा ही नहीं

 

इस किताब के

पन्ने को पलटकर

तुमने उसकी ज़िंदगी पलट दी!


2 comments:

नंदा पाण्डेय said...

धन्यवाद सर 🙏

Sonu Krishnan said...

बहुत खूब मैम